सूरज की रोशनी, दर्पण और लेंस से तैयार हुआ रामलला का तिलक, हर साल राम नवमी पर देगा दिखाई
यह प्रोजेक्ट - 'सूर्य रश्मियों का तिलक' (सूरज की किरणों से अभिषेक) - एक मैकेनिकल सिस्टम है जिसमें बिजली या बैटरी की जरूरत नहीं होती है, विशेष रूप से लोहे या स्टील के बजाय पीतल का उपयोग किया जाता है.
◆ रामलला 22 जनवरी को अयोध्या के मंदिर में विराजमान होंगे.
◆ प्राणप्रतिष्ठा के दिन भगवान सूर्य देव खुद रामलला का तिलक करेंगे.
◆ राम मंदिर के डिजाइन को इस तरह बनाया गया है कि सूर्य की किरणें सीधे राम लला के माथे पर पड़ेंगी.
रूड़की के सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (CBRI) के वैज्ञानिकों ने अयोध्या में नवनिर्मित राम मंदिर के लिए एक अनूठा सिस्टम तैयार किया है.
■ यह सिस्टम सूर्य के प्रकाश, दर्पण या शीशा और लेंस का उपयोग करके तैयार किया गया है. जिससे गर्भगृह में विराजने वाली रामलाल की मूर्ति के माथे पर 'तिलक' डिस्प्ले होगा.
■ इस तिलक का डिस्प्ले 29 मार्च को राम नवमी के मौके पर होगा. जो हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार, रामनवमी को भगवान राम की जयंती होती है.
■ इस मैन्युअल रूप से संचालित सिस्टम को बनाने में उन्होंने सिर्फ पीतल का उपयोग किया. यह सर्कुलर तिलक 75 मिमी का होगा, जो रामनवमी के दिन दोपहर में तीन से चार मिनट के लिए भगवान राम के माथे को सुशोभित करेगा.
■ यह खास तिलक हर साल सिर्फ राम नवमी के मौके पर ही दिखाई देगा.
■ मंदिर की तीसरी मंजिल पर स्थापित किए जाने वाले ऑप्टोमैकेनिकल सिस्टम में हाई क्वालिटी मिरर (M1 और M2), एक लेंस (L1), और विशिष्ट कोणों पर लगे लेंस (L2 और L3) के साथ वर्टिकल पाइपिंग शामिल है. ग्राउंड फ्लोर के कपोनेंट्स में दर्पण (M3 और M4) और एक लेंस (L4) शामिल हैं.
■ सूरज की रोशनी M1 पर पड़ती है, औरL1, M2, L1, L2, M3 (गर्भगृह के बाहर स्थापित) से होकर गुजरती है और अंत में M4 पर जाती है, जिससे मूर्ति के माथे पर 'तिलक' लग जाता है.
■ बंगलुरु स्थित ऑप्टिक्स एंड एलाइड इंजीनियरिंग प्राइवेट लिमिटेड ने बिना किसी लागत के मंदिर के लिए दर्पण, लेंस और टिल्ट मैकेनिज्म के फैब्रिकेशन का काम संभाला. भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (Indian Institute of Astrophysics) ने ऑप्टिकल डिजाइन के लिए CBRI को परामर्श दिया.
आर. एस. बिष्ट, देवदत्त घोष, वी. चक्रधर, कांति लाल सोलंकी (वैज्ञानिक), समीर और दिनेश (तकनीकी कर्मचारी) की सीबीआरआई टीम ने राम नवमी पर सूर्य की बदलती स्थिति के अनुकूल एडॉप्ट करने वाला सिस्टम विकसित किया है. डिटेल्ड कैलक्यूलेशन से पता चलता है कि रामनवमी की अंग्रेजी कैलेंडर की तारीख हर 19 साल में दोहराई जाती है. इसके साथ, उन्होंने एक ऐसा मैकेनिज्म विकसित किया है जिसे कोई भी संचालित कर सकता है.