Forwarded as Recieved ... सुभाष चंद्रा को वॉल से
जस्टिस संजीव खन्ना शराब घोटाले के मुकदमों से हटाए जाएं -
सुप्रीम कोर्ट में खेल खेला गया केजरीवाल को जेल से छुड़ाने का-
आज सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने केजरीवाल को अंतरिम जमानत दे दी और उसकी गिरफ़्तारी को चुनौती देने वाली उसकी याचिका को 3 जजों की बड़ी बेंच के पास भेज दिया - यह आज का फैसला कुछ और नहीं है बल्कि केजरीवाल को जेल से छुड़ाने का षड़यंत्र है जो रचा गया स्वयं सुप्रीम कोर्ट में और मेरे ऐसा कहने के पीछे कई कारण है -
केजरीवाल ने 21 मार्च को ED द्वारा की गई उसकी गिरफ़्तारी को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी थी और वहां से याचिका खारिज होने के बाद वह गया सुप्रीम कोर्ट जहां केजरीवाल पर मेहरबान जस्टिस संजीव खन्ना ने पहले उसे चुनावों में प्रचार के लिए अंतरिम जमानत दे दी जबकि उसने जमानत मांगी नहीं थी - ये सब बातें भी षड़यंत्र का हिस्सा हैं -
जब कोर्ट अंतरिम जमानत दे दे या regular bail दे दे तो उसकी गिरफ़्तारी स्वतः ही “वैध” समझी जानी चाहिए लेकिन फिर भी खन्ना/दत्ता ने वैधता की सुनवाई जारी रखी - इस सुनवाई के चलते पहले केजरीवाल को 10 मई को अंतरिम जमानत दी गई और गिरफ़्तारी की वैधता पर 17 मई को सुनवाई पूरी करके फैसला सुरक्षित रख लिया गया -
आज जस्टिस खन्ना ने कहा कि "He is the Chief Minister of a state and the elected leader. Considering his right to life and liberty and the fact that he has been in jail for over 90 days, we are of the view that Kejriwal is entitled to be released on INTERIM BAIL” -
जमानत देने के लिए यह right to life and Liberty का तर्क औचित्यहीन है क्योंकि केजरीवाल की जान को कोई खतरा नहीं है और क्या आप हर आरोपी को liberty के नाम पर छोड़ देंगे - फिर तो किसी को भी जेल में रखने की जरूरत नहीं है - जमानत पर उसे छोड़ने के लिए यह दलील ही “षड़यंत्र” है -
कोर्ट ने यह भी कहा कि “the legal question regarding the "necessity to arrest" under Section 19 of the Prevention of Money Laundering Act (PMLA) needs to be considered by a larger bench of the top court”
17 मई को सुनवाई ख़त्म करते हुए ही मीलॉर्ड को ये बड़ी बेंच को भेज देना चाहिए था - वैसे जब यह केस चीफ जस्टिस ने आपको दिया होगा तो समझा गया होगा कि 2 जजों की बेंच उपयुक्त है और इसका मतलब है आप अपने दायित्व की पूर्ति में नाकाम हो गए -
सारी कहानी यह है कि घुमा फिरा कर अदालतें PML Act को निष्क्रिय कर हैं जिससे चोरों की मौज हो जाए -
अभी भी लगता है संजीव खन्ना चाहते थे केजरीवाल को पूरी राहत दी जाए लेकिन शायद दीपांकर दत्ता उनसे सहमत नहीं थे और इसलिए बड़ी बेंच को भेज कर अपना पिंड छुड़ा लिया -
केजरीवाल के लिए अगर आप 17 मई को ही आज का आदेश दे देते तो तब से लेकर अब तक 57 दिन की जेल तो उसकी बच जाती जो आपकी वजह से चलती रही -
वो 90 दिन से जेल में है तो सिसोदिया तो 16 महीने से जेल में है - उसने भी जमानत के लिए SLP दायर की है और उस बेंच में भी संजीव खन्ना जी हैं जिसका मतलब है ये उसे भी बाहर कर देंगे - सिसोदिया के केस में कोर्ट ने कहा है कि केस तो अब तक ख़त्म हो जाना चाहिए था लेकिन शुरू भी नहीं हुआ जबकि दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा था ED / CBI देरी के लिए दोषी नहीं हैं -
अदालत यदि स्वयं ऐसे निर्णय करेगी जिसमें राजनीति का खेल दिखाई दे तो यह न न्यायपालिका के लिए शुभ है और न लोकतंत्र के लिए, courts को इससे दूर रखना चाहिए, जजों को न निष्पक्ष होना चाहिए बल्कि निष्पक्ष दिखना भी चाहिए और जस्टिस खन्ना कतई निष्पक्ष नहीं दिख रहे हैं-
साभार
(सुभाष चन्द्र )