इससे बड़े दुर्भाग्य की बात और क्या होगी हिंदुओं के लिए की धर्म के आधार पर विभाजित होने के बाद भी भारत हिंदू राष्ट्र तो नहीं बन सका लेकिन अब हिंदुओं को अपने त्यौहार मनाने के लिए भी अनुमति लेनी पड़ेगी वह भी जमात से। यह घटना विशेष समुदाय के भाईचारे की पोल खोलता है उनके सर्वधर्म समभाव की सच्चाई व्यक्त करता है और देश में हिंदुओं की वर्तमान स्थिति और आने वाले भविष्य की सत्यता भी उजागर करता है। मामला 1 वर्ष पुराना है जहां अदालत ने कहा था कि जमात की सहमति लेकर गणेश प्रतिमा स्थापित करने की अनुमति दे पुलिस
क्या कभी सुना है किसी ने के हिंदू बहुल क्षेत्र में मुसलमान को उनके त्यौहार मनाने से रोका जाता हो या उनके त्योहारों पर पत्थर बाजी अथवा आगजनी की जाती हो? लेकिन हिंदू त्योहारों पर क्या होता है यह बताने की आवश्यकता नहीं ताजा उदाहरण नूह का है जहां मुस्लिम बहुल होने के कारण उसे क्षेत्र में हिंदुओं पर संयोजित आतंक की हमला विशेष समुदाय द्वारा किया गया इसके अलावा भी अनेकों रैलियां और शोभा यात्राओं पर विशेष समुदाय द्वारा पथराव किया जाता है आगजनी की जाती है।
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क्या भाईचारा सेकुलरिज्म और सर्वधर्म समभाव जैसी बातों को सर पर उठाकर घूमने का ठेका केवल हिंदुओं का है क्या मुसलमान को हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं का सम्मान नहीं करना चाहिए? आखिर क्यों हिंदुओं को मुस्लिम बहू इलाकों में त्यौहार मनाने में समस्या का सामना करना पड़ता है.
सेकुलरिज्म और संविधान की बातें करने वाला प्रशासन भी एक विशेष समुदाय से सेकुलरिज्म का पालन नहीं करवा पता और संविधान के अनुसार हिंदुओं को पूरे देश में कहीं भी अपने त्यौहार मनाने का अधिकार नहीं दे पाता और यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि किसी अदालत ने गणेश प्रतिमा स्थापित करने के लिए जमात की परमिशन लेने का निर्देश दिया।