*♦️अद्भुत प्रसंग जरूर पढ़ें♦️*
*🐚 प्रभु राम जी विभीषण का संवाद*
*🏹जय श्री राम।।*
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जय श्री राम।।
राम जी का आदेश सुनकर अंगद और वीर वानर विभीषण जी को लेकर आए ।
विभीषण जी ने दूर से ही राम जी और लक्ष्मण जी दोनों भाइयों को नेत्र भरकर देखा।
*दूरिहि ते देखे द्वौ भ्राता।*
*नयनानंद दान के दाता।।*
देखते ही विभीषण जी के नेत्र सजल हो गए। नेत्रों में प्रेमाश्रु बहने लगे।
राम जी ने विभीषण जी को बड़ी दया दृष्टि से देखा ।
विभीषण जी के नेत्रों में प्रेमाश्रु हैं।
विभीषण जी ने हृदय में धीरज धारण करके कोमल वचन कहे।
*नाथ दसानन कर मैं भ्राता।*
*निसिचर बंस जनम सुरत्राता।।*
प्रभु मैं दशानन का भाई विभीषण हूं।
रामजी ने कहा विभीषण तुम हमें ऐसा क्यों बता रहे हो?
यह तो सभी जानते हैं। कि तुम रावण के भाई हो ।क्या मुझे पता नहीं है?
इस तरह बताने का तुम्हारा आशय क्या है?
विभीषण जी ने कहा प्रभु मैं बता नहीं रहा हूं।
मैं आपको कुछ याद दिला रहा हूं।
भगवान बोले मुझे याद दिला रहे हो? क्या याद दिलाना चाहते हो?
विभीषण जी बोले प्रभु याद करो।
अपने गीधराज जटायु को कुछ वचन दिया था।?
भगवान बोले हां मैंने जटायु जी को वचन दिया है ।
*कि सीता हरण तात जनि कहेहु पिता सन जाए ।*
*जो मैं राम तो कुल सहित कहेहु दशानन आइ।।*
सीता हरण का समाचार तुम जाकर पिताजी से मत कहना। यदि मैं राम हूं तो यह समाचार रावण स्वयं अपने कुल सहित वहां जाकर देगा।
विभीषण जी बोले प्रभु आपने जटायु जी को वचन दिया है।
और मैं जानता हूं कि आपका वचन झूठा नहीं हो सकता है।
जटायु जी को दिया हुआ वचन आप अवश्य पूरा करेंगे।
क्योंकि मैं जानता हूं , मैंने सुना है।
*रघुकुल रीति सदा चलि आईं।*
*प्राण जाई पर वचन न जाई।।*
अब दूसरी बात यह है कि आपका विरद यह है कि,शरण में आए हुए का त्याग नहीं करते हैं।
और मैं आपकी शरण में आया हूं।
इसलिए अब मैं आपसे पूछना चाहता हूं कि मेरे लिए क्या निर्णय है ।?
मुझे शरण मिलेगी या मरण?
यदि शरण दोगे तो आपकी प्रतिज्ञा का क्या होगा ।?
वह कैसे पूरी हो पाएगी?
क्योंकि मैं तो राक्षस कुल का हूं।
*निसिचर वंश जन्म कुलत्राता।।*
और शरण नहीं दोगे तो आपका जो विरद है शरणा गत के भय का हरण करने का उसका क्या होगा।?
वह तो झूंठा सिद्ध होगा?
रामजी यह सब सुनकर चुप हो गए।
अब सुग्रीव जी को बोलने का अवसर मिल गया।
सुग्रीव जी बोले प्रभु मैंने पहले ही कहा था।
इसे शरण में मत लीजिए ।
अब देखो इसने आते ही गड़बड़ शुरू कर दी ।
आते ही उपद्रव मचा दिया।
आप ही को संकट में डाल दिया अब इसका निवारण कैसे होगा?
राम जी सुग्रीव जी से बोले धीरज रखो मित्र। इसका निवारण भी होगा।
प्रभु श्री राम जी विभीषण जी से बोले।
विभीषण जी तुम सब कुछ बोल चुके हो?
या और भी कुछ बोलना बाकी है?
विभीषण जी बोले प्रभु एक बात और बोलना चाहता हूं।
आपने वचन केवल जटायु जी को ही नहीं दिया हैं।
आपने ऋषि मुनियों को भी वचन दिया है ।
*कि निसिचर हीन करहुं महि ।*
*भुज उठाइ प्रण कीन्ह।।*
आपने क्रौध करते हुए भुजा उठाकर यह प्रण किया है।
कि मैं इस पृथ्वी को निसाचरों से हीन कर दूंगा।
अब आप यह मत कहना कि जटायु जी को तो मैंने आवेश में आकर यह वचन दे दिया था ।
श्री राम जी बड़ी गंभीरता से बोले।
विभीषण जी, जटायु जी मेरे पित्र तुल्य थे।
उनको दिया हुआ वचन मैं अवश्य अवश्य अवश्य पूरा करूंगा।
और ऋषि मुनि संत महात्मा तो मेरे प्राण है। मेरी आत्मा हैं।
उनको दिया हुआ वचन भी अवश्य पूरा होगा।
विभीषण जी निरास होते हुए बोले।
प्रभु फिर आगे की बात मुझे स्वयं समझ लेना चाहिए।?
क्योंकि मुझे शरण मिलना तो संभव नहीं है।
अब तो रण में मरण ही मिल मिलेगा क्योंकि मैं
राक्षस कुल का हूं।
मैं निशाचर कुल में जन्मा हूं।और, आपका संकल्प झूठा हो नहीं सकता है। यह में जानता हूं
राम जी ने कहा विभीषण तुम चिंता मत करो।
मेरा प्रण भी झूठा नहीं होगा।
और मेरा विरद भी नहीं बिगड़ेगा।
और तुम्हें शरण भी मिलेगी।
विभीषण जी आश्चर्य चकित होकर पूछने लगे। यह कैसे सम्भव है प्रभु?।
करुणानिधान श्री राम जी बोले।
विभीषण जी पहले यह निश्चित हो जाए कि तुम भाई किसके हो?
तुम रावण को अपना भाई मानते हो।?
क्योंकि रावण तुम्हें भाई कहता है।
इसलिए रावण तुम्हारा भाई है । और इसलिए तुम अपने आपको राक्षस कुल का समझते हो।
किंतु याद करो।
जब हनुमान जी लंका में गए थे तब हनुमान जी ने तुम्हें संत विभीषण या मित्र विभीषण नहीं कहा था।
कुछ याद है? क्या कहा था?।
विभीषण जी बोले प्रभु मुझे याद नहीं है क्या कहा था।?।
रामजी बोले विभीषण जी हनुमान जी ने तुमसे कहा था।
*तब हनुमंत कहा सुनु भ्राता।।*
हनुमान जी ने तुम्हें भाई कहा था।
उस हिसाब से तुम हनुमान जी के भाई हो ।
तुम अपने आप को रावण का भाई क्यों मान रहे हो?।
तुम तो हनुमान जी के भाई हो।
विभीषण जी बोले।
प्रभु आपकी बात सही है ।
किन्तु देहि के नाते तो मैं रावण का ही भाई हूं?
श्री राम जी बोले विभीषण जी मैं देहि का नाता नहीं मानता हूं।
मैं वैदेही का नाता मानता हूं।
हनुमान जी ने श्री जानकी जी को माता कहा था ।
और तुम्हें भाई कहा था।
श्री जानकी जी ने हनुमान जी को पुत्र माना है ।हनूमान जी ने तुम्हें भाई माना है।
उस हिसाब से तुम भी श्री जानकी जी के पुत्र हुए।
मैंने हनुमान जी को पुत्र कहा है।
*सुनु सुत तोहि उरिण मैं नहीं।।*
हनुमान जी मेरे पुत्र हुए। उस हिसाब से तुम भी मेरे पुत्र हुए।
मैं तुम्हारा पिता हुआ ।
तुम राक्षस कुल के नहीं हो। तुम रघुकुल के हुए। और रघुकुल के होने के नाते तुम्हें शरण मिलेगी।
मैं केवल भक्ति का नाता मानता हूं ।
माता शबरी से भी मैंने यही कहा था ।कि मुझे केवल भक्ति का नाता प्रिय है
*मम प्रिय एक भक्ति का नाता।।*
किसी दूसरे नाते को मैं मानता ही नहीं हूं।
और तुम मेरे भक्त हो। तुम हनुमान जी के भाई हो।
और जिसका पक्ष हनुमान जी लेते हैं फिर मैं उसके अवगुण नहीं देखता हूं
केवल उसके गुण ही देखता हूं। राम जी की यह बात सुनकर विभीषण जी प्रभु के चरणों में लेट गए ।बार-बार धन्यवाद करने लगे ।
*अपने आप को सौभाग्यशाली मांगने लगे। इसके आगे का*
*प्रशंग अगली पोस्ट में। जय श्री राम।।*