वामपंथी, राजनेता, बुद्धिजीवी, खिलाड़ी, एक्टर आदि का दोगलापन तो समझ आता है लेकिन जब किसी राज्य की पुलिस ऐसी हरकत करे तो उसे क्या समझा जाय? क्या पुलिस भी अब एजेंडा के अनुरूप कार्य करेगी? और क्या ऐसे काम करने वाली पुलिस संविधान का सम्मान कर पाएगी?... पूछता है भारत
एक तरफ ईद पर गरमा गरम "warm" मुबारक बाद दी जा रही है वहीं दूसरी तरफ हिंदू त्योहारों पर हिंदुओं को ज्ञान दिया जाता है ताकि वह अपने त्योहारों को मनाना छोड़ दे, जैसे दीपावली पर पशु पक्षियों की फोटो लगाकर यह बताया जा रहा है कि दीपावली ध्यान से मनाएं क्योंकि "हमारी भी दीपावली है". अब यह चीज इन्हें ईद के मौके पर याद नहीं आती जब अनगिनत बकरे काटे जाते हैं। आखिर तब यही पुलिस क्यों बकरों की फोटो लगाकर नहीं बोलती की ईद ध्यान से मनाएं क्योंकि हमारी भी ईद है। इतना ही नहीं पटाखे बेचने वालों पर इस प्रकार कार्यवाही की जा रही है मानो वह आतंकवादी हो जबकि बलात्कारियों को ठाठ से रखा जाता👇🏻 ऐसी व्यवस्था देख कर कैसे आम आदमी न्यायतंत्र, पुलिसतंत्र पर भरोसा करें?