जय जय सीताराम
गाँव गहागह है एकदम! राजा राम छाए हुए हैं हर ओर। अधिकांश लोगों के मोबाइल में कॉलिंग ट्यून और कॉलर ट्यून दोनों रामजी के भजनों का लगा हुआ है। हर दो मिनट में कहीं बज जाता है, राम आएंगे आएंगे राम आएंगे...
जहां भी चार लोग मिलते हैं, अयोध्या जी की बात छिड़ जाती है। तरह तरह की बातें... जनकपुर से सौ भार कलेवा गया है... मन्दिर में खाली सोने का पल्ला लग रहा है... एगो मुस्लिम लड़की भी पैदल निकल गयी है दर्शन करने... गुजरात से फलां लड़का पैंसठ लाख की खड़ाऊ ले कर पैदल ही निकल गया है... इसी में कोई चिंतित हो कर कहता है, "अकेले पैंसठ लाख का खड़ाऊ ले कर चल दिया? राम रे राम... कोई चोर चुहाड़ लूट लिया तब क्या होगा?" उस पर कोई डपट कर कहता है, "भक मरदे! अरे उसके साथ साक्षात रामजी चल रहे होंगे भाई! उसको कौन छुएगा रे..."
सुबह सुबह आग तापने घूर के पास जैसे ही चार लोग जुटते हैं कोई कह देता है, "तनि अयोध्या जी की बात बतावा मरदे..." बात वर्तमान से शुरू हो कर इतिहास में चली जाती है और रामकथा स्टार्ट... हर आग घूर के पास कोई मोरारी बापू बना हुआ है, और रामकथा चल रही है। ये ज्ञानी ध्यानी लोग नहीं हैं, सामान्य गृहस्थ हैं। जो पहले कहीं पढ़ लिया है, सुन लिया है, वही कहने लगते हैं। इन्हें यह नहीं पता कि यह बात तुलसी बाबा वाले रामायण से है कि बाल्मीकि जी वाले में से... सम्भव है कि कथा का वह स्वरूप किसी शास्त्र में न हो, पर कथा चल रही है और लोग श्रद्धा से सुन रहे हैं। लोक में कथाएं हजार रूपों में चलती बहती हैं। किसी को कोई आपत्ति नहीं, क्योंकि वे ज्ञान के घमंड में अंधे हुए लोग नहीं हैं, वे लोग श्रद्धा से भरे हुए लोग हैं। राम जी का नाम जिस तरह से भी लिया जाय, वह पुण्य का ही काम है।
पूरा गाँव उत्साह में है। पिछले तीन चार दिन में बीसों लड़के मुझसे पूछ चुके हैं, "भइया अपने गाँव में अच्छत नहीं बँटायेगा? मँगाइये भइया! हमलोग बांटेंगे..." पिछले कुछ समय से ऐसे धार्मिक कामों के लिए लड़के मुझे ही ढूंढते हैं। यह सौभाग्य है मेरा...
इसी बीच कम्पटीशन भी चल रहा है। फलां गाँव में प्राण प्रतिष्ठा के दिन जुलूस है, हाथी घोड़ा का लाइन लग जायेगा... अरे तो उस गाँव में भी पीछे नहीं है मामला! मन्दिर पर मेला लगेगा, भंडारा भी होगा... इसी बीच कोई छेड़ता है- और अपने गाँव में कुछ नहीं होगा भइया?
एकाएक सभी बोल पड़ते हैं- काहे नहीं होगा जी? लगाओ चन्दा, लिखो पहले हमारा पच्चीस सौ... मेरा भी इक्कीस सौ... बोलाओ किसी बड़का गायक को, रात भर भजन कीर्तन होगा... अच्छा तो टेंट का पैसा हम देंगे... तो प्रसाद हमारी ओर से... बोलिये जय जय सियाराम...
यह गाँव है। मेरा गाँव, आपका गाँव, सबका गाँव... यही अयोध्या है, यही देश है... रामजी का देश! रामजी की चिरई रामजी का खेत, खा ले चिरई भर भर पेट...
मैं सोचता हूँ, जब सचमुच चौदह वर्ष के वनवास के बाद प्रभु राम वापस लौट रहे होंगे तो लगभग ऐसा ही माहौल रहा होगा... अयोध्या वासी भी ऐसे ही उछल कूद कर उत्सव की योजना बनाते रहे होंगे। कुछ भी तो नहीं बदला देश में... कुछ भी नहीं बदलेगा देश में... राम जी का देश है न! जो कुछ बदला भी है, वह भी एक दिन लौट आएगा।
बोलिये, जय जय सियाराम।
आपका
*(जय भोले)*
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