जिन लोगो को लगता है की फलां मॉडल से आतंकवाद का इलाज हो जाएगा या किसी व्यक्ति विशेष को प्रधानमंत्री बना देने से समस्या का निवारण हो जाएगा उन्होंने कभी इस्लाम को समझा ही नहीं।
समुदाय विशेष के लिए चीन से बड़ा दमनकारी कोई नहीं है पिछले 30 सालो से चीन द्वारा मुसलमानो पर कई पाबंदी लगाई गयी,कम्युनिस्ट देश है.अथॉरिटी दमन करके चली जाती है.उसके बाद वहाँ मस्जिदे खड़ी हो जाती है। इजरायल 75 सालो से घर में घुसकर मार रहा है। फिर भी वहां 7 अक्टूबर दोहराया जाता है,वो सब छोड़ो अमेरिका 20 साल बम गिरा चुका है लेकिन तालिबान डोनाल्ड ट्रम्प को धमकी दे रहा है की अमेरिकी हथियार नहीं लौटाएंगे।
हिन्दुओ के पास तो अपना कोई संस्थापक नहीं है.इसलिए आप ईसाईयो का उदाहरण ले लो,ईसा मसीह ने कितने युद्ध लड़े है?या फिर पारसियों के जरथ्रुस्त ने कितनी जंगे लड़ी?एक भी नहीं,,,,,,
आप किसी भी धर्म का संस्थापक देख लो हथियारों का प्रयोग सिर्फ एक मजहब ने किया है शेष किसी ने नहीं।
मुसलमान की सोच बिल्कुल स्पष्ट है,उसका लक्ष्य भी साफ़ है की सारे जहाँ पर इस्लाम का परचम लहराना है।हमारे यहाँ कोई मंदिर चर्च जाना भूल जाए तो फर्क नहीं पड़ता लेकिन वहाँ फर्क पड़ता है। इतना फर्क पड़ता है की मजहबी नोटिस तक आ जाते है।
2023 के वर्ल्डकप में जब हैदराबाद में पाकिस्तान ने श्रीलंका को हराया तो भारत का मुसलमान पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगा रहा था.आप आज भी हाइलाइट में सुन सकते है। जबकि वही अफगानिस्तान की जीत पर चुप रह गया। दोनों इस्लामिक देश ही तो है..?फिर पाकिस्तान से ही सारा प्यार क्यों?
उसका कारण यही है कि वो सामाजिक नहीं सामरिक व्यवस्था है। गैर मुसलमानो को जो पसंद नहीं है वो मुसलमान को प्राकृतिक रूप से पसंद आएगा।
सऊदी अरब का राजकुमार हिन्दुओ की पसंद है इसलिए मुसलमानो को नापसंद है वही तुर्की का राष्ट्रपति हिन्दुओ को पसंद नहीं है तो उसमे मुसलमान की जान बसी है।और ये जान इस हद तक बसी है कि -जिसकी हद ही नहीं है...!!
इस्लाम का जन्म कबीलो के बीच हुआ है,उदाहरण के लिए अमेरिका में रहने वाले हिन्दुओ ने अपनी पूजा पद्धति नहीं बदली मगर अमेरिका के अनुरूप रहन सहन कर लिया कुछ ऐसा ही भारत के ईसाईयो के संदर्भ में है।
लेकिन पूरी दुनिया में सिर्फ मुसलमान है.जो अमेरिका जैसे ठन्डे देश में भी सफ़ेद टोपी लगाए दिखेगा या फिर भारत जैसे भाषा प्रधान देशो में भी अपने नाम अरबी शब्दकोश से ही रखेगा।अरब के लोग जितने अरबी नहीं है उससे ज्यादा गैर अरबो को अरबी दिखना है, इसलिए इनकी जीवन पद्धति बहुत अलग है और इनका समाधान भी वो नहीं जो आप सोच पा रहे है।
आपके टैक्स की बनी सड़के, हॉस्पिटल उनके काम की ही नहीं है तो वो क्यों उसकी कदर करे?
उल्टे ये आपका दोष है की आप संख्या में ज्यादा है इस वजह से कभी नरेंद्र मोदी तो कभी डोनाल्ड ट्रम्प जैसे काफिरो को चुनते है।
हिन्दुओ के लिए "मोक्ष" और ईसाईयो के लिए "साल्वेशन" ही अंतिम लक्ष्य है उसे पाने के लिए अलग अलग धर्मो ने परोपकार, जीव दया और दान को रास्ता बताया गया है।ये चीजे इस्लाम में भी है.लेकिन कौम, जिहाद, ईमान ये सब शब्दो के बिना आप प्रवेश नहीं पा सकते।
आपका पडोसी भूखा है तो हिन्दू धर्म के अनुसार पूजा करना बेकार है मगर इस वजह से भगवान आपसे नफरत नहीं करेगा.लेकिन इस्लाम में भगवान रुष्ट भी होता है और आप उसे अप्रिय भी हो सकते है। ये ही वजह है की मुसलमान कट्टर है,
ये सारे सामाजिक नियम जब बनाये गए होंगे तब शायद समसामयिक रहे हो मगर आज नहीं है.और यही काफिर मुस्लिम झगड़े की असली वजह है।
दिक्कत ये है की मुसलमान को विकास दोगे तो वो उसके मतलब का नहीं है जो उसके मतलब का है वो आपकी नजर में आतंकवाद है।
अब इन दो तथ्यों में जब आप कहते हो कि इजरायल बनो, योगी को लाओ, ये करो, वो मत करो तो ये तर्कहीन बात है?आप कुछ भी कर लो दंगे नहीं रुकने वाले, क्योकि दंगा आपके लिए हिंसा है उनके लिए ये ही उनके जीवित होने का प्रमाण है।