#शुभ_रात्रि
आत्मसंयम का सहज और सरल अर्थ है अपने आप पर, अपने मन पर नियंत्रण। इसका शाब्दिक अर्थ जितना सरल प्रतीत होता है वास्तविक जीवन में इस को प्रयोग में लाना और इस को आत्मसात करना उतना ही कठिन है। इसकी महत्ता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि स्वयं भगवान श्रीकृष्ण को गीता में इसके बारे में विस्तार से समझाना पड़ा था। इस पृथ्वी पर जितने भी महापुरुष, ऋषि, महर्षि गण अवतरित हुए हैं उनके जीवन का अध्ययन करने पर एक बात जो सभी में समान पाई जाती है वह यह कि उनके उत्कर्ष प्राप्ति में जो सबसे अहम कारक था वह आत्म संयम ही था।
मानव जीवन में संयम की आवश्यकता को सभी विचारशील व्यक्तियों ने स्वीकारा है। सासारिक व्यवहारों और संबंधों को परिष्कृत तथा सुसंस्कृत रूप में स्थित रखने के लिए संयम की अत्यंत आवश्यकता है। संसार के प्रत्येक क्षेत्र में, जीवन के हर पहलू पर सफलता, विकास एवं उत्थान की ओर अग्रसर होने के लिए संयम की बहुत उपयोगिता है।
हम सभी जानते हैं कि मन से चंचल कुछ भी नहीं है। अपनी भावनाओं को खुला छोड़ देने से हम अपनी कई शक्तिया नष्ट कर बैठते हैं। शक्ति, असल में कार्य करने में व्यय करनी चाहिए। पर, वह भावना के रूप में नष्ट हो जाती है। जब मन पूर्णतया स्थिर एवं एकाग्र होता है तभी उसकी पूरी शक्ति शुभ कार्य करने में व्यय होती है। संसार के महापुरुषों का जीवन अद्भुत स्थिर हा है। शांत, क्षमाशील, उदार एवं स्थिर मन ही सबसे अधिक कार्य कर पाता है। यही असल में आत्म संयम है। अपना मित्र वह है जिसने अपने आप को जीत लिया है। खुद को जिसने नहीं जीता वह अपना ही शत्रु है।
संसार में कोई भी नियम बिना आत्म संयम के संभव नहीं है। शारीरिक संयम भी बिना उसकी सहायता के नहीं चल सकता। आधुनिक समय में, चारों ओर, हम मनुष्य को इंद्गियों का दास ही पाते हैं। कभी-कभी लोग छोटी-छोटी भौतिक वस्तुओं (शराब, जुआ, धूम्रपान, आदि) के दासत्व में इस कदर घिर जाते हैं कि बड़ी शान से कहते फिरते हैं कि मैं इसके बिना रह नहीं सकता। मनुष्य यदि ऐसी वस्तुओं का दासत्व इस कदर स्वीकार कर ले कि उसके बिना उसे अपना जीवन दूभर प्रतीत होने लगे तो क्या ऐसे आत्मबल पर किसी बड़े लक्ष्य को हासिल कर पाएगा? यहीं जरूरी होता है आत्म संयम।
आत्म संयम के कठिन रास्ते पर चलने वालों को कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। हर दिन अपना आत्म निरीक्षण करते रहना चाहिए। अपने दोष, बुराइयों को जान बूझकर छिपाना या उस पर पर्दा नहीं डालना चाहिए। अपनी बुराइयों को सहर्ष स्वीकार करना चाहिए। उसे दूर करने का प्रयास करना चाहिए। संयम के लिए नैतिक बल की बुद्धि जरूरी है। संयम साधना में संगति एवं स्थान का काफी प्रभाव पड़ता है खराब चरित्र एवं दुविचार वाले व्यक्तियों एवं ऐसे स्थान जहा असंयम का वातावरण होता है संयम साधना में सफलता नहीं मिलती है। वहीं, अच्छे लोगों की संगत करके एवं सात्विक वातावरण में रह कर इसे पाया जा सकता है।
आत्म संयम के पथ पर चलना कोई साधारण कार्य नहीं है। बुरी आदतें एवं वासनाएं अच्छे-अच्छों के धैर्य को हिला कर रख देती हैं। निराशा घर कर जाती है। धैर्य जवाब देने लगता है। सफलता पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है। इस पर विजय प्राप्त करना आसान नहीं है। इसके लिए अटूट साहस एवं दर्ज की जरूरत है। साहस एवं धैर्य के सहारे निरंतर प्रयास करने पर संयम साधना की प्राप्ति अवश्य होती है।याद रखना होगा कि असंभव कुछ भी नहीं होता बस फौलादी जिगर चाहिए। कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है। कहते हैं कि, संयम उस मित्र के समान है जो ओझल होने पर भी मनुष्य की शक्ति-धारा में विद्यमान रहता है।
. 🚩हर हर महादेव 🚩