सुप्रीम कोर्ट ने अलाहबादिया केस में कहा: आप अपना पॉडकास्ट पुनः आरंभ कर सकते हैं, पर उसमें मर्यादित रहें। यह बताता है कि कितनी "महान" न्यायपालिका है हमारी। पहली बात, उसने अपने शो पर ऐसा कुछ नहीं कहा था, शो समय रैना का था। दूसरी बात, वो जो पॉडकास्ट करता है उसमें अश्लीलता नहीं होती।
सुप्रीम कोर्ट को केस में आरोपित व्यक्ति के बारे में या उस केस तक के ही बारे में कुछ भी नहीं पता। जब उन्होंने अलाहबादिया को अपने चैनल पर शो डालने से मना किया था तब भी लॉजिक समझ में नहीं आया कि भाई शो किसी और का था। पर हाँ, देश में न्याय ऐसे ही मिलता है। ढंग का वकील कर लो, पैसे खूब हों तो आप कुछ भी कर के, कहीं से भी बच सकते हो। हाँ, कोर्ट को स्वयं को ज्ञानी बताने के लिए बीच-बीच में कुछ न कुछ कमेंट तो पास करते रहना पड़ेगा।
रिश्वतखोरी में शायद ही कोई दिन जाता हो जब कोई भ्रष्टाचारी एंटीकरप्शन टीम द्वारा न पकड़ा जाता हो. लेकिन भारत ही ऐसा देश हैं जिन्हे लगता हैं लालच , पक्षपात और भ्रष्टाचार जैसा मानवीय दुर्गुण न्यायाधीशों को छू भी नहीं सकता।
भ्रष्ट न्यायाधीशों की पहचान और उन्हें सजा देने का कोई सिस्टम भारत में प्रचलित भी हैं इसमें संशय हैं. पिछले दिनों ही जब एक जज के भ्रष्टाचार की जांच के लिए लोकपाल ने सुप्रीम कोर्ट से दिशा निर्देश प्राप्त करने की कोशिश की, सुप्रीम कोर्ट ही उस भ्रष्टाचारी को बचाने की कोशिश करता नज़र आया और लोकपाल की जांच पर रोक लगा दी.