आजकल एक फैशन बन गया है कोई भी किसी भी व्यक्ति को गुरु बोल देता है परंतु ऐसा नहीं कहना चाहिए प्रत्येक व्यक्ति गुरु नहीं बन सकता ।
गुरु एवं आचार्य में बहुत अंतर होता है ।
आचार्य का अर्थ होता है किसी भी प्रकार के शिक्षा देना या परामर्श देना जैसे ज्योतिष से संबंधित कार्य करने वाले को ज्योतिषाचार्य कहते हैं जो विद्यालय में हमें पढ़ाते हैं उन्हें आचार्य कहते हैं । जो योगासन इत्यादि का ज्ञान देते हैं उन्हें योगाचार्य कहते हैं ।
आचार्य कई हो सकते हैं । आप अलग-अलग प्रकार की ट्रेनिंग लेते हैं या परामर्श लेते हैं उन सभी को आचार्य कह सकते हैं ।
परंतु गुरु कई सारे नहीं हो सकते हैं । ऐसा हो सकता है कि हम किसी व्यक्ति से गुरु दीक्षा लेकर साधना कर रहे हैं परंतु हमें उससे ज्यादा ज्ञान प्राप्त करना है तो फिर किसी दूसरे ग्रुरु के पास गए और वहां भी हमने साधना किया । इस प्रकार एक से अधिक गुरु हो सकते हैं । ऐसे में हमें दोनों हीं गुरु का सम्मान करना चाहिए ।
परंतु कोई भी कार्य करने वाले व्यक्ति को गुरु नहीं कह सकते गुरु का महत्व इस संसार में सबसे श्रेष्ठ है यहां तक कि भगवान के समान माना गया है ।
गुरु वही व्यक्ति बन सकता है जो वर्षों से साधना कर रहा हो तपस्या कर रहा हो । और जिसने आध्यात्मिक उन्नति के लिए अपने जीवन के कई वर्ष लगाए हो ।
जब हम ऐसे व्यक्ति से दीक्षा लेते हैं तो गुरु हमें दीक्षा देकर हमें साधना करना सिखाते हैं आध्यात्मिक उन्नति के रास्ते पर चलना सिखाते हैं । और सबसे मुख्य बात गुरु साधना के क्षेत्र में जहां तक पहुंच चुके हैं वह अपने शिष्य को उससे आगे पहुंचाना चाहते हैं । कभी भी अपने शिष्य को अपने से ज्यादा साधना के क्षेत्र में आगे बढ़ने पर दुखी या जलन की भावना नहीं होती बल्कि उन्हें खुशी होती है । जिनसे भी हम गुरु दीक्षा ले लेते हैं वह गुरु हमें अपनी संतान के समान समझने लगते हैं । शिष्य को जरा सी भी तकलीफ होती है । गुरु को दुख होने लगता है और जल्द से जल्द अपने शिष्य को मुसीबत से निकालने के लिए प्रयत्न करते हैं या रास्ता दिखाते हैं ।
परंतु आचार्य का काम करने वाले व्यक्ति अपनी दक्षिणा लेते हैं और अपना कार्य करते हैं बस यहीं तक उनकी जिम्मेवारी है ।
ऐसा भी हो सकता है कि एक ही व्यक्ति गुरु और आचार्य दोनों हो सकते हैं ।
इसलिए कहीं भी किसी भी व्यक्ति को गुरु नहीं कहना चाहिए आप पहले अपने अंतरात्मा से स्वीकार कर ले कि क्या इन्हें अपने हृदय में स्थान दें सकता हूँ तभी आप उन्हें गुरु के रूप में स्वीकार करें।
जिन्हें अपने गुरु के रूप में स्वीकार कर लिया अब चाहे वह आपको गाली देगा आपको डांटे या आपकी कमियां निकाले आपको नतमस्तक होकर उन सभी को स्वीकार करके उनके बताए हुए रास्ते पर चलना होता है । क्योंकि जो गुरु होता है वह आपकी चापलूसी नहीं करेगा की आप कुछ धन उसे देंगे । वह आपको एक योग्य साधक एवं एक योग्य व्यक्ति बनाना चाहेंगे ।
आजकल के लोग गुरुजी गुरुजी करते हैं परंतु जैसे ही उनके अहम पर चोट किया जाता है उनकी कमी बताई जाती है उनकी सारी गुरुजी गुरुजी और सम्मान हवा में उड़ जाता है । ऐसे व्यक्ति घास फूस होते हैं । इसलिए गुरु का भी कार्य होता है कि जो गुरुजी गुरुजी कर रहा है पहले आजमाकर देख ले कि यह असली है या नकली है । यह वास्तव में हमें गुरु मानता है या सिर्फ चापलूसी कर रहा है ।