पत्नी को "वामांगी" कहा जाता है, जिसका अर्थ है पति के शरीर का बायां हिस्सा। हिंदू परंपरा में पुरुष का बायां भाग स्त्री का प्रतिनिधित्व करता है."वामांगी" शब्द का अर्थ है "बाएं हिस्से" या "शरीर का बायां भाग, पत्नी को "वामांगी" इसलिए कहा जाता है, क्योंकि माना जाता है कि वह पति के बाएं हिस्से की स्वामिनी है।
यह विश्वास हिंदू पुराणों से आता है, जहां यह कहा गया है कि स्त्री की उत्पत्ति भगवान शिव के बाएं अंग से हुई है। इसका प्रतीक शिव का अर्धनारीश्वर रूप है, जो पुरुष और स्त्री ऊर्जाओं के संगम को दर्शाता है।
🔹पति-पत्नी के बाएं और दाएं हिस्से का प्रतीकात्मक महत्व:
- हस्तरेखा विज्ञान और अन्य पारंपरिक विज्ञानों में माना जाता है कि पुरुष का दाहिना हाथ उसका स्वयं का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि बायां हाथ उसकी पत्नी का प्रतिनिधित्व करता है।
- कुछ रीति-रिवाजों और दैनिक गतिविधियों जैसे सोते समय, सभा में बैठने, सिंदूर लगाने, भोजन करते समय, पत्नी को पति के बाएं ओर रहना चाहिए, क्योंकि इससे शुभ फल मिलता है।
- हालांकि, कुछ विशेष अवसरों पर इस नियम में अपवाद भी हैं।
🔹 पत्नी को कब दाएं ओर बैठना चाहिए?
- धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, कन्यादान, विवाह, यज्ञ, जातकर्म, नामकरण और अन्नप्राशन जैसे पवित्र संस्कारों के दौरान पत्नी को पति के दाएं ओर बैठना चाहिए।
- ये कार्य आध्यात्मिक या पारलौकिक ("परलोकिक") माने जाते हैं और पुरुष-प्रधान माने जाते हैं, इसलिए इन अवसरों पर पत्नी को दाएं ओर बैठने का नियम है।
🔹बाएं और दाएं बैठने के पीछे का तर्क…
सांसारिक कार्य, जैसे घरेलू जिम्मेदारियां, स्त्री-प्रधान माने जाते हैं, इसलिए ऐसे कार्यों में पत्नी पति के बाएं ओर बैठती है।
- आध्यात्मिक या धार्मिक कार्य, जैसे यज्ञ और विवाह, पुरुष-प्रधान माने जाते हैं, इसलिए इन कार्यों में पत्नी को दाएं ओर बैठने की सलाह दी जाती है।
- यह व्यवस्था पुरुष और स्त्री की ऊर्जाओं के संतुलन को दर्शाती है।
🔹पत्नी को "अर्धांगिनी" क्यों कहा जाता है?
- सनातन धर्म में पत्नी को "वामांगी" के साथ-साथ "अर्धांगिनी" भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है "आधा अंग।"
- दोनों शब्दों का अर्थ एक ही है – पत्नी के बिना पति अधूरा माना जाता है।
- पत्नी पति के जीवन को पूरा करती है, उसे खुशहाली और समृद्धि प्रदान करती है, और घर का ध्यान रखती है।
🔹पति-पत्नी के संबंध का महत्व ग्रंथों में…
- पति-पत्नी के संबंध को हिंदू दर्शन में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
- महाभारत में भीष्म पितामह ने कहा था कि पत्नी को सदैव प्रसन्न रखना चाहिए, क्योंकि वह ही वंश की वृद्धि का कारण है और वह घर की लक्ष्मी है।
- यदि पत्नी प्रसन्न है, तो घर में समृद्धि और खुशहाली आती है।
- अन्य धार्मिक ग्रंथों में भी पत्नी के गुणों और उसके महत्व को विस्तार से समझाया गया है।