एक पुरानी फिल्म का गीत है...
पगड़ी संभाल जट्टा, पगड़ी संभाल...
लुट गया माल तेरा लूट गया माल...
अब चुनावी हवा तेजी से चलनी शुरू हो जाएगी और सबको अपनी पगड़ी संभालनी है। कुछ की राष्ट्रीय मान्यता जा चुकी है और कुछ की खतरे में है। किसी की क्षेत्रीय मान्यता खतरे में है?
किसी जमाने में वैशाली में बसंत उत्सव हुआ करता था।।उसमें बहुत खूबसूरत खूबसूरत नर्तकियां आया करती थीं। एक बार एक बहुत ही सुंदर नर्तकी चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में नृत्य कर रही थी। सभी लोग मंत्रमुग्ध थे और वह धीरे-धीरे अपने वस्त्र उतारती जा रही थी। बाद में वह नग्न हो गई, तब आचार्य चाणक्य ने पूछा... इसके बाद दिखाने के लिए क्या है? क्योंकि आचार्य चाणक्य पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा था?
इसी तरह से जिस पार्टी की कामयाबी का राज मुफ्त की बिजली और मुफ्त का पानी है, अब उस पार्टी द्वारा संचालित राज्य सरकार के पास सरकार चलाने के लिए पैसा नहीं है। उन्होंने शराब नीति में जबरदस्त परिवर्तन किया। स्कूल और हॉस्पिटल के पास में जो ठेके प्रतिबंधित थे, तमाम ऐसी जगहों पर भी खोल दिए गए। सस्ती शराब देनी शुरू कर दी। उसका दुष्परिणाम अब सामने आ रहा है। अन्ना हजारे ने कहा है कि इस तरह शराब का जो प्रयोग दिल्ली सरकार ने किया है अच्छा होगा कि इसके जो दोषी लोग हैं उन्हें सजा मिले।
वैसे आम चुनाव से पहले हमेशा गठबंधन बनते रहते हैं। फिलहाल स्थिति यह है कि शरद पवार बहुत सीनियर लीडर है लेकिन कोई भी उनकी लीडरशिप में 2024 का चुनाव नहीं लड़ना चाहता। कुछ लोग राहुल गांधी को चाहते हैं, कुछ लोग ममता बनर्जी को और कुछ लोग नीतीश कुमार को नेता घोषित करना चाहते हैं। असली बात यह है कि यह सब लोग मोदी को चुनौती देना चाहते हैं। जिस तरह इंदिरा जी के खिलाफ विपक्ष के नेता यह समझते थे कि इकट्ठे होने से सारे वोट मिल जाएंगे? पर सवाल यह है इस तरह के प्रयोग विधानसभा के चुनाव में उत्तर प्रदेश और बिहार में किए जा चुके हैं, उसका परिणाम क्या निकला?
दरअसल दिल्ली और बंगाल में वन मैन शो है। इसलिए वहां पर विपक्षी दल के अन्य नेताओं की दाल गल नहीं रही है। दूसरी तरफ महाराष्ट्र में क्योंकि शरद पवार जिंदगी की आखरी राजनीतिक सीढ़ी पर हैं, और उनके भतीजे आगे का भविष्य देखना चाहते हैं इसी कारण चाचा भतीजा में खींचतान चल रही है। सबसे दिलचस्प बात यह है की राजनीति दिलों का मामला है। जब तक आप जनता के दिलों को नहीं छू पाते हैं तब तक आपको कोई नेता नहीं मानेगा। जबकि विपक्षी नेता राजनीति की जगह गणित के फार्मूले पर चुनाव लड़ना चाहते हैं। जिनके पास ईमानदार छवि वाले नेता की नितांत कमी है, जिसके रोडमैप पर चुनाव लड़ा जा सके। अभी ऐसी चर्चाएं रोजाना चलती रहेंगी परंतु जब तक कोई सार्थक फॉर्मूला जनता के सामने नहीं पेश किया जाता तब तक मोदी को हटाना नामुमकिन है...?