केंद्र सरकार ने Same sex marriege यानी समलैंगिक विवाह का विरोध किया था, कुछ संगठनों ने भी आपत्ति दर्ज की थी और 31 पूरे जजेस ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले की सुनवाई पर असहमति करते हुए कहा था की ये एक संवेदनशील मामला है किसपर संसद और राज्य विधानसभा में व्यापक चर्चा होनी चाहिए।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट के माननीय जज साहब ने सब कुछ साइड रखते हुए कहा की "मै हूं सुप्रीम कोर्ट का इंचार्ज, मैं करूंगा फैंसला". बस इसी बात से लोगों को लगता है की अब समलैंगिक विवाह भी भारतीय समाज में सामान्य बन जाएगा , जैसे बिना शादी सेक्स करना (लीव इन रिलेशनशिप), फिर बिना शादी बच्चे होना, शादी के बाद भी किसी और से सेक्स करना (एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर)
आप सोचिए कि भविष्य का भारत कैसा होगा जहां चारों तरफ व्यभिचार ही व्यभिचार होगा। शादी के पहले भी मौज मस्ती शादी के बाद पति के अलावा या पत्नी के अलावा बाहर भी रंगरलिया इसके अलावा जो प्रकृति के विरुद्ध है जो शादी की या विवाह की मूल धारणा के विरुद्ध है यानी लड़का लड़के से विवाह करेगा और लड़की लड़की से विवाह करेगी लेकिन उसका रिजल्ट क्या होगा?
आखिर क्यों समाज विरोध नहीं करता हमारे समाज में प्रविष्ट होती अनिष्टकारी शक्तियों का? क्यों हमने विरोध नहीं किया लीव इन रिलेशनशिप का? क्यों एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर का विरोध समाज ने नहीं किया और आज क्यों इस समलैंगिक विवाह का विरोध नहीं किया जा रहा? क्या इन सब कुरीतियों के साथ एक व्यभिचारी भारत देने का निर्णय कर लिया है समाज ने अपनी पीढ़ियों को?
उठो और संगठित होकर विरोध करो हर उस शक्ति का जो समाज को और समाज के मूल्यों के लिए घातक है। समाज के लिए आसुरी शक्तियां उतनी घातक नहीं जितना घातक समाज के सही लोगों का चुप रहकर सबकुछ देखना है...अगर अब हम चुप रहे तो परिणाम भयावह होगा