सूर्य को एक खास बिंदु से देखा जा सकता है। ऐसे 5 प्वाइंट हमारे अंतरिक्ष में हैं। इन्हें लैग्रेंज प्वाइंट कहा जाता है। धरती से या यूं कहें कि श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सैंटर से 15 लाख किमी दूर लैग्रेंज-1 पॉइंट तक हमारा आदित्य मिशन L1 शीघ्र लॉन्च किया जाएगा।
यह वह जगह है जहां से सूर्य को बगैर किसी ग्रहण या रुकावट के साथ देखा जा सकता है। यहां पहुंचने के बाद आदित्य मिशन को सूरज से ही ऊर्जा प्राप्त हो जाएगी। बस एक बार धरती और सूरज के ठीक बीच स्थित इस कक्षा में लैग्रेंज पॉइंट तक पहुंचने की जरूरत है।
तो साहब 15 लाख किलोमीटर की यात्रा करने के लिए हमारा सूर्य मिशन अब करीब करीब तैयार है। टैस्टिंग लगातार चल रही है। लैग्रेंज पॉइंट तक की 15 लाख किलोमीटर दूरी कर मिशन आदित्य L1 सूर्य के आधे रास्ते में स्थापित हो जाएगा। सूर्य और धरती का गुरुत्वाकर्षण लैग्रेंज पॉइंट पर सेंट्रीपेटल फोर्स के बराबर हो जाता है। इसलिए हमारा आदित्य यान इस पॉइंट पर बहुत कम ईंधन के साथ रुक कर लंबे समय तक सूर्य के रहस्यों को खोज सकता है।
इंस्टिट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस के स्पेस एनालिस्ट डा. अजय लेले का कहना है कि आदित्य मिशन यद्यपि लैग्रेंज पॉइंट 1 पर जाएगा, पर इसकी क्षमता पांचों लैग्रेंज पॉइंट पर जाने की है। जाहिर है हमारा सूर्य मिशन आने वाले दिनों में भारत को उन तीन विकसित देशों के समकक्ष ला खड़ा करेगा जो सूर्य मिशन पर काम कर रहे हैं। वह भी किसी की मदद या तकनीकी सहायता से नहीं, खुद अपने दम पर, हमारे समर्पित वैज्ञानिकों के हौसलों पर।
चंद्रमा की धरती पर बेहद सफल चंद्रयान 3 उतारने के बाद इसरो के सपने सातवें आसमान पर हैंम जबकि हम भारतवासियों से पूछें तो हमारे सपने आठवें आसमान पर पहुंच गए हैं। चंद्रमा और सूर्य दोनों न केवल हमारी आस्था, धर्म और ज्योतिष के विषय हैं अपितु हमारी मेधा के साथ विज्ञान से भी जुड़ गए हैं। सहज रूप से समझ लीजिए कि जब जब विज्ञान और अध्यात्म साथ साथ जुड़े हैं, आविष्कार हुए हैं, वेदों उपनिषदों जैसे विज्ञान का जन्म हुआ है।
चंद्र मिशन, गगन यान, सूर्य मिशन, मंगल मिशन और शुक्र मिशन के साथ भारत की आध्यात्मिक विज्ञान यात्रा अब चल पड़ी है। इसे रोकना न स्वदेश के विघ्न संतोषियों के बस में है और न संसार की किसी शक्ति के ही। अनादि काल से हमारे ऋषि मुनियों ने पर्वतों पर एकांत तपस्या की। वास्तव में प्रकृति के रहस्य खोजने के लिए वह विज्ञान साधना थी जिसे तपस्या नाम दिया गया।
विश्व को भले ही यह जानकर आश्चर्य हो कि इसरो ने वेदों और संस्कृत ग्रंथों का इस्तेमाल कर शक्तिशाली एसएलवी राकेट तब तैयार किए थे जब अमेरिका ने हमें क्रायोजेनिक इंजन देने से इंकार कर हमारे स्पेस कार्यक्रम को ठप्प करना चाहा था। आइए, अपने अपने वर्तमान के साथ साथ अतीत पर भी गौरवान्वित होते हैं। तारीख की प्रतीक्षा कीजिए, फिर सूर्य की ओर चलते हैं।