यदि नही पढ़ा अखाड़ा का अर्थ और उत्पत्ति का महत्व तो अवश्य पढ़े.
अखाड़ा का अर्थ और उत्पत्ति
▪️ अखाड़ा का अर्थ है कुश्ती का मैदान।
▪️ आदि शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में सन्यासी अखाड़ा प्रणाली की स्थापना की थी। इसका मुख्य उद्देश्य धर्म की रक्षा के लिए एक योद्धा वर्ग तैयार करना था।
▪️ अखाड़ों ने शस्त्रधारी संतों की टुकड़ियाँ तैयार कीं, जिन्होंने विदेशी आक्रमणकारियों से हिंदू धर्म की रक्षा की।
▪️ नागा संप्रदाय और दशनामी संन्यासी इसमें प्रमुख रहे।
अखाड़ों का उद्देश्य और संरचना
▪️ अखाड़ों का मुख्य उद्देश्य धर्म की रक्षा और ज्ञान का प्रचार है।
▪️ नागा साधुओं और दशनामी संन्यासियों ने भाला, तलवार जैसे शस्त्रों का प्रशिक्षण देना शुरू किया।
▪️ अखाड़े चार मुख्य संप्रदायों में विभाजित हैं और इनमें गुरु-शिष्य परंपरा के आधार पर कई परंपराएँ हैं।
अखाड़ों का विभाजन
प्रारंभ में 4 अखाड़े थे, जो बाद में नेतृत्व और अनुयायियों के विस्तार के कारण 13 में विभाजित हो गए। ये 13 अखाड़े प्रयागराज कुंभ मेले में भाग लेते हैं।
इनका संचालन अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद द्वारा होता है।
प्रमुख अखाड़े :-
1. निरंजनी अखाड़ा (प्रयागराज)
2. आनंद अखाड़ा (निरंजनी की शाखा)
3. जून अखाड़ा (वाराणसी, सबसे बड़ा अखाड़ा)
4. अवहान अखाड़ा
5. अग्नि अखाड़ा
6. परी अखाड़ा (महिला साध्वियों का अखाड़ा, 2013 में शामिल)
7. बैरागी अखाड़ा (वैष्णव अनुयायी)
8. महानिर्वाणी अखाड़ा
9. अटल अखाड़ा
10. निर्मोही अखाड़ा
11. दिगंबर अखाड़ा
12. खालसा अखाड़ा
13. उदासी अखाड़ा
कल्पवासी अखाड़ा : यह ब्रह्मा के अनुयायियों का अस्थायी अखाड़ा है, जिसमें आम लोग कुंभ के दौरान वनप्रस्थ का जीवन अपनाते हैं।
प्रमुख परंपराएँ : अखाड़ों की तीन मुख्य परंपराएँ हैं:
1. दैव परंपरा: नारायण, सदा शिव और पद्मभुव (ब्रह्मा)
2. ऋषि परंपरा: वशिष्ठ, शक्ति, पाराशर, व्यास और शुकदेव
3. मानव परंपरा: गौड़पाद, गोविंद भगवत्पाद, आदि शंकराचार्य और उनके शिष्य।
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद : अखाड़े तीन श्रेणियों में विभाजित हैं
▪️ निर्वाणी अनी अखाड़ा: सबसे बड़ा समूह है, जिसमें साधु-संत और नागा साधु शामिल होते हैं।
🔸जून अखाड़ा (सबसे बड़ा)
🔸निरंजनी अखाड़ा
🔸अटल अखाड़ा
🔸महानिर्वाणी अखाड़ा
▪️ दिगंबर अनी अखाड़ा: वैष्णव संप्रदाय का हिस्सा है।
🔸निर्मोही अनी अखाड़ा
🔸दिगंबर अनी अखाड़ा
🔸निर्वाणी अनी अखाड़ा
▪️ निर्मल अनी अखाड़ा: उदासी संप्रदाय के अनुयायी।
🔸श्री पंचायती बड़ा उदासी अखाड़ा
🔸श्री पंचायती नया उदासी अखाड़ा
🔸निर्मल पंचायती अखाड़ा
कुंभ मेला और अखाड़ों का महत्व : कुंभ मेला वह दिव्य आयोजन है, जहाँ बिना किसी निमंत्रण के करोड़ों श्रद्धालु एकत्रित होते हैं।
▪️ प्रमुख कार्यक्रम: शाही स्नान (प्राथमिक अनुष्ठान)
यज्ञ, वैदिक मंत्रोच्चार, कथाएँ, भक्ति गीत, और धार्मिक सभाएँ।
▪️ अखाड़ों की धार्मिक सभाएँ आयोजित होती हैं, जहाँ सिद्धांतों पर वाद-विवाद कर उन्हें स्थापित किया जाता है।
शस्त्रधारी और शास्त्रधारी साधु :
▪️ शस्त्रधारी (अस्त्रधारी): नागा साधु, जिन्हें आदि शंकराचार्य ने एक हिंदू सेना के रूप में संगठित किया था।
मुस्लिम आक्रमणों के समय इन साधुओं ने हिंदू धर्म की रक्षा की।
वर्तमान में ये प्रतीक रूप से शस्त्र धारण करते हैं।
▪️ शास्त्रधारी साधु: ये संत शास्त्र, वेद, ज्योतिष, वास्तु, आयुर्वेद आदि विषयों का गहन अध्ययन करते हैं। विभिन्न संप्रदायों में शास्त्र अध्ययन की परंपरा रही है।
▪️ अखाड़ों में अनुशासन और पद (Hierarchy) : अखाड़ों में सख्त अनुशासन का पालन होता है, वरिष्ठ पद
🔸आचार्य महामंडलेश्वर
🔸महामंडलेश्वर
🔸मंडलेश्वर
🔸श्री महंत
🔸महंत
कुंभ मेला का सामाजिक और ऐतिहासिक योगदान :
🔸कुंभ मेला भारत की आध्यात्मिक एकता का प्रतीक है।
🔸इतिहास में बैरागियों और संन्यासियों ने आक्रमणकारियों से लड़ाई करके धर्म की रक्षा की।
🔸यह आयोजन लाखों लोगों को जोड़ता है और भारतीय संस्कृति की अखंडता को दर्शाता है।
निष्कर्ष :-
अखाड़ा प्रणाली और कुंभ मेला सनातन धर्म की धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक धरोहर का अमूल्य हिस्सा हैं।
अखाड़ों का उद्देश्य धर्म रक्षा, ज्ञान प्रसार और समाज में एकता और अनुशासन बनाए रखना है।
कुंभ मेला इस अखाड़ा परंपरा को भव्य रूप से प्रस्तुत करता है और इसे जीवंत बनाए रखता है।