आज सबसे बड़ा सवाल ये है कि स्कूल के बच्चों में धार्मिक कट्टरवाद का ज़हर कौन भर रहा है? कर्नाटक के चामराजनगर में जहां चौथी कक्षा में पढ़ने वाली एक 9 साल की छात्रा ने स्कूल के Science Exhibition में एक विवादित मॉडल पेश किया।इस मॉडल का शीर्षक था, आज़ाद-ए-कब्र .इसमें एक तरफ एक ऐसी महिला की कब्र थी, जो बुर्का पहनती है और दूसरी तरफ ऐसी महिला की कब्र थी, जो पर्दा नहीं करती और जो स्कर्ट पहनती है।
इस छोटी सी बच्ची ने प्रतीकात्मक रूप से इन दोनों कब्रों को बनाकर ये दिखाया कि जो महिला बुर्का और हिजाब पहनती है, उसे मौत के बाद जन्नत मिलती है। और ऐसी महिला शहीद के खून से भी ज्यादा अफजल यानी बड़ी और पवित्र है।लेकिन जो मुस्लिम महिला बुर्का या हिजाब नहीं पहनती, उसे मौत के बाद जहन्नुम मिलता है सोचिए ये मॉडल Science Exhibition पर एक 9 साल की बच्ची ने बनाया है ये घटना कर्नाटक के एक प्राइवेट स्कूल की है।
Youtube पर इस स्कूल के नाम का एक चैनल और कुछ Videos भी हैं, जिन्हें देखकर ऐसा लगता है कि इस स्कूल का संचालन एक मदरसे की तरह किया जा रहा है। और यहां बच्चियां हिजाब और बुर्का पहनकर स्कूल आती हैं और लड़के टोपियां पहनकर स्कूल में पढ़ते हैं। और हमें लगता है कि इसमें इन मासूम बच्चों की कोई गलती नहीं है। गलती इस स्कूल के प्रिंसिपल और टीचर्स की है, जिनकी निगरानी में इन बच्चों के अंदर धार्मिक कट्टरवाद का ज़हर घोला गया और सोचिए Science Exhibition में इस बच्ची को साइंस का कोई मॉडल या प्रोजेक्ट बनाना चाहिए था।
लेकिन इसने इसकी जगह बुर्के और हिजाब का मॉडल बनाया और अब शिक्षा विभाग ने भी इस घटना का संज्ञान लिया है और स्थानीय अधिकारी से इस पर तत्काल रिपोर्ट मांगी है।स्कूलों में हिजाब पहनने का विवाद वर्ष 2022 में कर्नाटक से ही शुरु हुआ था और ये मामला अब भी सुप्रीम कोर्ट में लम्बित है।अक्टूबर 2022 में जब सुप्रीम कोर्ट के दो जजों ने इस पर अपना फैसला सुनाया था, तब ये एक Split Verdict था, जिसमें दोनों जजों की राय इस मुद्दे पर अलग अलग थी। सोचने वाली बात ये है कि जब अदालत का इस पर कोई अंतिम फैसला नहीं आया, तब इस स्कूल में छोटी-छोटी बच्चियां हिजाब और बुर्का पहनकर आ रही हैं और इस तरह के Videos बना रही हैं।
इन बच्चियों को शायद ये बात पता भी नहीं होगी कि कुरान में महिलाओं और पुरुषों के लिए किसी भी खास तरह के धार्मिक परिधान का ज़िक्र नहीं है। कुरान में केवल Modesty का ज़िक्र किया गया है और ये बताया गया है कि मुस्लिम महिला और पुरुष दोनों इस तरह के कपड़े पहनें, जो उनकी गरिमा और लाज को बनाकर रखें। भारत में आज से 100 साल पहले तक सभी मुस्लिम महिलाएं हिजाब या बुर्का नहीं पहनती थीं। लेकिन बाद में इसे लेकर एक नैरेटिव बनाया गया और आज की पीढ़ी के लिए ये New Normal है। जैसे, आपने इस्लामिक संस्था, तब्लीगी जमात का नाम ज़रूर सुना होगा। इस संस्था ने ही वर्ष 1920 के दशक में ये आन्दोलन चलाया था कि भारत की मुस्लिम महिलाओं को बुर्के और हिजाब में रहना चाहिए और मुस्लिम पुरुषों को लम्बी दाढ़ी रखनी चाहिए। और यहीं से धार्मिक कट्टरवाद भारत में अपनी जड़ें और मजबूत करता चला गया।
बहुत सारे इतिहाकार ये दावा भी करते हैं कि पहले बुर्के और हिजाब का संबंध धर्म के संरक्षण से नहीं है। इस्लाम की उत्पत्ति सऊदी अरब के मक्का में हुई, जो अरब क्षेत्र में आता है। अरब क्षेत्र का मतलब उस इलाके से है, जहां दूर दूर तक रेगिस्तानी इलाके हैं और यहां भारत जैसे देशों की तरह खेती नहीं हो सकती। अब जिस क्षेत्र की जैसी भौगोलिक परिस्थितियां होती हैं, वैसा ही वहां के लोगों का पहनावा होता है। जैसे रेगिस्तान है तो वहां धूल बहुत उड़ती होगी और इसलिए लोग अपना मुंह ढकते होंगे और खेती नहीं हो सकती इसलिए वहां मांसाहारी लोग ज्यादा होंगे। यानी मुंह ढकना और मांसाहार होना.. ये अरब के लोगों को वहां की भौगोलिक परिस्थितियों से मिला। और जब वहां इस्लाम धर्म की उपत्ति हुई तो लोगों ने इसे धर्म का ही हिस्सा मान लिया उदाहरण के लिए अरब देशों में पुरुषों द्वारा इस तरह के Gown पहने जाते हैं। जिसमें सिर पर एक कपड़ा बंधा होता है, जबकि शरीर पर गर्दन से लेकर पैर तक एक पूरा कुर्ता होता है। ये अरब देशों के लोगों की पारम्परिक वेशभूषा है और ऐसा माना जाता है कि इसके पीछे अरब की भौगोलिक परिस्थितियां बड़ी वजह हैं। और वहां पुरुषों द्वारा भी इस तरह का Gown पहना जाता है। लेकिन क्या ये बातें इस स्कूल में पढ़ने वाली इन छोटी-छोटी बच्चियों को बताई गई होंगी। इन बच्चियों को तो ये बताया गया है कि जो महिलाएं बुर्का और हिजाब नहीं पहनती, उनकी मौत के बाद उनके शव सांप और बिच्छु खाते हैं
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