देवशयनी एकादशी से शुरू होंगे चातुर्मास चार महीने तक नहीं होंगे विवाह मुहूर्त -
सनातन हिन्दू संस्कृति में "चातुर्मास" को बहुत विशिष्ट समय के रूप में माना गया है जिसका वर्णन पुराणों में बहुत विस्तार से किया गया है......... हिन्दू वैदिक पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को "देवशयनी एकादशी" या हरिशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है और इसी दिन से चातुर्मास का आरम्भ होता है।
समान्य दृष्टि से तो चातुर्मास चार महीनो का एक समयकाल है जो आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी के मध्य उपस्थित रहता है पर चातुर्मास की वास्तविकता और इसके पौराणिक महत्व को देखें तो राजा बलि को दिए वचनानुसार अपनी लीलस्वरूप भगवान श्री हरी विष्णु देवशयनी एकादशी के दिन से अगले चार माह के लिए योगनिद्रा या शयनावस्था में रहते हैं और और इस चार माह के विशेष समयकाल को ही चातुर्मास कहते हैं जो की आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी के मध्य उपस्थित रहता है।
इस बार देवशयनी एकादशी 29 जून बृहस्पतिवार को है.. 29 जून देवशयनी एकादशी से ही चातुर्मास का आरम्भ हो जायेगा 29 जून से 23 नवम्बर तक चातुर्मास उपस्थित रहेंगे, 23 नवम्बर देवउठान एकादशी को चातुर्मास समाप्त होंगे।
चातुर्मास के महत्व को देखें तो यह सांसारिक आध्यात्मिक और वैज्ञानिक सभी दृष्टियों से बड़ा महत्व रखने वाला समय है, देवशयन होने के कारण चातुर्मास में विशेष रूप से मंगल वैवाहिक कार्य या विवाह संस्कार नहीं किये जाते जिससे देवशयनी एकादशी से देवउठान एकादशी के मध्य चार महीनो तक के समय में कोई भी विवाह मुहूर्त नहीं होता है अर्थात इस बीच विवाह कार्य बंद रहते हैं यह तो चातुर्मास में विवाह कार्य न करने का पौराणिक महत्व है पर इसके पीछे कुछ भौगौलिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी छिपा है।
चातुर्मास का समय वर्षा ऋतु का समय होता है जिससे इस समय में रास्तों पर पानी आदि भरने की समस्या भी होती है तथा प्राचीन काल में जब यातायात और सड़कों की व्यवस्था अच्छी नहीं थी उन दिनों वर्षा के कारण यह चार महीने दूर आने जाने के लिए अच्छे नहीं मने जाते थे यह भी चातुर्मास में विवाह कार्य न होने का एक कारण था,
अब इसके पीछे एक वैज्ञानिक कारण यह भी है के चातुर्मास का समय वर्षा के साथ साथ संक्रमण काल भी होता है जिसमे जीवाणु या बैक्टीरिया बहुत उत्पन्न होते हैं और इस समय में पाचन शक्ति भी क्षीण पड़ जाती है तो विवाह आदि में भोजन से होने वाली बिमारियों, फ़ूड पॉइजनिंग आदि की समस्या से बचने के लिए भी सनातन संस्कृति में चातुर्मास को विवाह कार्यों के लिए त्याज्य माना गया है जो हिन्दू धर्म की परम्पराओं की वैज्ञानिकता को भी दर्शाता है
चातुर्मास के विषय में जो एक बहुत महत्वपूर्ण बात है वो यह है के इस समय में विवाह कार्य और विवाह मुहूर्त तो त्याज्य होते हैं परन्तु आध्यात्मिक दृष्टि से यह समय बहुत ही श्रेष्ठ माना गया है चातुर्मास में जप तप साधना दान व्रत और कथा श्रवण आदि का बहुत ही विशेष महत्व बताया गया है, चातुर्मास का यह चार माह का समय आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत उच्च और सकारात्मक ऊर्जाओं को उत्पन्न करने वाला होता है इसलिए इस समय में किये गए मंत्र जाप, दान, व्रत आदि बहुत शुभ फल देने वाले होते हैं
इस बार चातुर्मास समय काल – 29 जून 2023 से आरम्भ 23 नवम्बर 2023 को समाप्त
29 जून देवशयनी एकादशी के बाद अगले चार महीने कोई विवाह मुहूर्त नहीं होगा इसके बाद सीधे 23 नवम्बर देवउठान एकादशी से ही विवाह मुहूर्त शुरू होंगे