. #शुभ_रात्रि
माता के प्रति बालक का प्रेम सबसे सरल और स्वाभाविक है। क्या मनुष्य, क्या मनुष्येत्तर पशु-पक्षी, कीट-पतंग सभी अपने बच्चों को प्यार करते हैं। माता में तो वह प्यार और भी अधिक होता है। अन्य योनियों में तो बहुधा माता ही एक मात्र शिशु की संरक्षक एवं स्नेह भाजन होती है। अन्य रिश्तों में प्रेम का आधार गुण-दोष एवं लाभ-हानि होती है, पर माता का स्नेह उन सबसे ऊंचा, परम निःस्वार्थ और त्याग-बलिदानों से भरा पूरा होता है।
"कुपुत्रो जायेत् क्वचिदपि कुमाता न भवति" पुत्र कुपुत्र हो जाता है पर माता, कुमाता नहीं होती। इस उक्ति के आधार पर माता का रिश्ता इस संसार में सर्वोपरि प्रेम का प्रतीक माना गया है। अतएव ईश्वर के साथ उसी की स्थापना अधिक श्रेयस्कर सिद्ध होती है। हम भगवान् को अपनी माता मानें और उसी आधार पर भगवान् हमें अपना पुत्र मानते हुये अनन्त वात्सल्य की वर्षा करे तो यह भावनात्मक आदान-प्रदान प्रेम परम्परा का एक महान् घटक बन जाता है। ईश्वर को माता मानकर एक मातृ-प्रतिमा की अथवा ध्यान छवि की स्थापना के पश्चात् उपासना पथ पर प्रगति में गतिशीलता उत्पन्न होती है। भावनात्मक आदान-प्रदान के लिये इस प्रकार की स्थापना आवश्यक है।
इसके उपरान्त हमारी अनुभूति में दूसरी स्थापना यह होनी चाहिये कि इष्टदेव सर्वव्यापी और न्यायमूर्ति है । घट-घट में, कण-कण में समाये हैं। अपने रोम- रोम में, भीतर और बाहर उन्हीं की सत्ता ओत-प्रोत है। तिल भर भी जगह ऐसी नहीं जहां वे न हों। हर जड़-चेतन पदार्थ में, अपने समीपवर्ती और दूरवर्ती वातावरण में उन्हीं का प्रकाश जगमगा रहा है। उन्हें हर जगह हम देख सकते हैं और वे हर पदार्थ में से अपनी सहस्रों आंखों द्वारा हमारे बाह्य और अन्तरंग स्तर को बारीकी से देखते रहते हैं। हमारा कोई कृत्य, कोई विचार, कोई भाव उनसे छिपा नहीं रहता।
यह सर्वव्यापी सत्ता पक्षपात से सर्वथा दूर - पूर्णतया न्यायशील है। उनका व्यवहार निष्पक्ष न्यायमूर्ति जज की तरह है, जो अपने प्रिय से प्रिय के साथ पक्षपात और शत्रु के साथ भी अन्याय नहीं कर सकता। कर्म का माप दंड ही उसकी दृष्टि में किसी के भले बुरे होने की कसौटी है। सत्कर्म, सद्भाव और सद्विचार ही उसे प्रिय हैं। इन्हीं विशेषताओं के आधार पर वह किसी की महत्ता आंकता है और इसी न्याय तुला पर तोल कर किसी से संतुष्ट अथवा रुष्ट होता है। निर्धारित धर्म मर्यादाओं को तोड़ने वाला ही उसका शत्रु कोप- भाजन अथवा विरोधी है और जो सृष्टि को सुव्यवस्थित बनाये रहने के लिये धर्म कर्तव्यों का उचित रीति से पालन करता है, वही उसका प्रिय पात्र स्नेह भोजन और सहायता का अधिकारी है।
. 🚩जय सियाराम 🚩
. 🚩जय हनुमान 🚩