जब पूरा विश्व अज्ञानता क़े अंधेरे में डूबा हुआ था उस समय भारत के महान ऋषिमुनि वैध गुरुकुल ज्ञान विज्ञान एक रौशनी बनकर जगमगा रहा था विश्व को राह दिखा रहा था।
आज से 1500-2000 वर्ष से अस्तित्व में धर्म संस्कृति ज्ञान आया है वो अपने आप में इठलाता है घमण्ड करता है हमे नीचा दिखाता है।
एक हजार वर्ष से विदेशी आक्रमकारी अत्याचारी वहसी लोगो ने सिर्फ हमे लुटा तहस-नहस ही नही किया बल्कि हमारी पहचान ज्ञान धर्म संस्कृति पहचान को इर्ष्यावश मिटाने का भरसक प्रयत्न किया कि इंसानियत भी शर्मशार हो जाये।
हमारी धर्म संस्कृति इस पृथ्वी जल वायू आकाश सृष्टि के जन्म से शुरुआत होती है कि ब्रम्हा विष्णु महेश ने बनाया है।
जो लोग सिर्फ अन्य धर्म संस्कृति पूजा स्थल को नष्ट करके ही अपने को श्रेष्ठ मानते है वो लोग हमारी गीता पूराण रामायण धर्मग्रंथ प्राचीन मंदिर महल को वास्तविक नहीं मानते है।
इनके अलावा भी हमारी प्राचीन संस्कृति ज्ञान विज्ञान भी उनको आयना दिखाता कुछ सत्यतात्मक तथ्य।
तक्षशिला और नालंदा को विश्व की सबसे प्राचीन विश्वविधालय 2700 पहले स्थापित किया गया था जहां देश ही नही विदेश से भी हजारो छात्रों पढ़ने आते थे जब अन्य जगह शिक्षण संस्था नही थे।
2500 वर्ष पहले दुनिया का पहला व्याकरण ग्रंथ पाणिनी लिखा गया जो संस्कृति में था उसे आष्टाध्यायी भी कहा जाता है।
पाईथागोरस का सिध्दांत तो अभी आया है उसे प्राचीन भारत में बौधायन ने शल्वसूत्र में इसका उल्लेख कर दिया था पाई की सही गणना उस समय भी कर दिया है।
धन्वंतरी ने वनस्पती पर आधारित चिकित्सा शास्त्र दिया जो कि विश्व की पहली चिकित्सा बुक है।
2300 साल पहले ऋषि चरक ने चरक संहिता में वर्णन शरीरशास्त्र गर्भशास्त्र औषधिशास्त्र इत्यादी विषयों में शोध वर्णन विस्तृत उल्लेख है उस जमाने में कही और नही मिलता है।
चरक और सुश्रुत ने सभी रोग के निदान और उसके बचाव का तरीका आयुर्वेद बताया गया है, अर्थवेद पर उल्लेख किया गया है।
ऋग्वेद अर्थवेद यजुर्वेद में बता दिया गया है कि युरेनस की एक राशि में आने के लिये 84 वर्ष और न्यचुन को 1648 वर्ष प्लेटो को 2844 वर्ष लगते है।
भास्कराचार्य ने करण कुतूहल ग्रंथ में बता चुके है कि जब चंद्रमा सूर्य को ढक लेता है तो सूर्यग्रहण और जब पृथ्वी की छाया चंद्रमा को ढक लेता है तो चंद्रग्रहण होता है, विश्व में पहला लिखित प्रमाण दिया था।
विश्व का पहला जलाशय और बांध भी सौराष्ट्र की राय्वातीका पहाडियो में चंद्रगुप्त मौर्य के समय ही बन गया था नाम सुदर्शना रखा था।
विश्व में सर्वप्रथम आर्यभट्ट ने शून्य और दशमलव आधारित अंक पध्दति का प्रयोग किया था।
दिल्ली में स्थित लोह स्तम्भ का निर्माण चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने कराया था। इसमे आज तक जंग नही लगा है। आज के वैज्ञानिक ऐसा लोहा आज तक नही बना पाये है।
मोहनजोदडॊ की नगरीय सभ्यता उस समय के उन्नत सिविल इंजिनियरिंग और आर्किटेक्चर की जानकारी उपयोग को दर्शाता है।
जलयान निर्माण और नौपरिवहन के उपयोग 6 हजार पहले से करते आ रहे है।
शतरंज लुडो साप-सीडी तास के खेलो का जन्म हजारो साल पहले ही कर दिया था।
विभिन्न धातूओ को गलाकर नया औजार वर्तन मूर्ति बनाने कि कला का उपयोग 2500 साल पहले से ही करते आ रहे है।