जवाहरलाल नेहरू ने कई रणनीतिक गलतियाँ कीं, जिसके कारण 1962 में चीन के खिलाफ़ युद्ध में भारत की अपमानजनक हार हुई। आइए तिब्बत से लेकर फॉरवर्ड पॉलिसी तक उनकी प्रमुख गलतियों पर नज़र डालते हैं।
पहली गलती:
चीन को तिब्बत पर कब्ज़ा करने देना (1950)
•जब चीन ने 1950 में तिब्बत पर आक्रमण किया, तो नेहरू ने कुछ नहीं किया।
•उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में इस मुद्दे को नहीं उठाया, क्योंकि उन्हें डर था कि इससे चीन नाराज़ हो जाएगा।
•परिणाम? चीन ने तिब्बत पर कब्ज़ा कर लिया और भारत के साथ सीधी सीमा बना ली। एक रणनीतिक आपदा।
दूसरी गलती: चीन पर भरोसा करना और “हिंदी-चीनी भाई-भाई” की कल्पना
•नेहरू ने खुफिया रिपोर्टों को नजरअंदाज कर दिया कि चीन अक्साई चिन के माध्यम से सड़क बना रहा था।
•उन्होंने मैत्रीपूर्ण संबंधों की उम्मीद में चीन की संयुक्त राष्ट्र सदस्यता का भी समर्थन किया।
•इस बीच, चीन युद्ध की तैयारी कर रहा था।
तीसरी गलती: “फॉरवर्ड पॉलिसी” (1959-62)
•भारत की सीमा को सुरक्षित करने के बजाय, नेहरू ने विवादित क्षेत्रों में छोटी-छोटी सैन्य चौकियाँ बनाने का आदेश दिया, यह सोचकर कि चीन जवाबी कार्रवाई नहीं करेगा।
•भारतीय सेना संख्या में कम, हथियारों में कम और तैयार नहीं थी।
चौथी गलती: सैन्य चेतावनियों को नज़रअंदाज़ करना
•सेना प्रमुख जनरल थिमैया ने नेहरू को चेतावनी दी थी कि भारत चीन के साथ युद्ध के लिए तैयार नहीं है।
•रक्षा मंत्री कृष्ण मेनन ने चेतावनियों को खारिज कर दिया। नेहरू ने उनकी बात मान ली।
•सेना के पास पुरानी राइफलें थीं जबकि चीन के पास आधुनिक तोपखाना था।
पांचवी गलती: चीन के इरादों को गलत तरीके से समझना
•चीन ने नेहरू के कार्यों को आक्रामकता के रूप में देखा और “भारत को सबक सिखाने” का फैसला किया।
•20 अक्टूबर, 1962 को चीन ने बड़े पैमाने पर हमला किया। भारतीय सेनाएं ध्वस्त हो गईं।
•नेहरू हैरान रह गए। उनके पास कोई बैकअप प्लान नहीं था।
छठी गलती: गोवा के बाद अति आत्मविश्वास (1961)
•भारत द्वारा पुर्तगाल से गोवा को सफलतापूर्वक अपने अधीन करने के बाद, नेहरू ने सोचा कि चीन से भी उसी तरह निपटा जा सकता है।
•उन्होंने चीन की सैन्य ताकत को कम करके आंका और भारत की तत्परता को बढ़ा-चढ़ाकर बताया।
7वीं गलती: युद्ध के दौरान कमज़ोर नेतृत्व
•जैसे-जैसे युद्ध बढ़ता गया, नेहरू खोये हुए नज़र आए।
•उन्होंने मदद के लिए अमेरिका से अपील की, लेकिन बहुत देर हो चुकी थी।
•चीन ने भारत के महत्वपूर्ण इलाकों पर कब्ज़ा करने के बाद युद्ध विराम की घोषणा कर दी। यह भारत के लिए अपमानजनक था।
परिणाम: •3,000 से ज़्यादा भारतीय सैनिक मारे गए। •चीन ने अक्साई चिन पर कब्ज़ा कर लिया और अभी भी उस पर कब्ज़ा जमाए हुए है। •नेहरू की राजनीतिक छवि बिखर गई। उन्होंने स्वीकार किया: “हम अपने द्वारा बनाए गए कृत्रिम माहौल में रह रहे थे।”
यह घटना ब्रूस रीडेल की पुस्तक "जेएफके फॉरगॉटन क्राइसिस" में दर्ज है