कभी-कभी विचार आता है कि अंग्रेज कितने साहसी और बुद्धिमान रहे होंगे, जिन्होंने एक ठण्डे से प्रदेश से निकलकर, अनजान रास्तों और अनजान जगहों पर जाकर लोगों को अपना गुलाम बनाया.
अगर देखा जाए तो ब्रिटेन की जनसंख्या और क्षेत्रफल भारत के गुजरात राज्य के ही बराबर है... लेकिन, उन्होंने दशकों नहीं बल्कि शताब्दियों तक दुनिया को गुलाम बनाए रखा.
भारत की करोड़ों की जनसंख्या को मात्र कुछ लाख या हजार लोगों ने सदियों तक गुलाम बनाकर रखा, और केवल गुलाम ही नहीं बनाया बल्कि खूब हत्यायें और लूटपाट भी की.
सोच कर देखें कि.... उनको अपनी कौम पर कितना गर्व होता होगा कि हम मुठ्ठी भर लोग सदियों तक दुनिया के देशों को नाच नचाते रहे.
यह एक सच्चाई है कि भारत के एक जिले में शायद ही 50 से अधिक अंग्रेज रहे होंगे.
लेकिन, लाखों लोगों के बीच, अपनी धरती से हजारों मील दूर आकर, अपने से संख्या में कई गुना अधिक लोगों को इस तरह गुलाम रखने के लिए उनमें निश्चय ही अद्भुत साहस रहा होगा।
जब हम इतिहास देखते हैं तो पता चलता है कि उनके पास हम पर अत्याचार करने के लिए अधिक लोग भी नहीं थे बल्कि उन्होंने हम में से ही कुछ लोगों को सेना या पुलिस में भर्ती किया.
हम पर अत्याचार करने के लिए, हमें लूटने के लिए.
सोचिए कि हम लोग अंग्रेजों के सैनिक बन कर, अपने ही लोगों पर कैसे कैसे अत्याचार करते थे ???
चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल जैसे क्रांतिकारी मात्र गिनती के ही थे और उन्हें भी हमारा समाज हेय दृष्टि से देखता था.
जैसे कि आज बजरंग दल सरीखे संगठनों के कार्यकर्ता को देखता है.
आज वही नपुंसक समाज उन चंद लोगों के नाम के पीछे अपना कायरतापूर्ण इतिहास छुपाकर झूठे दम्भ का प्रदर्शन करता है.
रेगिस्तान से मुगल आए....
और, उन्होंने भी हमको लूटा, मारा, और महिलाओं के साथ अन्य पैशाचिक कर्म किये.
दुखद तौर पर हम वहाँ भी नाकाम रहे.उन्होंने हमारे मन्दिर तोड़े, स्त्रियों से बलात्कार किये... लेकिन हमने क्या किया ????
पहले दिन में विवाह होते थे, उनके भय से हम रात को चुपचाप विवाह करने लगे.जब वे कन्याओं को उठा ले जाने लगे तो हम बचपन में ही शादी करने लगे.
और.... अगर उसमें भी असुरक्षा होने लगी तो हम बेटी को पैदा होते ही मारने लगे.... यही कठोर सच्चाई है.
हद तो ये है कि.... हमने 1000 सालों की दुर्दशा से भी कुछ नहीं सीखा.
यानि हम सचमुच स्वाभिमानहीन लोग हैं...
क्योंकि, स्वतंत्रता मिलने पर भी हम आज भी मानसिक गुलाम ही बने हुए हैं.
हमारी शासन व्यवस्था भी न सिर्फ ब्रिटिशकाल की है बल्कि सड़ी हुई भी हैं, क्योंकि उसने इन नाकामियों पर भी कभी मंथन तक नहीं किया.
हमारे ऊपर जब आक्रमण हो रहे थे और जब हम युद्धकाल से गुजर रहे थे, हमारी बहुसंख्यक जनसंख्या इस मानसिकता में थी कि "कोउ नृप होइ हमें का हानी".
तात्पर्य कि आम आदमी को युद्ध से, राज्य से, राजा से कोई सरोकार नहीं था.
बल्कि, उनकी तो यही सोच थी कि यह सब तो क्षत्रियों के काम हैं, उनको करना है तो करें, नहीं करना तो न करें.
यही कारण था कि मुगलों के आक्रमण के सामने राजस्थान को छोड़कर समस्त भारत परास्त हो गया था.
क्योंकि, राजस्थान में क्षत्रियों की जनसंख्या अधिक थी तो वे कुछ संघर्ष करने में अवश्य सफल रहे थे.
एकाधिक और भी क्षेत्र थे जो इस आक्रमण का प्रतिकार करने में सफल हो सके थे.
आज इजरायल बुरी तरह शत्रुओं से घिरा हुआ है लेकिन सुरक्षित है, क्योंकि वहाँ के प्रत्येक व्यक्ति पर देश और धर्म की सुरक्षा का दायित्व है.
लेकिन, हमने ये कार्य केवल क्षत्रियों पर ही छोड़ दिया था.
जबकि सेना में युद्ध के समय माली, नाई, पेंटर, रसोइया तक सभी सैनिक बनकर लड़ने को तैयार रहते हैं.
परंतु, हमने युद्धकाल में भी परिस्थितियों को नहीं समझा और अपनी योजनायें नहीं बनाई न ही अपनी अपनी व्यवस्थाएं नहीं बदलीं.
डॉ. अम्बेडकर का वह कथन सोचने पर मजबूर का देता है कि यदि समाज के एक बड़े वर्ग को युद्ध से दूर नहीं किया गया होता तो भारत कभी गुलाम नहीं बनता.
आप स्वयं विचार करके देखिए कि आताताइयों, मुगलों एवं अंग्रेजों से जिस तरह क्षत्रिय लड़े, अगर पूरा हिन्दू समाज लड़ा होता तो क्या हम कभी गुलाम हो सकते थे ?
सामान्य परिस्थिति में ही समाज को चलाने के लिए उसको वर्गीकृत किया जाता है...
लेकिन, विपत्तिकाल में नीतियों में परिवर्तन कर लिया जाता है...
परंतु, जातिवाद मानसिकता के कारण हम इसमें पूरी तरह असफल रहे....
इसीलिए, हमें 1000 वर्षों की गुलामी झेलनी पड़ी।
अटल जी ने प्लासी की लड़ाई की चर्चा करते हुए एक भाषण में कहा था कि एक युद्ध जीतने के बाद जब 1000 अंग्रेज सैनिकों ने विजय-जुलूस निकाला...
तो, सड़क के दोनों तरफ करीब 20,000 लोग देखने आए थे.
अगर ये 20,000 लोग पत्थर-डण्डे से भी मारते, तो अंग्रेजो के 1000 सैनिकों को भागते भी नहीं बनता. लेकिन, ये 20 हजार लोग केवल मूक दर्शक बनकर खड़े थे.
आज भी कुछ नहींं बदला है...
मुगलों और अंग्रेजों का स्थान एक खास वर्ग ने ले लिया है, और भांडपथी/सेरकुलरों के रूप में एक की फौज भी खड़ी हो गई है.
लेकिन, सबसे बड़ी विडंबना तो यह है कि हम आज भी बंटे हुए हैं, 100 करोड़ होकर भी मूक दर्शक बने हुए हैं।
इसीलिए, अब अंतिम फैसला हमें और आपको करना है कि....
हमें जातिवाद प्यारा है या फिर अपना देश और अपना धर्म ????
जय महाकाल...!!!