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कृप्या पढ़े इसमे अथर्ववेद के कुछ महत्वपूर्ण सूक्तो में पृथ्वी और भूमि के प्रति मनुष्यो केकर्तव्य बताए गए हैं .
1) पृथिवी सूक्त :
अथर्ववेद का पृथिवीसूक्त या भूमिसूक्त (अ० १२/१) अत्यन्त महत्त्वपूर्ण सूक्त है। विश्व के किसी भी धर्मग्रन्थ में मातृभूमि का इतना सशक्त वर्णन प्राप्त नहीं है।
इस सूक्त के 63 मंत्रों में पृथिवी को माता के रूप में प्रस्तुत किया गया है।पृथिवी को रत्नों की खान, पालक, रक्षक और समग्र ऐश्वर्य प्रदान करने वाली कहा गया है ।
देशवासियों के लिए निर्देश है कि वे देशरक्षार्थ बलिदान होने को उद्यत रहें। पृथिवी भाषाभेद, धर्मभेद, विचारभेद होने पर भी मानवमात्र को एक परिवार के तुल्य पालती है।पृथिवी के आधारभूत तत्त्व हैं - सत्य, ऋत, दीक्षा (अनुशासन), तप (तपोमय जीवन), ब्रह्म (आस्तिकता एवं ज्ञानोन्नति) एवं यज्ञ (आत्मसमर्पण एवं स्वार्थत्याग)।
(क) माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्याः। (अथर्ववेद 12/1/22)
(ख) वयं तुभ्यं बलिहृतः स्याम । (अथर्ववेद 12/2/62)
(ग) जनं बिभ्रती बहुधा विवाचसं
नानाधर्माणं पृथिवी यथौकसम् । (अथर्ववेद 12/1/45)
(घ) सत्यं बृहद् ऋतमुग्रं दीक्षा तपो
ब्रह्म यज्ञः पृथिवीं धारयन्ति ।। (अथर्ववेद 12/1/1)
2) ब्रह्मचर्य सूक्त :
अथर्ववेद (11.5 ) में इस सूक्त के 26 मंत्रों में ब्रह्मचर्य (संयम), ब्रह्मचारी के गुण-धर्म, गुरु-शिष्य के उदात्त संबन्ध और अनुशासन के महत्त्व पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है।
आचार्य, राजा, युवकवर्ग और कन्याओं को ब्रह्मचर्य का पालन करना अनिवार्य बताया है।ब्रह्मचर्य से देवों ने मृत्यु पर विजय प्राप्त की। राजा ब्रह्मचर्य का पालन करने पर ही राष्ट्र की रक्षा कर सकता है ।
संयमी आचार्य ही विद्यार्थी को संयमी बना सकता है ।
(क) ब्रह्मचर्येण तपसा देवा मृत्युमुपाघ्नत। (अथर्ववेद 11/5/19)
(ख) आचार्यो ब्रह्मचर्येण ब्रह्मचारिणमिच्छते। (अथर्ववेद 12/5/17)
(ग) ब्रह्मचारी ......श्रमेण लोकान् तपसा पिपर्ति। (अथर्ववेद 11/5/4)
3) मधुविद्या-सूक्त : अथर्ववेद के कांड 9 सूक्त 1 के 24 मंत्रों में मधुविद्या का विस्तृत वर्णन किया गया है।
मधुविद्या का अभिप्राय है- जीवन में माधुर्य गुण हो। द्युलोक, अन्तरिक्ष, पृथिवी आदि सभी पंच भूतों में मधुरता है। प्रकृति की सभी वस्तुएँ मधुरता प्रदान करती हैं।
मधुविद्या को ही मधुकशा कहते हैं। जो मधुविद्या को जान लेता है, उसके जीवन में मधुरता का वास होता है।
(क) यो वै कशायाः सप्त मधूनि वेद मधुमान् भवति । (अथर्ववेद 9/1/22)
(ख) मधु जनिषीय मधु वंशिषीय । (अथर्ववेद 9/1/14)
(ग) मधुमान् भवति, मधुमद् अस्याहार्यं भवति । (अथर्ववेद 9/1/23)
4) विवाह सूक्त : अथर्ववेद का पूरा 14वाँ कांड 'विवाह-सूक्त' है ।
इसमें 2 सूक्त और 139 मन्त्र हैं। इसमें विवाह-संस्कार की विधियों, पति-पत्नी के कर्तव्य, विवाह-संबन्ध का अविच्छेद्य होना, पतिव्रता-धर्म, पत्नी के अधिकार और कर्तव्य आदि का विस्तृत विवेचन है । पति अग्नि तत्त्व है और स्त्री सोमीय तत्त्व है ।
दोनों के संयोग से ही सृष्टिक्रम चलता है।
(क) पत्युरनुव्रता भूत्वा सं नयस्वामृताय कम् । (अथर्ववेद 14/1/42)
(ख) सम्राज्ञ्येधि श्वशुरेषु सम्राज्ञ्युत देवृषु । (अथर्ववेद 14/1/44)
(ग) सुमंगली प्रतरणी गृहाणां सुशेवा पत्ये श्वशुराय शंभूः । (अथर्ववेद 14/2/26)
(घ) पितृभ्यश्च नमस्कुरु । (अथर्ववेद 14/2/20)