Andha kanoon.. जिनके साथ अत्याचार हुआ जिनका बलात्कार हुआ वह 31 साल से उस दर्द को झेल रही है और जब तक जिएंगी तब तक उस सजा को भुगतनी रहेंगी जो अपराध उनके साथ किसी और ने किया। लेकिन हमारा दयावान कानून उन हैवानों के मानवाधिकारों को देखते हुए उनकी उम्र कैद को 10 साल की सजा में बदल देता है और उन्हें एक आजाद जिंदगी जीने का अवसर देता है। क्या ये न्याय है??? क्या यही न्याय है??? तो अन्याय क्या होता है?
महिलाओं के लिए न्याय की बात करने वाला हमारा कानून बलात्कार पीड़िता महिलाओं के साथ क्या यह अन्याय नहीं कर रहा और आखिर कहां गए वह लोग जो महिला सशक्तिकरण की बातें करते हैं आखिर क्यों वह इन महिलाओं के साथ हो रहे इस अन्याय पर चुप हैं?
यह सब देख कर तो ऐसा लगता है कि खादिम सरवर चिश्ती ने हाल ही में जो कहा था वह सच कहा था , "लड़की चीज ही ऐसी होती है" । यानी अपराधियों की कोई गलती है ही नहीं गलती तो इन पीड़ितों की थी क्योंकि वह चीज ही ऐसी है...😞।
वाह रे मेरे देश का कानून जो उनकी सजा कम कर रहा है जिन्होंने सैकड़ों लड़कियों को जिंदगी बर्बाद कर दी, जिनके कारण आज भी कई लड़कियां दुख दर्द से भरी नरकीय जिंदगी जी रही हैं, कानून इनपर दया दिखा रहा है जिन्होंने सकड़ों लड़कियों से उनकी अस्मिता के साथ साथ उनके सारे सपने छीन लिए...
पढ़िए इस न्यूज पेपर में इन महिलाओं का दर्द जिन्हें आज से 31 साल पहले मुस्लिम हैवानों ने जिनके तार अजमेर दरगाह के खादिमों से जुड़े थे और कुछ तो खुद खादिम थे उन्होंने बर्बाद कर दिया, अपनी हवस का शिकार बनाया और नोच डाला...
जिन हैवानों को मृत्यु दंड मिलना चाहिए फांसी पर लटका देना चाहिए उनकी उम्र कैद की सजा को भी हमारा कानून कम करके उन्हें आजाद घूमने के लिए छोड़ देता है? क्या ये सही है? क्या ये उन पीड़िताओं के घावों पर मिर्च छिड़कने जैसा नहीं है? क्या ये बलात्कारियों को प्रोत्साहन नहीं है?
31 साल पुराने उस अजमेर रेप कांड ने लगभग 150 हिंदू लड़कियों की जिंदगी बर्बाद कर दी थी जिसमें सारे अपराधी लगभग मुस्लिम थे , कुछ तो दरगाह के खादिम थे और कुछ का दरगाह के खादिमों से सीधा संबंध था, तीन मुख्य आरोपी तो चिश्ती परिवार से ही थे।
आज भी बलात्कार पिड़िताएं चेहरा छुपाकर जीने को मजबूर हैं, कुछ ने तो उसी समय अपने जीवन को समाप्त कर मृत्यु का आलिंगन कर लिया था। इन पीड़िताओं ने क्या गुनाह किया था जो ये 31 वर्षों से सजा भुगत रही हैं और जब तक जिएंगी तब तक सजा भुगतती रहेंगी.. क्या कानून इस सजा को कम कर सकता है? लेकिन इस सजा को दर्दनाक जरूर बना सकता है और वो कर रहा है, अपराधियों की सजा कम करके उन्हें रिहा करके।
जिस Ajmer 92 का कट्टरपंथी और उनके हिमायती विरोध कर रहें हैं उसमें दिखाया गया अजमेर रेप कांड मात्र एक खबर नहीं, अपितु समाज और व्यवस्था के माथे पर कलंक की दास्तां है। 25 से 35 साल के 30 दरिंदों ने पहले एक बच्ची से गैंगरेप कर अश्लील फोटो लिए। फिर ब्लैकमेल कर उसकी सहेलियों को जबरन बुलवाया। दरिंदे स्कूल-कॉलेज के पास मंडराते, लड़कियों को उठाकर वैन में ले जाते।
एक के बाद एक करके जिहादियों का यह गंदा खेल डेढ़ सौ लड़कियों तक जा पहुंचा लगभग 15 से 20 वर्ष की स्कूल जाती बच्चियों के साथ इन जिहादियों ने बर्बरता की उनका पूरा जीवन बर्बाद कर दिया उनके सपने जलाकर राख कर दिए। कुछ पीड़ितों ने अपनी जान दे दी तो बहुत सी पिड़िताएं आज ऐसी दर्दनाक स्थिति में है कि अगर आप केवल उनकी कहानियां सुनोगे तो आप का सीना फट जाएगा, आप खून के आंसू रोने लगोगे लेकिन हमारे देश का महान कानून उन दरिंदे बलात्कारियों पर दया दिखा रहा है और उनकी उम्र कैद की सजा को 10 साल करके उन्हें जीवन जीने के लिए आजाद छोड़ दे रहा है।
दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुशार पीड़िता दूरस्थ गांव-कस्बों में रह रही हैं। कोई चूड़ियां बेचकर तो कोई मजदूरी कर पेट पाल रही हैं। किराए के कमरे या कुटिया में रह रही हैं। जैसे-तैसे शादी हुई लेकिन पता चला तो पति ने छोड़ दिया। अब कोई दादी बन चुकी है, कोई नानी। पेशी पर कोर्ट पहुंचती हैं तो पूरा शरीर ढककर, ताकि कोई पहचान न ले। उस घिनौने कांड का साया बच्चों पर न पड़े।
देश की कानून व्यवस्था पर एक कलंक 31 साल पहले लगा था और एक कलंक अब देश की न्याय व्यवस्था पर इन दरिंदों को छोड़ने के बाद लग रहा है।
जिन दरिंदों के अपराध सिद्ध हो चुके हैं जिनका पाप अक्षम में है ऐसे लोगों को क्षमा करना ऐसे लोगों पर दया करके उन्हें समाज में खुला घूमने की छूट देना यह न्याय नहीं हो सकता, ये पीड़िताओं के साथ अन्याय हुवा है जो आज भी घुट घुट कर एक दर्दनाक एक गुमनाम जिंदगी अपने चेहरे पर पर्दा रखकर जीने के लिए मजबूर हैं।
दैनिक भास्कर के आर्टिकल से 3 पीड़िताओं को स्थिति👇
पिंकी अजमेर से 200 किमी दूर एक कस्बे में टूटे-फूटे कमरे में रहती हैं। बोलीं- मजदूरी कर बेटी को पाल रही हूं। बेटी 12वीं में पढ़ती है। मेरे ख्वाब तो दरिंदों ने तोड़ दिए, अब जी रही हूं ताकि बेटी को अफसर बना सकूं। कलेजा फट पड़ता है, जब उस कांड की खबरें देखकर बेटी पूछने लगती है कि बताओ न मां, वे पीड़िताएं कैसे जी रही होंगी? जब कोर्ट जाना हो तो बेटी को झूठ बोलकर निकलना पड़ता है। पिंकी कुछ देर स्तब्ध रहीं, फिर बोलीं- तब मैं 15 साल की थी और 11वीं में पढ़ती थी।
संजना एक गांव में चूड़ियां बेचती मिलीं बोलीं- तब मैं 15 साल की थी। पिता कारोबारी थे। दरिंदे सहेली के साथ मुझे भी स्कूल वैन में जबरन ले गए। कई दिन अलग-अलग जगह रेप किया। पढ़ाई छूट गई। पिता चल बसे। 12-13 साल की दो बहनें थीं। दरिंदे कहते कि उन्हें भी ला। आखिर घर छोड़ना पड़ा। मां ने शादी कराई लेकिन पति को पता चला तो बेटे के लिए कहने लगा कि मेरी औलाद नहीं है। अब बेटे के साथ अकेले जी रही हूं।
प्रमिला तब 17 साल की थीं। अब एक कस्बे में छोटे मकान में रहती हैं। बोलीं- अब तक ही न्याय नहीं मिला तो आप भला क्या कर दोगे? दादी बन चुकी हूं लेकिन घर से निकलती हूं तो आज भी कई बार ‘वो रही’ सुनकर सिहर उठती हूं। मां-बाप ने शादी कराई, बाद में पति ने छोड़ दिया। नहीं चाहती कि बेटे को कभी भनक भी लगे। (सभी नाम परिवर्तित)
अजमेर दरगाह के खादिमों के सचिव सरवर चिश्ती के अनुशार ये पोडिताएं ही दोषी हैं क्योंकि "लड़की चीज ही ऐसी होती है" और बलात्कारी दरिंदों को छोड़कर न्याय व्यवस्था ने सरवर चिश्ती को सही सिद्ध कर दिया😞
जय श्री राम जय सनातन धर्म
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