बात राज्यों में भाजपा की करें तो वसुंधरा राजे सिंधिया, मनोहरलाल खट्टर और रमण सिंह राज्यों में चुनावी चुनौती पेश करने के लिए बेहद कमजोर कड़ियां हैं! मध्य प्रदेश में मामाजी का जलवा भी उतार पर है! इन दिनों सिंधिया भी विचलित दिखाई दे रहे हैं!
कर्नाटक में भाजपा के हारने की वजह जहां कांग्रेस नेताओं की मेहनत थी, राहुल की भारत जोड़ो यात्रा थी, वहीं यदुरप्पा एंड कंपनी का भारी भ्रष्टाचार भी था! भाजपा हिमाचल प्रदेश में कुछ खास नहीं कर पाएगी, सब जानते थे, लेकिन अनुराग ठाकुर अपने राज्य में कितने कमजोर नेता हैं, इसका पता तब चला जब वहां कांग्रेस की सरकार बन गई!
तो राज्यों में भाजपा की राज्य इकाइयां क्यों कुछ नहीं कर पा रही? क्या तमाम राज्य पार्टी यूनिट्स मोदी के चेहरे पर निर्भर रहना चाहती हैं? आइए, एक कड़ुआ सवाल भी पूछ लें। क्या तमाम चुनावों में मोदी और सिर्फ मोदी के चेहरा दिखाने से लोग ऊब चुके हैं? क्या भाजपा में मोदी मोदी का वन मैन शो राज्यों के मतदाताओं को अब प्रभावित नहीं कर रहा है? पार्टी ने चुनावों में मोदी से ज्यादा काम इसलिए लिया चूंकि और कोई चेहरा इन नौ सालों में पनप नहीं पाया। गंभीर सवाल यह है कि चुनावी राजनीति में मोदी के अलावा और किसी नेता को क्यों नहीं उतारा जाता? क्या मोदी, शाह और योगी; यही तीन चेहरे बचे हैं भाजपा के पास?
सबसे गंभीर सवाल जो अब पूछ ही लेना चाहिए। क्या संघ और भाजपा के थिंक टैंक ने ऐसी कोई पॉलिसी बनाई है कि हर चुनाव में केवल मोदी, शाह और योगी को प्रोजेक्ट किया जाए? चुनावों में हमने कभी नितिन गडकरी, राजनाथ सिंह, पियूष गोयल आदि बड़े नेताओं को जनसभाएं करते हुए नहीं देखा। इतना ही क्यों, उन्हें तो अपने विभागों के कार्यों का शिलान्यास अथवा लोकार्पण करते हुए भी नहीं देखा। तो वह कौन है जिसके इशारे पर केवल वन मैन शो चल रहा है?
लोकतंत्र में कैबिनेट की सामूहिक जिम्मेदारी होती है और चुनाव में भी होनी चाहिए। सत्तारूढ़ दल के लिए यह जरूरी है। कहीं वन मैन शो का ही तो यह परिणाम नहीं कि राज्य इकाइयों का बट्टा बैठता चला गया है। दुर्भाग्य से कांग्रेस ने यह सिखाया कि हमेशा वन मैन शो चलना चाहिए। यकीन न हो तो नेहरू से लेकर सोनिया गांधी तक देख लीजिए। तो क्या भाजपा ने भी कांग्रेस से वन मैन शो की तकनीक सीखकर पार्टी का वजूद बचाने का सारा जिम्मा मोदी के सिर डाल दिया है? लगता तो ऐसा ही है।
खुद देख लीजिए। योगी, हेमंता विस्व सरमा और देवेंद्र फडणवीस को छोड़कर भाजपा के पास किस राज्य में कोई ऐसा नेता नहीं है जो पार्टी को अकेले अपने दम पर विधानसभा चुनाव जिता ले जाए? बिहार, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में बीजेपी के पास कोई नेता ही नहीं। गुजरात में जो है, मोदी और अमित शाह का निजी खेल है। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा कमजोर अध्यक्ष हैं। वे अपना गृह राज्य हिमाचल प्रदेश तक नहीं जीत पाए।
दक्षिण का अकेला राज्य भाजपा गंवा चुकी है। एक जमाना था जब बीजेपी के पास अटल, आडवाणी, सुषमा स्वराज, शेखावत, मदनलाल खुराना, कल्याण सिंह आदि अनेक नेता हुआ करते थे। माना कि देश की जनता में मोदी के प्रति जबरदस्त आकर्षण बरकरार है। उनके लेबल का नेता अन्य दलों के पास आज भी नहीं है। लेकिन प्रधानमंत्री के पद पर बैठे मोदी के चेहरे का अधिक चुनावी प्रयोग लोकसभा चुनाव में होना चाहिए, स्टेट्स में नहीं। प्रधानमंत्री के रूप में देश को अभी एक और टर्म मोदी की जरूरत है। भाजपा और देश का भला इसी में है। यह तभी संभव है जब राज्यों के संगठन भी अपनी जिम्मेदारी निभाएं। पनघट की डगर बड़ी कठिन होती जा रही है।