चीफ़ जस्टिस ने आज कहा कि दुनिया बदल रही है। लोग मुझे ट्रोल कर रहे हैं फिर भी कहना चाहता हूँ कि मेल अथवा फ़ीमेल के निर्धारण के संबंध में जननांग की ही सारी भूमिका नहीं है।
चीफ़ जस्टिस लोगों की चिंताओं को केवल ट्रोल कहकर नहीं टाल सकते। जो लोग गंभीरता के साथ प्रश्न पूछ रहे हैं उनका जवाब तो जस्टिस महोदय को देना ही चाहिए। असल प्रश्न यह है कि वह यदि जेंडर फ़्लूइडिटी अर्थात् अपने मन से व्यक्ति को अपना जेंडर चुनने की आज़ादी देते हैं तो बलात्कार के मामले में सजा कैसे होगी यदि किसी बायोलाजिकल पुरुष ने अपनी आइडेंटिटी एक महिला के रूप में स्वीकार कर ली?
कल को चुनावों में मिलने वाले आरक्षण के लिए यदि पुरुष ख़ुद को महिला घोषित करके चुनाव लड़ने लगेंगे तो क्या महिलाओं के नेतृत्व विकास के लिए जो यह क़ानून आया है उसका वास्तविक ध्येय समाप्त नहीं होगा?
किसी पुरुष ने ख़ुद को महिला घोषित कर लिया और ऐसे इक्का दुक्का पुरुष यदि महिलाओं के बाथरूम, टॉयलेट इस्तेमाल करें तो एक सामान्य महिला को होने वाली परेशानी झिझक का क्या समाधान है?
क्या इंडियन साइकेट्रिक एसोशियेशन ने जो जेंडर फ़्लूइडिटी के सम्बंध में समर्थन पत्र जारी किया है वह किसी भी तरह से आज के समय के हिसाब से मान्य एविडेंस बेस्ड मेडिसिन के मूल धारणा को पूरा करता है? क्या IPA कोई राजनीतिक पार्टी है जो किसी मुद्दे पर एक पन्ने का समर्थन पत्र जारी कर सकता है? भारतीय समाज में बिना किसी रिसर्च के ऐसा समर्थन पत्र क्या IPA के कार्यशैली पर प्रश्न चिन्ह नहीं खड़ा करता? कल को कोई अन्य मेडिकल समूह यदि इसी तरह का एक पत्र जेंडर फ़्लूइडिटी के विरोध में जारी कर दे तो वह पत्र IPA के समर्थन पत्र से कम मान्यता का कैसे हो सकता है?
यदि किसी बायोलाजिकल पुरुष ने ख़ुद को मानसिक रूप से एक महिला के रूप में स्वीकार कर लिया और वह महिलाओं के साथ रहने लगा। अब यदि किसी दिन उसके बायोलाजिकल नीड ने मानसिक पुरुष के ऊपर क़ब्ज़ा कर लिया और उसने बलात्कार कर दिया तो इसे किस प्रकार देखा जाएगा? इसका दोषी कौन होगा? यूरोप में इस तरह की घटना घट चुकी है जहां एक पुरुष ने ख़ुद को महिला बताया और बाद में महिलाओं के हॉस्टल में अपने साथी लड़कियों के साथ बलात्कार कर दिया।
यदि मानसिक अवस्था के आधार पर निर्धारण की छूट दी गई तो कल को किसी ने अपने आप को बिल्ली मान लिया और बिल्लियों के साथ सेक्स करना शुरू कर दिया तो यह जेंडर फ़्लूइडिटी से किस प्रकार भिन्न है? यह जेंडर फ़्लूडिटी के ही स्पेक्ट्रम का एक अगला पड़ाव होगा।
इसी तरफ़ पश्चिम में कुछ लोगों ने आंदोलन शुरू किया है कि जो लोग छोटे छोटे बच्चे बच्चियों के साथ संबंध बनाते हैं, उन्हें पीडोफाइल के बजाय माइनर अट्रैक्टेड कहा जाएगा। जब अपने मन के आधार पर ही सेक्सुअल ओरिएंटेशन की छूट दे दी जाएगी तो कल को बच्चे बच्चियों के साथ बलात्कार करने वाले लोगों को भला बलात्कारी कैसे कहेंगे? क्यूँकि वह आगे चलकर यह तर्क लायेंगे कि भले उनकी बायोलाजी एडल्ट जैसी हो पर उनका मानसिक दशा विशेष रूप से सेक्स के सम्बंध में छोटे बच्चे वाली है अतः उनको दोषी नहीं माना जाना चाहिए। UN के सामने ऐसे लोगों के समूह ने प्रदर्शन भी किया है।
चीफ़ जस्टिस को इन महत्वपूर्ण सवालों के जवाब को देना आवश्यक है। वह ट्रोल के नाम पर इन सवालों के जबाब से भाग नहीं सकते। इंडियन साइकेट्रिक एशोसियेशन के किसी भी चिट्ठी का कोई मतलब नहीं है क्यूँकि उन्होंने इसके संबंध में कहीं कोई दो चार पीढ़ी का रिसर्च नहीं किया है। उन्होंने इससे होने वाले नुक़सान का भी कहीं कोई रिसर्च नहीं किया है। उन्होंने भारतीय समाज के महिलाओं को होने वाली असहजता को भी कनसीडर नहीं किया है। इसके क़ानूनी दावपेच को भी नहीं समझा है। ऐसी चिट्ठी और ऐसा कांसेप्ट एक फ़्राड है। लेफ्ट लिबरल लाबी के दबाव में पहले अमेरिका एवं यूरोप के साइकेट्रिक एशिशियेशन ने इस मूर्खता को स्वीकार कर किया और भारत वालों ने इसे कापी कर लिया।
यदि मानसिक दशा से सेक्स, सेक्सुअल ओरिएंटेशन और सेक्सुअल नीड को डिसाइड किया गया तो जैसे पीडोफ़ाइल अपने लिए माईनर अट्रैक्टेड पर्सन का नया नाम देकर अपने बलात्कार के कुकृत्य से बचने का रास्ता निकाल रहे हैं वैसे ही ख़ूँख़ार बलात्कारी ख़ुद को ऑब्सेसिव कम्पल्सिव सेक्सुअलटी बिहैवियर जैसा सोफ़िस्टिकेटेड नाम रखकर बचने का रास्ता खोजेंगे।
इस तरह के मूर्खता को भारत में क़तई बढ़ावा नहीं दिया जा सकता...