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श्री राम जी, भाई लक्ष्मण जी के साथ ऋषि मूक पर्वत की ओर जाते हैं,। उस पर्वत पर बाली के भय से सुग्रीव जी रहते हैं। बाली को श्राप था कि उस पर्वत पर वह जा नहीं सकता था। यदि जाता है तो भस्म हो जाएगा। सुग्रीव जी के मन में सदैव यह भय रहता था। कि कहीं बाली अपने गुप्तचरों के द्वारा उनका वध ना करवा दे।
बाली और सुग्रीव के जन्म की कथा, महाभारत और पुराणों में तरह तरह से प्रचलित है।
कहा जाता है कि बाली के पिता इंद्रदेव हैं ।और सुग्रीव के पिता भगवान सूर्य है। किंतु इनकी माता एक ही है।यह दोनों सगे भाई थे।
हनुमान जी महाराज सुग्रीव के साथ उनकी सेवा में रहते हैं।
हनुमान जी महाराज भगवान शिव के अंश अवतार हैं।
एक बार भगवान शिव ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की थी। कि मैं भी वानर रूप में रहकर आप की सेवा करना चाहता हूं। क्योंकि मैंने देखा है ।कि जब आप ने नारद जी को बंदर बनाया था। तब आपकी माया ने उनकी और नहीं देखा था। इसलिए मैं भी यही चाहता हूं कि यदि आपका बंदर बन जाऊंगा। तो यह आपकी माया मुझ पर प्रभाव नहीं डाल पायेगी। जब भगवान शिव के आग्रह पर भगवान विष्णु ने मोहनी रूप धारण किया था ।और भगवान शिव कि उनके उस मोहनी रूप के प्रति आशक्ति हुई थी ।उस आशक्ति के कारण उनके तेज का पतन हुआ था। और उनका वह तेज पवन देव के द्वारा माता अंजनी के गर्भ में प्रविष्ट कराया गया था ।जिससे हनुमान जी महाराज का जन्म हुआ था। और वह पवन पुत्र कहलाए ।
हनुमान जी महाराज सुग्रीव की सेवा में क्यों थे ?इसका भी एक कारण था। क्योंकि हनुमान जी महाराज के गुरु भगवान सूर्य है। हनुमान जी, परम बलशाली है।
बचपन से ही वह बहुत शरारती थे। एक समय बाल्यावस्था में उन्होंने उगते हुए सूर्य को आसमान में छलांग लगाकर फल समझकर मुंह में रख लिया था। तीनों लोकों में अंधकार छा गया था ।तब देवताओं की प्रार्थना पर उन्होंने सूर्य देव को अपने मुंह से बाहर निकाला था।
जब हनुमान जी बड़े हुए। तब उन्हें गुरु के पास जाकर दीक्षा लेना थी। हनुमान जी दीक्षा लेने के लिए भगवान सूर्य के पास गए थे।
एक बार तो भगवान सूर्य ने हनुमान जी को देखकर यह विचार किया कि इसे कहीं देखा है। फिर उन्हें याद आया कि अरे यह तो वही बालक है ।जिसने अपने बचपन में मुझे मुंह में रख लिया था। इसे दीक्षा देना मतलब अपने लिए आफत मोल लेना है।पता नहीं इसे कब भूख लग जाए । हनुमान जी ने भगवान सूर्य से गुरु दीक्षा लेने के लिए प्रार्थना की ।भगवान सूर्य देव ने कहा कि नहीं मैं तुम्हें दीक्षा नहीं दे सकता। क्योंकि मैं एक जगह स्थिर नहीं रहता हूं ।हमेशा चलता फिरता रहता हूं। हनुमान जी ने कहा कि दीक्षा तो मैं आप ही से लूंगा। मैं आपसे चलते फिरते ही दीक्षा ले लूंगा। भगवान सूर्य कहने लगे ।यह संभव नहीं है। गुरु शिष्य आमने-सामने बैठकर शिक्षा का कार्य पूर्ण करते हैं ।मेरे साथ साथ चल कर तुम कैसे दीक्षा ले पाओगे? यदि मैं आगे रहूंगा, तो मेरी पीठ तुम्हारी और हो जाएगी। और यदि तुम आगे रहोगे तो तुम्हारी पीठ मेरे सामने रहेगी ।इस तरह यह संभव नहीं है। हनुमान जी कुछ देर तो सोचते रहे। फिर कहा गुरु जी इसका भी एक उपाय है। मैं आपके आगे-आगे उल्टा चलूंगा। आप मुझे दीक्षा देते रहना। मैं ग्रहण कर लूंगा। भगवान सूर्य ने उन्हें शिष्य न बनाने के कई बहाने किए। किंतु हनुमान जी उनके सब प्रश्नों का बराबर उत्तर देते गए।
अंत में भगवान सूर्य ने हनुमान जी को गुरु दीक्षा दी ।और हनुमान जी ने भगवान सूर्य के सामने उल्टे चलते हुए दीक्षा ग्रहण की ।जब गुरु दीक्षा में गुरु दक्षिणा देने की बात आई। तब भगवान सूर्य ने हनुमान जी से गुरु दक्षिणा में यही मांगा ।कि तुम सुग्रीव की सेवा में रहो।जब लक्ष्मण और राम जी उस पर्वत की ओर आ रहे थे। तब सुग्रीव जी ने हनुमान जी को आदेश किया कि तुम अपना भेष बदलकर जाओ और पता लगाओ यह कौन है।इसके आगे का प्रशंग अगली पोस्ट में
जय श्री राम।।🏹