जय श्री राम।।
रावण ने जिंदगी भर राम जी नाम नहीं लिया।
रामजी का नाम लेने का अवसर आया ।
तब भी दूसरे नामों से काम चला लिया।
लेकिन रामजी का नाम नहीं लिया।
जबकि संत महात्मा रामजी के नाम से काम चला लेते हैं ।
ताकि अन्य नाम लेना न पड़े।
जय श्री राम,जय श्री सीताराम आदि।
रावण अन्य नाम से काम चला लेता था।
ताकि रामजी का नाम न लेना पड़े।
बहुत सावधान रहता था ।
कहीं गलती से भी रामजी का नाम मुख में न आ जाए।
विभीषण के पीछे जो दूत आए थे उनसे पूंछता है।
तपस्वियों के क्या हाल हैं?
*कहु तपसिन्ह कै बात बहोरी।।*
अंगद जी से कहता है।
*तव प्रभु नारि विरह बलहीना।।*
तेरे स्वामी तो नारि के विरह में बलहीन हो गये है।
रामजी का नाम कभी नहीं लिया।
भगवान शंकर भी विचार करने लगे मैंने अच्छे को दीक्षा दी है।
अच्छा चेला मिला है मुझको।
कम से कम यह भला आदमी एक बार तो रामजी का नाम ले लेता।
ताकि मेरी दीक्षा सफल हो जाती।
रावण ने मरते समय राम जी का नाम लिया।
*कहां राम रण हतो पचारी।।*
भगवान शंकर भी प्रशन्न हो गए।
कि चलो चेले ने दीक्षा सफल करदी ।
अंत में ही सही राम जी का नाम ले तो लिया ।
किसी ने रावण से कहा तुमने जिंदगी भर रामजी का नाम क्यों नहीं लिया।?
रावण बोला क्या करुं?
मजबूरी थी।
मेरा स्वभाव ग़लत था।
तामसी प्रवृत्ति थी।
मैं ग़लत काम करता रहा।
मैंने विचार किया कि जब मैं गलत काम कर ही रहा हूं।
तो कम से कम रामजी का नाम लेते हुए तो गलत काम न करूं।
इसलिए मैंने रामजी का नाम नहीं लिया।
किसी ने कहा फिर अब?
रावण बोला अब लिया है।
जब गलत काम करने वाला यह शरीर ही नहीं रहा है।
तो अब तो रामजी का नाम लेना ही था।
मेरा उद्धार कैसे होता?
गोस्वामी श्री तुलसीदास जी महाराज कहते हैं कि
परमात्मा कितने दयालु हैं।
रावण ने जिंदगी भर राम जी का नाम नहीं लिया।
और अंत में केवल एक बार राम जी का नाम लिया और उसका उद्धार हो गया ।
रावण का तेज भगवान में समा गया।
उसका कल्याण हो गया।
ऐसे दयालु परमात्मा कहां मिलेंगे।
इस प्रसंग पर कई लोग बड़ी आपत्तिजनक टिप्पणी करते हैं।
कहते हैं कि, कहीं ऐसा होता है कि जिंदगी भर पाप करो।
और अंत में केवल एक बार राम जी का नाम ले लो तो उद्धार हो जाएगा ?
यह तो सब बेकार की बातें हैं। अपने मन को समझाने वाली बातें हैं ।
यह सत्य नहीं है।
ऐसा नहीं हो सकता है।
संत जन इस विषय पर बड़ी सुंदर व्याख्या करते हैं।
कि यह सही है।परम सत्य है।
ज़िंदगी भर भले ही रामजी का नाम न लिया हो।
और अंत में यदि राम नाम मुख में आ जाए तो अवश्य कल्याण हो जायेगा।
जैसे कि रावण का हुआ है।
इसमें संदेह नहीं है।
संत कहते हैं।
यदि कोई परीक्षार्थी पूरे साल भर पढ़ाई ना करें।
और परीक्षा वाले दिन अपने साइड वाले की सही सही नकल करले ।
जिसने कि प्रश्नपत्र अच्छे से हल किया है ।
तो यह बताओ? परीक्षक उसे पास करेगा या नहीं?
परीक्षक को उसे पास करना ही होगा।
क्योंकि उसने भी सही सही लिखा है। चाहे नकल की हो।
यह बात अलग है कि नकल करते समय कोई उसको रोक नहीं पाया।
उसने सही सही लिखा है तो वह पास होने का हकदार हैं।
रावण भी इसी तरह परीक्षा में पास हुआ है।
रावण ने चाहे किसी की नकल की हो।
संत कहते हैं अंत समय में राम नाम मुख में आ जाए यह साधारण बात नहीं है।
कई जन्मों तक इस राम नाम को रटते रहने के अभ्यास से बड़े सौभाग्य से यह अंत समय में मुख में आ पाता है।
इतना सहज नहीं है।
और जिनके मुख से मरते समय राम नाम का उच्चारण हो जाएं वह बड़े सौभाग्य शाली है।
जब रावण की और से उसके सभी बंधु बांधवों का भगवान श्री राम जी द्वारा उद्धार हो गया ।
सब मारे गए,तब अंत में रावण युद्ध भूमि में आया।
विभीषण जी को बड़ी चिंता हुई
*देखि विभीषण भयऊं अधीरा।*
कि रावण रथ पर सवार है।
उसके पास युद्ध के सब साधन हैं।
और रामजी के पास रथ नहीं है।
*रावण रथी विरथ रघुवीरा।।*
विभीषण जी ने श्री राम जी से कहा।
प्रभु रावण युद्ध के साधनों से सम्पन्न हैं।
आपके पास तो कोई साधन नहीं है। यहां तक कि पांव में खड़ाऊ भी नहीं है।
आप इससे युद्ध कैसे जीत पाओगे?
*नाथ न रथ नहि तन पग त्राना।*
*केहि विधि जितव वीर बलवाना।*
भगवान श्री राम जी ने विभीषण जी को बड़ा सुंदर उत्तर दिया।
विभीषण चिंता मत करो।
रावण से जीतने के लिए साधन की नहीं साधना की आवश्यकता है।
रावण के पास साधन है ।
मेरे पास साधना है।
मेरे पास धर्म रूपी रथ है।
और अधर्म पर विजय पाने के लिए धर्म रथ आवश्यक है।
साधन की आवश्यकता नहीं है ।
युद्ध प्रारम्भ हुआ।
श्री राम जी रावण की भुजाएं और शीश को अपने वाणों से काटते हैं ।
किंतु रावण के शीश फिर से प्रकट हो जाते हैं ।
श्री राम जी ने यह खेल अनेक बार किया ।
श्री राम जी श्री विभीषण जी के भ्राता प्रेम को समझ रहे थे।
और प्रतीक्षा कर रहे थे कि विभीषण जी कहेंगे, तब ही इसका वध करुंगा ।
लंबे समय तक युद्ध चलता रहा।तब विभीषण जी ने कहा।
प्रभु इसके नाभि में अमृत कुंड है जिसके प्रभाव से इसके शीश बार-बार प्रकट हो रहे है।
आप अग्निबाण से इसके नाभि का अमृत सोख दीजिए।
तब इसका वध होगा ।
श्री राम जी बस विभीषण जी के कहने की ही प्रतीक्षा में थे ।
और जैसे ही विभीषण जी ने कहा कि इस पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कीजिए ।
तब भगवान श्री राम जी ने अगस्त मुनि द्वारा भेंट किये हुए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया।
रावण पर एक साथ 31 वाण चलाएं।
बीस वाणों ने रावण की बीसों भुजाएं काटी ।
और दस वाणों ने रावण के दशों मस्तक काटे।
और एक बाण रावण के नाभि कुंड में लगा।
रावण का अंत हो गया।
*इसके आगे अगले प्रशंग में।जय श्री राम।।*