प्राण प्रतिष्ठा के दूसरे ही दिन राम मंदिर में हुआ कुछ ऐसा जिसे देखकर चकित रह गए मंदिर के सुरक्षा कर्मी और पूरे देश में भक्तों के मन में एक अलग हो लहर। 23 जनवरी संध्या 5: 50 पर मंदिर के गर्भगृह में एक बंदर प्रवेश कर गया और प्रभु के दर्शन कर दर्शनार्थियों के बीच में से होता हुआ, बिना किसी को कष्ट पहुँचाए पूर्वी द्वार से बाहर निकल गया।”
वैसे तो प्रभु के पहले दर्शन हनुमान जी ने ही किए होंगे इसमें कोई शंका नहीं, क्योंकि जो आयोजन अयोध्या में प्रभु की जनस्थली पर हुवा उसमें प्रभु श्रीराम के अनन्य भक्त हनुमान जी ना आए हों ऐसा असंभव है लेकिन फिर भी एक लीला करने के लिए , भक्तों के मन को हर्षित करने के लिए समझ लीजिए की हनुमान जी ने एक लीला ही कर दी जिसके चर्चा अब पूरे देश की बड़े कौतूहल से हो रही है।
हनुमान गढ़ी में विराजमान हनुमान जी के बिना तो संभवतः ये मंदिर बन ही नहीं पाता... और वैसे भी राम काज हो और हनुमान जी वहां ना हों ऐसा कभी हो सकता है भला?
घटना 23 जनवरी को शाम के करीब 5 बजकर 50 मिनट की है। उस समय तक करीब 3 लाख भक्त रामलला का दर्शन कर चुके थे और करीब दो लाख भक्त बाहर कतार में थे। पहले दिन 5 लाख से अधिक भक्तों ने राम मंदिर में दर्शन किया।
ट्रस्ट की ओर से किए गए पोस्ट में बताया गया है, “एक बंदर दक्षिणी द्वार से गूढ़ मंडप से होते हुए गर्भगृह में प्रवेश करके उत्सव मूर्ति के पास तक पहुंचा। बाहर तैनात सुरक्षाकर्मियों ने उसे देखा। वे बंदर की ओर यह सोच कर भागे कि कहीं वह उत्सव मूर्ति को जमीन पर न गिरा दे। परंतु जैसे ही पुलिसकर्मी बंदर की ओर दौड़े, वैसे ही बंदर शांतभाव से भागते हुए उत्तरी द्वार की ओर गया। द्वार बंद होने के कारण पूर्व दिशा की ओर बढ़ा और दर्शनार्थियों के बीच में से होता हुआ, बिना किसी को कष्ट पहुँचाए पूर्वी द्वार से बाहर निकल गया।”
वैसे अयोध्या में वानर की इस तरह उपस्थिति की यह कोई पहली घटना नहीं है। राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन के दौरान कई प्रमुख मोड़ो पर इसी तरह वानर की उपस्थिति देखी गई है।
इसका एक प्रमाण पत्रकार हेमंत शर्मा की किताब ‘युद्ध में अयोध्या’ में मिलता है। फैजाबाद जिला अदालत ने 1 फरवरी 1986 को विवादित स्थल का ताला खोलने का आदेश दिया था। जिला जज कृष्णमोहन पांडेय के इस आदेश के पीछे एक काले बंदर की दैवीय प्रेरणा को माना जाता है। दरअसल उस दिन एक काला बंदर सारा दिन फैजाबाद की जिला अदालत की छत पर बैठा रहा था।
जज कृष्णमोहन पांडेय 1991 में प्रकाशित अपनी आत्मकथा में लिखा है, “जिस रोज मैं ताला खोलने का आदेश लिख रहा था, मेरी अदालत की छत पर एक काला बंदर पूरे दिन फ्लैग पोस्ट को पकड़कर बैठा रहा। वे लोग जो फैसला सुनने के लिए अदालत आए थे, उस बंदर को फल और मूँगफली देते रहे, पर बंदर ने कुछ नहीं खाया। चुपचाप बैठा रहा। फैसले के बाद जब डीएम और एसएसपी मुझे मेरे घर पहुँचाने गए, तो मैंने उस बंदर को अपने घर के बरामदे में बैठा पाया। मुझे आश्चर्य हुआ। मैंने उसे प्रणाम किया। वह कोई दैवीय ताकत थी।”
मुंबई की 96 साल की कारसेवक शालिनी रामकृष्ण दबीर ने विवादित ढाँचा विध्वंस की साक्षी रही हैं। उन्होंने 6 दिसंबर 1992 के दिन भी वानर की उपस्थिति के बारे में बताया था। उन्होंने कहा था, “वो पल याद आता है जब वो एक दीवार टूटती ही नहीं थी। हम सुबह से मारुति स्त्रोत बोलते थे, लेकिन कुछ हो नहीं रहा था। क्या करें क्या न करें की स्थिति थी, क्योंकि 5 बजे सूर्यास्त हो जाता तो हम कुछ नहीं कर पाते। फिर वहाँ पास के पेड़ से एक वानर आया वो दीवार पर बैठा। हम सब देखने लगे कि क्या बात है ये। वानर ने इधर-उधर सिर घुमाकर देखा और वहाँ से चला गया और फिर धड़ से दीवार गिरी। इसके बाद दो घंटे तक धूल के गुबार से हमें वहाँ कुछ दिखाई नहीं दिया था।”
श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र की इस पोस्ट पर यूजर ने भी ऐसे कॉमेंट किए हैं जो इस कलयुग में भी राम भक्त हनुमान के होने का प्रमाण देते नजर आ रहे हैं। यूजर समीरा ने दुनिया की सबसे खूबसूरत तस्वीर,’श्री राम और बजरंग बली एक साथ’ लिख रामजी जी की तस्वीर वाले भगवा झंडे को निहारते एक बंदर वाली तस्वीर पोस्ट की है।
उधर दूसरी तरफ Secular Chad नाम के एक यूजर ने ‘हम इतने खुश हैं तो हमारे बजरंग बली कितने होंगे जय श्री राम’ लिखकर एक वीडियो पोस्ट किया है। इस वीडियो में एक बंदर तूफान और हवा के बीच एक लकड़ी के पोल पर लगे रामजी की तस्वीर वाले भगवा झंडे की तरफ बढ़ते देखा जा सकता है।