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आज कल प्रतिस्पर्धा और बेहतर रोजगार की दौड़ में लोग लीक से हटकर बिजनेस और काम धंधे शुरू कर रहे हैं। आप खुद ही सोचिए कि क्या आज से 10-15 साल पहले किसी ने ये सोचा होगा कि उन्हें बाजार की हर चीज घर पर बैठे-बिठाए मिल जाएगी…? लेकिन आज ये बहुत आम बात है, इसी तरह के बहुत से ऐसे बिजनेस स्टार्टअप हैं जो अपने यूनीक आइडिया के कारण सक्सेसफुल रहे, ऐसा ही एक नया स्टार्टअप आज कल चर्चा में है।
*कल्पना कीजिए –* किसी प्रदर्शनी हॉल में एक चमकदार स्टाल लगा है। भीड़ लगी हुई है और बैनर पर बड़े-बड़े सुनहरे अक्षरों में लिखा है :
SUKHANT FUNERAL MANAGEMENT PVT. LTD.
“आपकी अंतिम यात्रा, हमारी ज़िम्मेदारी।”
स्टाल के ठीक बीचों-बीच एक शानदार सजी हुई अर्थी रखी है। सफेद रेशमी कपड़ा, ताज़े गुलाब की पंखुड़ियाँ, चंदन की सुगंध, और हल्का-हल्का शोक-संगीत बज रहा है। लोग सेल्फी ले रहे हैं, बच्चों को गोद में उठाकर दिखा रहे हैं – "बेटा, देखो, ये वाली अर्थी 4.8 स्टार रेटिंग वाली है।"
सेल्स एग्जीक्यूटिव मुस्कुराते हुए ब्रोशर थमा रहा है : "सर/मैडम, सिर्फ 37,500 रुपये में प्लैटिनम पैकेज, लाइफटाइम मेंबरशिप।" तथा मौत होते ही हमारा ऐप नोटिफिकेशन भेजेगा – ‘हम 45 मिनट में पहुँच गए।’
मौत के बाद कुछ नहीं सोचना पड़ेगा, सारी सुविधाएं हम देंगे –
- अर्थी
- पंडित जी
- नाई
- चार कंधे देने वाले प्रोफेशनल
- राम नाम सत्य है बोलने वाली पूरी टीम
- अंत में, "अस्थि विसर्जन ड्रोन से (हरिद्वार, गया या गंगा सागर – आपकी पसंद)
यानी अब अंतिम संस्कार भी 'प्लग एंड प्ले' पैकेज बन गया है। कंपनी गर्व से बताती है कि पिछले तीन वर्षों में हमारी कंपनी ने अब तक 12,000+ से अधिक अंतिम संस्कार सफलतापूर्वक पूरे किए गए। और अगले पाँच वर्षों में 5000 करोड़ का टारगेट, यूनिकॉर्न बनने की राह पर।
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हमने मरने वालों के लिए कपड़े, फूल, अगरबत्ती, कलश तो देखे थे। मगर पहली बार किसी प्रदर्शनी में "मौत का स्टाल" (स्केलेबल बिज़नेस मॉडल) देखकर रोंगटे खड़े हो गए।
और सबसे डरावनी बात कि हम ताली बजा रहे हैं। "वाह! कितना कन्वीनियंट है यार!" यह सिर्फ एक स्टार्टअप नहीं बल्कि यह उस समाज का आईना है जहाँ :
- बेटा विदेश में है, वीजा रिन्यूअल की टेंशन में…
- बेटी ससुराल में है, "मायके में कोई मर जाए तो छुट्टी नहीं मिलती"
- भाई-बहन व्हाट्सएप पर "ओम शांति" लिखकर डबल टिक करा लेते हैं।
- पड़ोसी को मैसेज जाता है, "आज शाम श्मशान, आ रहे हो न…? जवाब आता है, "सॉरी भाई, बच्चों का PTM है।"
- और रिश्ते सिर्फ व्हाट्सएप फॉरवर्ड तक सिमट गए हैं।
अब दाह-संस्कार के चार कंधे भी किराए के हैं। "राम नाम सत्य है" भी कोई अनजाना लड़का चिल्लाता है, जिसे आपकी माँ का नाम तक नहीं पता।
अब दुःख की इस आखिरी घड़ी में भी इंसान अकेला रह जाता है, तो उसकी जगह "प्रोफेशनल मॉर्नर्स" और "पेड शोल्डर कैरियर्स" ले लेते हैं।
संदेश बहुत साफ है – हम तेज़ी से पैसे कमा रहे हैं, परन्तु रिश्तों का दिवाला निकाल चुके हैं। जिस समाज में मरने के बाद भी अपने नहीं मिलते उस समाज को जीते जी बहुत कुछ मर चुका है। हमने रिश्तों को आउटसोर्स कर दिया। प्यार को, दुःख को, रोने को, कंधा देने को। अब तो बस एक चीज बाकी है कि मरने के बाद भी कोई हमारी जगह रो ले। पर वो भी जल्द ही कोई स्टार्टअप लॉन्च कर देगा। "गारंटी है, आपके मरने पर 50 लोग ज़ोर-ज़ोर से रोएँगे।"
वक़्त रहते रुक जाइए। पैसा कमाइए, नाम कमाइए, ऊँचा उठिए। परन्तु उन दो-चार रिश्तों को ज़िंदा रखिए जो आपके जीते जी आपके साथ हँस सकें, और मरने के बाद आपके साथ रो सकें।
वक्त है सोचने का! वरना कहीं ऐसा न हो कि अंत में आपका जनाज़ा भी कोई किराए का आदमी उठाए और आप ऊपर से देखते रह जाएँ बिल्कुल अकेले। राम नाम सत्य है, परंतु वो सत्य अब किराए का हो गया। मेरे परिवार के किसी शख्स ने एक बार कहा था कि भविष्य में भाड़े के लोग अंतिम यात्रा में आएंगे और उनकी बातें आज सच होती दिख रही हैं, यह बहुत ही आश्चर्यजनक एवं चिंताजनक बात है।
क्या हमारा समाज भी किराए का हो गया…? सोचिए, अभी भी वक्त है।
🔏 लेखक : पंकज सनातनी

