(1) बच्चों का शारीरिक विकास रुक जाता है, अगर तीन-चार बच्चे हों तो आपस में खेलते रहते है, लड़ते झगड़ते कब बड़े हो जाते हैं पता ही नहीं चलता। एक बच्चा गुमसुम सा एक कोने में पड़ा हुआ मैगी खाकर मोबाइल देखता है या टीवी देखता रहता हैं। खाने में कोई कंपटीशन नहीं होता जिससे उसकी सेहत पर बुरा असर पड़ता है।
(2) माता-पिता के जाने के बाद जब कोई विपत्ति आती है, तो उनके पास कोई भाई बहन नहीं होता जिसके पास वह जा सकें।
(3) अगर तीन-चार बच्चे हैं, तो एक बच्चे के IAS बनने के अधिक चांस हैं।
(4) अगर एक ही बच्चा है और वह जिंदगी में फेल हो गया तो उसको कोई सफल नहीं बना सकता। अगर तीन-चार बच्चे हैं तो एक बच्चा भी सब को कामयाब कर सकता है।
(5) फॅमिली Based Business के लिए बड़े परिवार की बहुत अधिक महत्ता है। एक बिजनेस के लिए कम से कम दो-तीन भाई चाहिए ही होते है। अकेला बच्चा 9 से 5 की जॉब के काबिल ही रह जाता है।
(6) कई बार एक बच्चे की फॅमिली टूट जाती है या उसकी पत्नी उसको तलाक देकर चली जाती है या उसके बच्चा नहीं होता है तो उसकी बहुत बुरी हालत होती है, उसकी सारी उम्र अवसाद, अकेलेपन में निकल जाती हैं।
इसलिए छोटा परिवार सुखी परिवार के प्रोपेगंडा से बाहर निकलिए। छोटा परिवार दुःखी परिवार और कोई नहीं। अर्थात बड़ा परिवार सुख का आधार के नियम पर चलें।
परंतु मूर्ख हिंदुओं के दिमाग में यह बात घुसी हुई है कि अगर हम एक बच्चा पैदा करेंगे तो उसको पढ़ा लिखा कर IAS बना देंगे।
मगर आने वाले 20 वर्षो में हिंदुओं के घरों से कुछ संबंध हमेशा-हमेशा के लिए समाप्त हो जाएंगे। जैसे; भाई-भाभी, देवर-देवरानी, जेठ-जेठानी, काका-काकी, दादा-दादी सहित अनेक रिश्ते-नाते हिंदुओं के घरों से समाप्त हो जायेंगे। न हिम्मत देने वाला बड़ा भाई होगा, न तेज तर्रार छोटा भाई होगा, न घर में भाभी होगी, न कोई छोटा देवर होगा, बहु भी अकेली होगी, न उसकी कोई देवरानी होगी और न जेठानी। कुल मिलाकर इस 'एक बच्चा' हम दो हमारा एक का फैशन और सिर्फ मैं मैं की मूर्खता के कारण।
हिंदु परिवार समाप्त होते जा रहे हैं, दो भाई वाले परिवार भी अब अंतिम पड़ाव पर हैं। अब राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, सीता, उर्मिला, मांडवी, श्रुतकीर्ति जैसे भरे पूरे परिवार असंभव हो चले हैं। पहले कच्चे घरों में भी बड़े परिवार रह लेते थे और अब बड़े बंगलों में भी ढ़ाई तीन लोग रहने का फैशन चल पड़ा है।
मन दु:खी होता है सोचकर, हम हिंदुओं को ईमानदारी से इस दिशा में सोचना चाहिए। इस चुनौती पूर्ण सदी में हम एक बच्चे को कहां-कहां अड़ा पायेंगे और उसमे हिंमत कौन भरेगा बिना भाइयों के कंधे पर हाथ रखे। अरे माँ-बाप को कंधा देने के लिए भी तीन दूसरे लोगों की तरफ देखना पड़ेगा।
हमारे दादा जी बचपन में कहते थे…
"एक पूत में पूत कोनी, एक आँख में आँख कोनी" "चार लाठी चौधरी, पाँच लाठी पँच"
"जींका घर में दस लाठी, बो पँच गिणे न फंच"
और देखिए किसी कवि के भाव…
"भाई का जीवन भाई है, भाई बिन जग में मान कहाँ"
हिंदुओं की घटती हुई जनसंख्या चिंता का विषय है। हिंदुओं को अपनी मानसिकता परिवर्तन करनी होगी। बच्चों की शादी की उम्र 20 से 22 तक निश्चित करें। कामयाब बनाने के चक्कर में 30 से 35 वर्ष तक खींच रहे हैं इतने में एक पीढ़ी का अंतर हो जाता है। आपकी कामयाबी के समय में सामने वाला बीस का आंकड़ा पार कर देता है।
✍️ साभार
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