जय श्री राम।।
हनुमान जी महाराज कालनेमि राक्षस का वध करके द्रोणागिरी पर्वत पर पहुंचे ।
पर्वत पर हनुमान जी औषधि को पहचान नहीं पाए।
तो पर्वत ही उखाड़ लिया।
*देखा सैल न औषधि चीन्हा।*
*सहसा कपि उपारि गिरि लीन्हा।।*
तुलसीदास जी महाराज ने वेद पुराणों की तुलना पर्वत से की है।
*पावन पर्वत वेद पुराना।।*
।जिस तरह हनुमान जी पर्वत पर संजीवनी बूटी को पहचान नहीं पाए
किंतु उन्होंने ऐसा नहीं माना कि यहां संजीवनी बूटी नहीं है। हनुमान जी ने यह मान लिया कि
संजीवनी बूटी तो यहां है, ।
मैं नहीं पहचान पा रहा हूं।
वैद्य राज ने बताई है तो यहां संजीवनी बूटी है अवश्य ।
इसमें संसय नहीं है।
गुरु और वैद्य की बातों पर विश्वास करना ही चाहिए। इसलिए हनुमान जी ने पर्वत ही उखाड़ लिया।
कि चलो वैद्य राज़ स्वयं उसे ढूंढ लेंगे।
इसी तरह तुलसीदास जी महाराज इस प्रसंग के माध्यम से कहना चाहते हैं ।शास्त्रों में जो बातें विदित है।
वह सत्य है ऐसा मान लेना चाहिए। इसमें संसय नहीं होना चाहिए।
महान संतों के द्वारा वेद शास्त्र लिखे गए हैं।
जो बातें शास्त्रौं में वर्णित है अटल है,सत्य है।
यदि कोई प्रशंग हमें समझ में नहीं आता है।
तो ऐसा नहीं मानना चाहिए, कि यह गलत है, अर्थ हीन है।
हमें यह मानना चाहिए कि संतो ने जब इसका वर्णन किया है।
तो इसका अर्थ तो है, बात गलत नहीं हो सकती।
हम समझ नहीं पा रहें हैं, यह बात दूसरी है।
हमें जब कोई बात समझ में नहीं आती है, तो जिस तरह हनुमान जी पर्वत लेकर वैद्य राज के पास आए।
इसी तरह हमें शास्त्रों की बातें लेकर विद्वान जनों के पास जाना चाहिए।
वह हमें इसका समाधान कराते हैं ।यही इस प्रसंग का सार्थक संदेश है।
जब हनुमान जी पहाड़ लेकर अयोध्या के ऊपर से जा रहे थे। तब भरत जी ने अनुमान लगाया कि यह कोई निसाचर है।
भरत जी ने उन पर बिना फल का वाण चला दिया।
*देखा भरत बिसाल अति,निसिचर मन अनुमान,*
*बिनु फर सायक मारेउ,चाप श्रवन लगि कान।।*
भरत जी संत हैं ।
राम नाम की माला फेरते हैं ।
संत जन कहते हैं कि संतो को केवल माला ही फेरते नहीं रहना चाहिए।
यदि जब राष्ट्र के ऊपर संकट दिखाई दे तो उन्हें भाला उठाने की भी आवश्यकता है।
शस्त्र भी उठा लेना चाहिए।
और भरत जी ने वही किया। भरत जी ने माला छोड़कर अपने धनुष बाण उठाए ।
और बिना फल का वाण हनुमान जी के ऊपर चलाया।
बिना फल का वाण हनुमान जी को लगा ।
हनुमान जी राम राम कहते हुए अयोध्या की भूमि पर गिर गए ।मूर्छित हो गए।
*परेउ मुरुछि महि लागत सायक।*
*सुमिरत राम राम रघुनायक।।*
जब भरत जी ने हनुमान जी के मुंह से राम नाम का उच्चारण सुना। तो भरत जी को बड़ा पश्चाताप हुआ।
उन्होंने विचार किया मैंने बड़ा अनर्थ किया है।
यह तो कोई राम भक्त है।
भरत जी हनुमान जी के पास आए।
*सुनि प्रिय बचन भरत तब धाए।।*
रामजी का पूरा परिवार एकत्रित हो गया।
भरत जी ने हनुमान जी को हृदय से लगा लिया।
*बिकल बिलोक कीस उर लावा।।*
हनुमान जी की दशा से दुखी होकर भरत जी नेत्रों में जल भरते हुए बोले।
यदि मेरा रामजी के चरणों में निष्कपट प्रेम हौं तो यह वानर पीड़ा से रहित हो जाए।
*तो कपि होउ बिगत श्रम सूला।*
*जौं मो पर रघुपति अनुकूला।।*
हनुमान जी के कानों में जब यह शब्द पड़े ,तो उठकर बैठ गए।
और राम जी की जय कार करने लगे।
*कहि जय जयति कोशलाधीसा।।*
भरत जी की सेवा से हनुमान जी की मूर्छा दूर हुई।
भरत जी ने पूछा? भक्तराज आप कौन हैं?
अभी आप मूर्छित हो गए थे। आपकी आंखें बंद हो गई थी। हनुमान जी ने कहा यदि मेरी आंखें बंद नहीं होती तो फिर आज खुलती कैसे?
आज मेरी आंखें खुल गई है। आपका इसमें कोई दोष नहीं है। दोष तो मेरा है।
जिस अयोध्या की भूमि पर स्वयं राम जी अवतार लेकर प्रकट हुए। उसी अयोध्या की भूमि पर मैं ऊपर ऊपर जा रहा था।
मुझे भी यहां उतर कर इस धरती को प्रणाम करना चाहिए था ।
इस अयोध्या की भूमि पर तो भगवान भी ऊपर से नीचे उतरे हैं।
गलती मेरी ही है आपका कोई दोष नहीं है।
आज मेरी आंखें खुल चुकी है।
मैं समझ रहा था कि इस पर्वत को लेकर मैं जा रहा हूं ।
किंतु आज मैंने देखा है ।
कि पर्वत तो राम जी ने ही थाम रखा है।
हनुमान जी जब भूमि पर गिरे तो पर्वत भूमि पर नहीं आया।
वह हवा में लटका रहा ।
हनुमान जी ने लंका का सारा प्रसंग भरत जी को सुनाया।
*कपि सब चरित समास बखाने।।*
कि किस तरह लक्ष्मण जी रणभूमि में मेघनाथ के द्वारा मूर्छित हुए हैं ।
और वैद्य सुषेण ने उनके उपचार के लिए संजीवनी बूटी मंगाई है।
मैं वही संजीवनी लेकर जा रहा हूं।
लक्ष्मण जी की मूर्छा का समाचार सुनकर सब बहुत दुखी हुए।
माता सुमित्रा ने पूछा हनुमान यह बताओ?
लक्ष्मण को बाण कहां लगा है? सीने पर लगा है या पीठ पर? हनुमान जी ने कहा माता लक्ष्मण जी को सीने पर वाण लगा है। सुमित्रा माता ने कहा आज मैं धन्य हो गई।
मैंने लक्ष्मण से यही कहा था।
कि यदि अवसर आए तो वह अपने सीने पर वाण खाना ।
*पीठ पर वाण मत खाना।*
लक्ष्मण ने मेरी आज्ञा का पालन किया है।
सुमित्रा माता ने कहा हनुमान। तुम राम से कह देना चिंता ना करें।
यदि लक्ष्मण से वियोग हो भी जाए तो उनकी सेवा में शत्रुघ्न हाजिर हो जाएगा।
मैं उसे राम जी की सेवा में भेज दूंगी।
सुमित्रा माता आगे बोली।
*राम बड़ा संकोची है ।*
ऐसा ना हो कि लक्ष्मण के वियोग होने पर वह अयोध्या ना आए। इतने में माता कौशल्या बोली ।नहीं हनुमान।
मैं बड़ी हूं ,मेरा संदेश राम से पहले कहना।
और राम से कह देना कि बिना लक्ष्मण के अयोध्या लौट कर ना आए।
माताओं को अत्यधिक चिंतित देखकर लक्ष्मण जी की भार्या श्री उर्मिला जी बोली ।
*इसके आगे का प्रशगं अगली पोस्ट में ।जय श्री राम।।*