मैंने 1997 के उपरांत सीधे (संभवतः) 2020-21 में पटाखे फोड़े थे। मैं उन लोगों में से था जिन्हें पटाखे फोड़ना उचित नहीं लगता था। प्रदूषण, धन की बर्बादी, हाथ जलने का संकट आदि इसके पीछे के तर्क थे। जब मैंने वामपंथी बकचोदों की हिन्दू-घृणा देखी, कोर्ट को कूदते देखा तो हर वर्ष न केवल पटाखे फोड़े बल्कि लोगों से भी कहा कि और फोड़ो।
हमें मत बताओ कि हम त्योहार कैसे मनाएँ, उसका इतिहास क्या है, तब पटाखे होते थे या नहीं। उनका कोई मतलब ही नहीं। दीपावली भगवान राम के आगमन का रीक्रिएशन नहीं है कि तब जो-जो था, वही आज भी हो। दीपावली भगवान के आगमन का उत्सव है। उत्सव हर काल में अपने हिसाब से मनाई जाएगी। जब पटाखे हैं तो फोड़े जाएँगे। दीपक है तो जलाएँगे, एलईडी आएगी तो वह भी जलाएँगे। हमारा जो मन होगा, हम वो करेंगे। तुम्हारे डरपोक कुत्तों के लिए या प्रदूषण के लिए हम तुम्हारा ज्ञान नहीं सुनेंगे क्योंकि तुम्हारी एसी, कार, फ्रिज हर दिन तापमान बढ़ाती है।
शुभ दीपावली!
साभार : अजीत भारती जी के ट्विटर अकाउंट से