हर वर्ष मार्गशीष मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को विवाह पंचमी मनाई जाती है। पौराणिक मान्यता है कि भगवान राम और सीता का विवाह इसी दिन हुआ था और इसी आस्था के कारण विवाह पंचमी पर्व मनाया जाता है। सनातन धर्म में विवाह पंचमी को भगवान राम और माता सीता के विवाह के उत्सव के रूप में मनाने की परंपरा रही है। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी देखें तो तुलसी दास ने रामचरित्र मानस के लेखन का कार्य भी विवाह पंचमी के दिन ही पूर्ण किया था।
विवाह पंचमी की पूजा विधि
01- विवाह पंचमी के दिन भगवान श्री राम और माता सीता का विवाह संपन्न कराया जाता है. इस तरह कराएं राम-सीता विवाह।
02- विवाह पंचमी के दिन सबसे पहले सुबह उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
03- इसके बाद राम विवाह का संकल्प लें।
04- अब घर के मंदिर में भगवान राम और माता सीता की मूर्ति या चित्र की स्थापना करें।
05- अब भगवान राम को पीले व मां सीता को लाल वस्त्र पहनाएं।
06- अब रामायण के बाल कांड का पाठ करते हुए विवाह प्रसंग का पाठ करें।
07- इसके बाद ॐ जानकीवल्लभाय नमः का जाप करें।
08- फिर भगवान राम और मां सीता का गठबंधन करें।
09- अब राम-सीता की जोड़ी की आरती उतारें।
10- अब भगवान को भोग लगाएं और पूरे घर में प्रसाद बांटकर आप भी ग्रहण करें।
विवाह पंचमी की कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सीता माता का जन्म धरती से हुआ था। कहा जाता है कि राजा जनक हल जोत रहे थे तब उन्हें एक बच्ची मिली और उसे वे अपने महल में लाए व पुत्री की तरह पालने लगे। उन्होंने उस बच्ची का नाम सीता रखा। लोग उन्हें जनक पुत्री सीता या जानकी कहकर पुकारते थे। मान्यता है कि माता सीता ने एक बार मंदिर में रखे भगवान शिव के धनुष को उठा लिया था। उस धनुष को परशुराम के अलावा किसी ने नहीं उठाया था। उसी दिन राजा जनक ने निर्णय लिया कि वो अपनी पुत्री का विवाह उसी के साथ करेंगे जो इस धनुष को उठा पाएगा। फिर कुछ समय बाद माता सीता के विवाह के लिए स्वयंवर रखा गया। स्वयंवर के लिए कई बड़े-बड़े महारथियों, राजाओं और राजकुमारों को निमंत्रण भेजा गया। उस स्वयंवर में महर्षि विश्वामित्र के साथ मर्यादा पुरुषोत्तम राम और उनके छोटे भाई लक्ष्मण भी दर्शक दीर्घा में उपस्थित थे।
स्वयंवर शुरू हुआ और एक-एक कर सभी राजा, धुरंधर और राजकुमार आए लेकिन उनमें से कोई भी शिव के धनष को उठाना तो दूर उसे हिला भी नहीं सका। यह देखकर राजा जनक बेहद दुखी हो गए और कहने लगे कि क्या मेरी पुत्री के लिए कोई भी योग्य वर नहीं है। तभी महर्षि विश्वामित्र ने राम से स्वयंवर में हिस्सा लेकर धनुष उठाने के लिए कहा। राम ने गुरु की आज्ञा का पालन किया और एक बार में ही धनुष को उठाकर उसमें प्रत्यंचा चढ़ाने लगे, लेकिन तभी धनुष टूट गया। इसी के साथ राम स्वयंवर जीत गए और माता सीता ने उनके गले में वरमाला डाल दी। मान्यता है कि सीता ने जैसे ही राम के गले में वर माला डाली तीनों लोक खुशी से झूम उठे। यही वजह है कि विवाह पंचमी के दिन आज भी धूमधाम से भगवान राम और माता सीता का गठबंधन किया जाता है।
विवाह पंचमी के दिन नहीं होते विवाह
हिन्दू धर्म में विवाह पंचमी का विशेष महत्व है। लेकिन इस दिन कई जगह विवाह नहीं किए जाते हैं। खासकर मिथिलांचल और नेपाल में इस दिन विवाह नहीं करने की परंपरा है। वहाँ ऐसी मान्यता है कि, सीता का वैवाहिक जीवन दुखद रहा था, इसी वजह से लोग विवाह पंचमी के दिन विवाह करना उचित नहीं मानते। उनका मानना है कि 14 वर्ष के वनवास के बाद भी राम ने गर्भवती सीता को त्याग कर दिया था और उन्हें महारानी का सुख नहीं मिल पाया। इसलिए विवाह पंचमी के दिन लोग अपनी बेटियों का विवाह नहीं करते हैं। लोगों का मानना है, कि विवाह पंचमी के दिन विवाह करने से कहीं सीता की तरह ही उनकी बेटी का वैवाहिक जीवन भी दुखमयी न हो जाए। यही नहीं, विवाह पंचमी के दिन रामकथा का अंत राम और सीता के विवाह पर ही हो जाता है। दरअसल, दोनों के जीवन के आगे की कथा दुख और कष्ट से भरी है और इसका शुभ अंत करके ही कथा का समापन कर दिया जाता है।
"जय श्री राम"