16 जनवरी : हिंदवी साम्राज्य के संकल्प के साथ लहराते "भगवा ध्वज" व "जय भवानी" के उद्घोष संग आज ही हुआ था छत्रपति शंभूराजे जी महराज का राजतिलक
हिंदुस्तान में हिंदवी स्वराज्य की स्थापना करने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज के बारे में तो आपने अवश्य पढ़ा होगा। परन्तु उनके बेटे छत्रपति संभाजी महाराज के बारे में आप अपेक्षाकृत कम ही जानते होंगे। ये कहना भी गलत नहीं होगा कि हममें से कई लोगों ने उनका नाम न के बराबर ही सुना होगा। जबकि सच्चाई ये है कि उनकी वीरता ने उन्हें उस समय के श्रेष्ठतम योद्धाओं की श्रेणी में ला दिया था। आज भी जब हम साहसी योद्धाओं की बात करते हैं तो संभाजी महाराज का नाम अग्रिम पंक्ति में छपा हुआ मिलता है। असल इतिहास को बढ़ावा देने वाले इतिहासकार के.पी.दुबे लिखते हैं कि संभाजी महाराज का जीवन एवं उनकी वीरता ऐसी थी कि उनका नाम लेते ही औरंगजेब के साथ तमाम मुगल सेना थर्राने लगती थी। संभाजी के घोड़े की टाप सुनते ही मुगल सैनिकों के हाथों से अस्त्र शस्त्र छूटकर गिरने लगते थे और वो डरकर भाग जाते थे। यही कारण था कि छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद भी वीर संभाजी महाराज ने हिंदवी स्वराज्य को अक्षुण्ण बनाए रखा था।
संभाजी एक ऐसे वीर थे जिन्होंने भगवे ध्वज को बुलंद करने और हिंदुत्व को बचाने के लिए अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए। उन्होंने दुष्कर यातनाएं सहन की परन्तु अपने जीते जी हिन्दुत्व पर आँच नहीं आने दिया। आइए आज हम पढ़ते हैं एक ऐसे वीर की वीरगाथा, जिसे वामपंथी एवं इस्लामिक इतिहासकारों ने इतिहास के पन्नों में कहीं छिपा दिया ताकि हम उनकी शौर्यगाथा को नहीं पढ़ सकें। हम पढ़ते हैं वीर "संभाजी महाराज" के बारे में।
✍ ● कौन थे संभाजी महाराज
संभाजी महाराज, महान हिन्दू सम्राट छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र थे। संभाजी महाराज का जन्म 14 मई 1657 को पुरंदर के किले में हुआ था। इनकी माता का नाम सईबाई था। जब संभाजी महाराज मात्र 2 वर्ष के थे तब इनकी माता सईबाई का देहांत हो गया। संभाजी का पालन पोषण उनकी माता के स्थान पर उनकी दादी जीजाबाई ने किया। जीजाबाई ने ही छत्रपति शिवाजी महाराज का लालन-पालन और पोषण किया था तो स्वाभाविक सी बात थी कि जो सीख उन्होंने अपने पुत्र छत्रपति शिवाजी महाराज को दिए थे वही उनके पौत्र संभाजी महाराज में आना एक आम बात थी। उन्होंने ये सब इसलिए किया क्यों कि वह चाहती थीं कि छत्रपति शिवाजी महाराज का बेटा और उनका पोता बिल्कुल वैसा ही बने जैसे छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपना जीवन व्यतीत किया था। राजमाता जीजाबाई ने वैसे ही उन्हें सारे वेद शास्त्रों का ज्ञान दिया और उन्हें युद्ध विद्या का भी ज्ञान दिया। राजमाता जीजाबाई ने छत्रपति शिवाजी महाराज की ही तरह संभाजी महाराज को भी श्रेष्ठ संस्कार दिए कि वे औरतों की हमेशा इज्जत करें क्यों कि औरतों में एक माता छुपी हुई होती है, जो हर संसार के नर को जन्म देती है ताकि संसार आगे बढ़ सके तो संभाजी महाराज भी औरतों की बहुत इज्जत करते थे। इसके अलावा दादी जीजाबाई ने संभाजी महाराज को कूटनीति एवं राजनीति की शिक्षा भी प्रदान की। साथ ही साथ छत्रपति शिवाजी महाराज ने भी इस बात का विशेष ध्यान रखा कि उनका पुत्र युद्ध कला में उन्हीं की तरह निपुण हो, जो कि बाद में बिल्कुल सही साबित हुआ। संभाजी, छत्रपति शिवाजी महाराज जैसे तो नहीं किंतु लगभग उनके जितने ही महान योद्धा बनकर उभरे।
✍ ● जब छत्रपति शिवाजी महाराज से रूठ गए थे, संभाजी महाराज
संभाजी महाराज का जीवन बचपन से ही बहुत कठिनाइयों में व्यतीत हुआ था। उन्हें बचपन से ही काफी संघर्षों का सामना करना पड़ा। उनकी एक सौतेली माँ सोयराबाई, अपने पुत्र राजाराम को छत्रपति शिवाजी का उत्तराधिकारी बनाना चाहती थी। इसलिए उसने षड्यंत्र रचा। कहते हैं कि इसी के चलते छत्रपति शिवाजी महाराज और संभाजी महाराज के बीच कुछ मतभेद होने लगे थे। संभाजी महाराज ने कई तरीके से अपनी वीरता को सिद्ध किया परन्तु छत्रपति शिवाजी महाराज, संभाजी महाराज को उनके उत्तराधिकारी बनने योग्य नहीं समझ रहे थे। तब कुंठित होकर संभाजी महाराज ने मुगलों के साथ मिल जाने का निर्णय लिया था। इसी के चलते कुछ दिनों पश्चात वे मुगलों के साथ जाकर मिल गए। लेकिन ये सब अधिक दिनों तक नहीं चला क्यों कि उन्होंने यह देखा कि मुगल उनके हिंदू भाइयों के साथ अत्यधिक अत्याचार करते हैं।और उनकी रणनीतियां हिंदुत्व को लेकर काफी गलत है। यह देखकर उन्हें ग्लानि महसूस हुई और फिर वह वापस लौटकर छत्रपति शिवाजी के पास ही आ गए और शिवाजी महाराज से अपने किए पर क्षमा मांगी। साथ ही संभाजी ने शिवाजी महाराज से कहा कि आप मुझे जो भी कार्यभार देंगे, मैं उसे बेजिझक संभाल लूंगा। कहते हैं इसके बाद छत्रपति महाराज ने उन्हें प्रमुख सैन्य अधिकारी नियुक्त कर दिया।
👉 इतिहासकार देव वर्मा लिखते हैं कि जब संभाजी अपने पिताजी छत्रपति शिवाजी के पास वापस आए तो उन्हें पूरी तरह यकीन हो चुका था कि उनके पिता छत्रपति शिवाजी बिल्कुल ठीक कहते हैं। उन्हें विश्वास हो गया था की मुगल, हिंदुत्व के खिलाफ ही काम करते हैं वे यह चाहते हैं कि हर हिन्दू को इस्लाम में परिवर्तित कर दिया जाए और हिंदुत्व को भारतभूमि से बिल्कुल खत्म कर दिया जाए। इसके बाद उन्होंने मुगलों के विरुद्ध काम करना शुरू कर दिया और मुगलों द्वारा धर्म परिवर्तित किए हुए लोगों का फिर से सनातन धर्म में वापसी करवाना संभव करवा दिया। संभाजी महाराज ने यह निर्णय ले लिया था कि वह अब मुगलों की इस रणनीति को भारत देश पर चलने नहीं देंगे और वह इस कार्य में बहुत अधिक सफल भी रहे।
✍ ● अजय योद्धा संभाजी
छत्रपति शिवाजी महाराज के देहांत के बाद कुछ समय तक मराठा साम्राज्य में सत्ता के लिए संघर्ष चला। संभाजी महाराज की सौतेली माँ सोयराबाई ने उन्हें उत्तराधिकारी मानने से मना कर दिया, और कुछ कुटिल दरबारियों के साथ मिलकर अपने 10 वर्षीय पुत्र राजाराम को सत्ता पर काबिज़ कर दिया। लेकिन ये सब ज्यादा दिनों तक नहीं चला और अंततः 30 जुलाई 1680 को संभाजी महाराज और उनके अन्य साथियों को राज्य सौंपा गया। किंतु शुभ मुहूर्त न होने के कारण उनका आधिकारिक राज्याभिषेक कुछ समय के लिए टाल दिया गया। लगभग छः माह के बाद 16 जनवरी 1681 को पन्हाला में शाहूजी महाराज का राज्याभिषेक कर उन्हें आधिकारिक तौर पर महाराज की उपाधि प्रदान की गई। किंचित कारणों से संभाजी महाराज के साम्राज्य का अधिक विस्तार नहीं हो पाया। किंतु उन्होंने अपने राज्य की सीमा सुरक्षित रखने के लिए बहुत से युद्ध किए थे। इतिहासकार लिखते हैं कि संभाजी महाराज ने अपने राज्यकाल में 200 से अधिक छोटे-बड़े युद्ध लड़े। और ये जानकर आश्चर्य होगा किसी भी विरोधी सेना में इतनी काबिलियत नहीं थी कि उन्हें पराजित कर सके।
✍ ● जब औरंगजेब ने छल से पकड़ा संभाजी महाराज को
संभाजी महाराज अपने अल्पकालिक शासन में एक अच्छे शासक के रूप में उभरे और उन्होंने अपनी प्रजा को खुश रखने के लिए हरसंभव प्रयास किया। वह एक हिंदुत्ववादी व्यक्ति थे साथ ही उन्हें वे लोग अत्यधिक प्रेमी थे जो अपने धर्म के साथ-साथ दूसरे धर्मों को भी सम्मान दें। पर वह उन लोगों के विरुद्ध थे जो दूसरे धर्म के लोगों पर अन्याय किया करते थे। शाहूजी महाराज का कार्यकाल वो समय था जब औरंगजेब ने धन और बल का उपयोग कर गैर इस्लामिक लोगों के धर्मांतरण को चरम पर पहुंचा दिया था। औरंगजेब ने लाखों हिंदू परिवार के लोगों को इस्लाम कबूल करने की जबरदस्ती किया। क्रुर औरंगजेब हिंदुओ के समक्ष दो विकल्प रखता - "या तो सनातन धर्म का त्याग कर इस्लाम अपना लें अन्यथा यातनाएं सहन कर शरीर त्याग दें"।
👉 लेकिन औरंगजेब की इस कुचाल पर सबसे बड़ा रोड़ा बने संभाजी महाराज। उन्होंने न सिर्फ धर्मांतरण को रोकने में अपनी ताकत लगा दी, बल्कि धर्म परिवर्तित हो चुके लोगों को सनातन धर्म में वापस लाने में मदद करते। यह सब देखते-सुनते औरंगजेब बौखला गया था, क्यों कि महाराज जी ने उसके मंसूबों पर पानी फेर दिया। औरंगजेब को समझ आने लगा था कि संभाजी महाराज के रहते हुए भारतभूमि का इस्लामीकरण कभी भी नहीं हो सकता। तब उसने महाराज को पकड़ने के लिए अपने श्रेष्ठतम रणनीतिकार को भेजा ताकि वो छल से उन्हें ले आए। लेकिन महाराज ने ये पहले ही भाँप लिया और औरंगजेब के कपट कूटनीति को बिल्कुल ध्वस्त कर दिया। जब-जब औरंगजेब संभाजी महाराज को पकड़ने के लिए सेना भेजा करता था तो वह उनके सैनिकों को मार कर भागने में हमेशा कामयाब हो जाया करते थे। और फिर से अपने कार्य में जुट जाया करते थे। इसी दौरान कोकण संभाग में संगमेश्वर के निकट संभाजी महाराज के ४०० सैनिकों को मुकर्रबखान के ३००० सैनिकों ने घेर लिया और उन के बीच भीषण युद्ध छिड़ गया। इस युद्ध के बाद राजधानी रायगड में जाने के इरादे से संभाजी महाराज अपने जांबाज सैनिकों को लेकर बडी संख्या में मुगल सेना पर टूट पड़े। मुगल सेना द्वारा घेरे जाने पर भी संभाजी महाराज ने बड़ी वीरता के साथ उनका घेरा तोडकर वहां से निकल गए। लेकिन तभी संभाजी के एक रिश्तेदार ने मुगलों को सूचित कर दिया कि संभाजी रायगढ़ के बजाय एक हवेली में ठहरे हुए है। यह बात आग की तरह औरंगजेब और उसके पुत्रों तक पहुंच गई कि संभाजी एक हवेली में ठहरे हुए है। जो काम औरंगजेब एवं उसकी शक्तिशाली सेना न कर सकी वह काम एक मुखबीर ने कर दिखाया।
👉 औरंगजेब की सेना में संभाजी का भय इस कदर हावी था की पकड़े जाने के बाद भी उन्हें लोहे की जंजीरों से बांधा गया। और उन्हीं बेड़ियों से जकड कर उन्हें औरंगजेब के पास ले जाया गया। संभाजी महाराज को जब ‘दिवान-ए-खास‘ में औरंगजेब के सामने पेश किया गया तो उस समय भी वे अडिग थे और उन के चेहरे पर किसी भी प्रकार का भय नहीं था। उनसे जब औरंगजेब को झुक कर सलाम करने के लिए कहा गया तो उन्होंने ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया और निडरता के साथ उसे एकटक घूरते रहे। परिणामत: संभाजी के ऐसा करने पर खुद औरंगजेब अपने सिंहासन से उतर कर उनके समक्ष पहुंच गया।
👉 शाहूजी महाराज के मुख पर गर्वीली मुस्कान उभर आई, दरबार में कानाफूसी होने लगी कि कैसे शाहूजी महाराज ने औरंगजेब को गद्दी पर से उतर नीचे आने के लिए विवश कर दिया। औरंगजेब गुस्से में जल-भून रहा था लेकिन उसने संभाजी महाराज को प्रलोभन दिया कि यदि वे इस्लाम कबूल करते हैं तो उन्हें छोड़ दिया जाएगा और उनके सभी गुनाह भी माफ कर दिये जाएंगे। लेकिन संभाजी महाराज ने औरंगजेब के सभी प्रलोभन को ठुकरा दिया। इतिहासकार आगे लिखते हैं कि इससे क्रोधित होकर औरंगजेब ने उनकी आंखो में लोहे की गरम सलाखें डाल कर उनकी आंखे निकलवा दी। फिर भी संभाजी अपनी धर्म निष्ठा पर अडिग रहे और उन्होंने किसी भी सूरत में हिंदू धर्म का त्याग कर इस्लाम को कबूल करना स्वीकार नहीं किया। उस के बाद सतारा जिले के तुलापुर में भीमा- इंद्रायणी नदी के किनारे संभाजी महाराज को लाकर उन्हें लगातार प्रताड़ित किया जाता रहा और बार-बार उन पर इस्लाम कबूल करने के लिए दबाव डाला जाता रहा। आखिर उनके नहीं मानने पर औरंगजेब ने उनका वध करने का आदेश दिया। इसके लिये ११ मार्च १६८९ का दिन तय किया गया क्योंकि उसके ठीक दूसरे दिन वर्ष चैत्र नवरात्र की प्रतिपदा थी। औरंगजेब चाहता था कि संभाजी महाराज की मृत्यु के कारण हिंदू जनता प्रतिपदा के अवसर पर अपने राजा की मौत का शोक मनाए।
👉 ११ मार्च १६८९ के सुबह संभाजी महाराज और उनके सहयोगी कवि कलश को एक साथ चौपाल पर ले जाया गया। पहले कवि कलश की गर्दन काटी गई। उस के बाद संभाजी के हाथ- पांव तोड़े गए, उनपर कोड़े बरसाए गए। फिर उनकी गर्दन उतारकर उन्हें पूरे बाजार में जुलूस की तरह धुमाया गया। इस तरह हज़ारों यातनाओं को सहने के बावजूद भी संभाजी अपने पथ से डिगे नहीं और वीरगति को प्राप्त हो गए। जब-जब हम इतिहास के पन्नों को पलटेंगे तो यह बात स्पष्ट रूप से साबित होता है कि जो काम औरंगजेब तथा उसकी सेना आठ वर्षों तक नही कर सकी,वह काम महाराज के अपने ही एक रिश्तेदार ने कर दिखाया। साथ ही हमें ये भी पता चलता है कि औरंगजेब ने अत्यधिक छल से संभाजी महाराज को मार दिया, लेकिन वह चाहकर भी उन्हें पराजित नहीं कर सका। संभाजी महाराज अपने पूरे जीवन में एक भी युद्ध नहीं हारे, और औरंगजेब यह जानता था कि वो उन्हें सीधे तौर पर संभाजी को पराजित नहीं कर सकता है। संभाजी महाराज ने अपने प्राणों पर खेलकर हिंदू धर्म की रक्षा की और अपने साहस व शौर्य का परिचय दिया। उन्होंने राष्ट्र एवं धर्म के लिये मृत्यु को गले लगाते हुए औरंगजेब को सदा के लिये पराजित कर दिया। तुलापुर स्थित संभाजी महाराज की समाधि आज भी उनकी जीत और अंहकारी व कपटी औरंगजेब की हार को भलि-भांति बयान करती है।
✍ टिप्पणी : संभाजी महाराज को भारतीय इतिहास के एक कुशल और प्रबुद्ध सम्राट के रूप में जाना जाता है। यद्यपि उनको अपने बचपन में पारम्परिक शिक्षा कुछ खास नहीं मिली थी, परन्तु वे भारतीय इतिहास और राजनीति से सुपरिचित थे जिसके बारे में उन्हें बचपन से सीख मिली थी। भले ही उनका कार्यकाल 9 वर्षों में ही समाप्त हो गया लेकिन वह अपने पिताजी के तरह ही एक साहसी शासक थे जिन्होंने शासन की समूची बागडोर अपने हाथों में संभाल रखी थी। संभाजी महाराज ने अपने कम समय के शासन काल में 210 छोटे-बड़े युद्ध किये और इसमे एक प्रमुख बात ये थी कि उनकी सेना एक भी युद्ध में पराभूत नहीं हुई। यदि संभाजी महाराज का रिश्तेदार उनकी मुखबिरी औरंगजेब से न करता, तो सम्भवतः संभाजी औरंगजेब की पकड़ में कभी नहीं आते। संभाजी महाराज के जीवन को यदि दो से चार पंक्तियों में सजाना हो तो यही कहा जा सकता है कि -
देश धरम पर मिटने वाला, शेर शिवा का छावा था।
महापराक्रमी परम प्रतापी, एक ही शंभू राजा था॥"
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एक मराठी हिन्दू की कलम से कुछ पंक्तियां इस प्रकार हैं -
|| कोटी कोटी प्रणाम माझ्या दैवताला माझ्या शंभू राजाला ||
|| वाघाच्या जबड्यात हात घालून जबडा फाडणारा एकमेव माझा शंभू राजा ||
|| जनतेच्या एका हकेवर धाऊन येणारा फक्त माझा शंभू राजा ||
|| मानवतेचा धर्म जोपासणारा तो म्हणजे माझा शंभू राजा ||
हिन्दी अनुवाद -
|| मेरे भगवान शंभू राजा को लाखों प्रणाम ||
|| वह जो बाघ के जबड़े में अपना हाथ डालता है और जबड़े को फाड़ देता है, एकमात्र मेरे शंभू राजा ||
|| लोगों के एक अधिकार पर चल रहा है केवल मेरे शंभू राजा ||
|| मानवता के धर्म का प्रवर्तक वो मेरे शंभू राजा हैं ||
माँ भारती की जय
देश के अमर बलिदानियों की जय 🚩
🙏🚩🇮🇳🔱🏹🐚🕉️