ॐ भूर भुवः स्वः..
यह वाक्यांश गायत्री मंत्र की प्रस्तावना है, जिसे "महाव्याहृति" भी कहा जाता है। यह तीनों लोकों और सम्पूर्ण ब्रह्मांड की ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है। इस पवित्र वाक्य को विस्तार से और गहराई से समझने के लिए नीचे 1000 शब्दों में उसका भावार्थ, तात्त्विक महत्व, व्याख्या और आध्यात्मिक दृष्टिकोण दिया गया है।
🔱 परिचय: "ॐ भूर भुवः स्वः"
यह मंत्र वैदिक काल से ही सनातन धर्म में परम श्रद्धा के साथ उच्चारित होता आया है। यह "गायत्री मंत्र" का आरंभिक भाग है और इसे महामंत्र की प्रस्तावना माना जाता है।
"ॐ भूर भुवः स्वः" को "महाव्याहृति" कहते हैं, जिसका अर्थ है — ऐसे शब्द जो महान लोकों की व्याख्या करते हैं। ये शब्द ब्रह्मांड की तीन अवस्थाओं और तीन स्तरों (लोकों) को दर्शाते हैं:
भूर (Bhūr): पृथ्वी लोक (स्थूल शरीर और भौतिक जगत)
भुवः (Bhuvaḥ): अंतरिक्ष लोक (प्राण, मानसिक शक्ति)
स्वः (Svaḥ): स्वर्ग लोक (बुद्धि, आत्मा, दिव्यता)
🔱 "ॐ" का आध्यात्मिक अर्थ
"ॐ" (ओंकार) को प्रणव कहा जाता है। यह ब्रह्मांड की मूल ध्वनि मानी जाती है। यह तीन अक्षरों से मिलकर बना है — अ, उ, और म — जो त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) और त्रिकाल (भूत, वर्तमान, भविष्य) का प्रतिनिधित्व करते हैं।
"ॐ" के उच्चारण से सम्पूर्ण चेतना, आत्मा और ब्रह्मांड एकरस हो जाते हैं। यह ध्वनि ब्रह्मा की सृजन शक्ति, विष्णु की पालन शक्ति और शिव की संहार शक्ति का समन्वय है।
🔱 शब्दों की व्याख्या
1. भूर (Bhūr)
अर्थ: पृथ्वी, जीवन शक्ति, अस्तित्व का आधार।
यह स्थूल जगत का प्रतीक है — जहाँ हम जन्म लेते हैं, कार्य करते हैं और अनुभव करते हैं।
यह अन्नमय कोष (शरीर) और जीवन की मूल आवश्यकताओं का प्रतिनिधित्व करता है।
आध्यात्मिक रूप से यह चेतना की प्रारंभिक अवस्था है।
2. भुवः (Bhuvaḥ)
अर्थ: प्राणलोक, ऊर्जा का क्षेत्र।
यह सूक्ष्म शरीर, प्राणमय कोष और मानसिक तरंगों को दर्शाता है।
यह हमारे विचार, भावनाएं और इच्छाओं का क्षेत्र है।
यहाँ कर्मों का क्षेत्र है — जहाँ हमारी प्रवृत्तियाँ, संस्कार और चेतना की चाल सक्रिय होती है।
3. स्वः (Svaḥ)
अर्थ: स्वर्ग लोक, दिव्यता का स्तर।
यह कारण शरीर या आत्मिक क्षेत्र को दर्शाता है।
स्वः वह क्षेत्र है जहाँ आत्मा ब्रह्म के समीप होती है — आनंदमय कोष का अनुभव होता है।
यह बोध, समाधि और मोक्ष के निकट का क्षेत्र है।
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🔱 त्रिलोक की अवधारणा
"भूर भुवः स्वः" तीनों लोकों की अवधारणा को प्रकट करता है, जो केवल भौतिक स्तर पर नहीं बल्कि आध्यात्मिक यात्रा के तीन पड़ावों के रूप में भी देखे जाते हैं:
लोक शरीर/स्थिति तत्व उद्देश्य
भूर स्थूल शरीर पृथ्वी, जल कर्म
भुवः सूक्ष्म शरीर अग्नि, वायु प्राण और मन का संतुलन
स्वः कारण शरीर आकाश बोध और आत्म-साक्षात्कार
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🔱 योगिक दृष्टिकोण
योग में "भूर-भुवः-स्वः" का संबंध तीन प्रमुख नाड़ियों (इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना) और चक्रों से भी जोड़ा जाता है:
भूर = मूलाधार (स्थायित्व)
भुवः = अनाहत चक्र (प्राण ऊर्जा)
स्वः = सहस्रार (दिव्य चेतना)
इस तरह से यह वाक्यांश व्यक्ति को अपनी चेतना की तीन अवस्थाओं — शरीर, मन और आत्मा — से जोड़ता है।
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🔱 वेदों में महत्व
ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद — तीनों में "ॐ भूर भुवः स्वः" का विशेष महत्व है। ये न केवल वेदमंत्रों की शुरुआत करते हैं, बल्कि उन्हें पढ़ने से पूर्व आत्मा को शुद्ध और तैयार करते हैं।
तैत्तिरीय आरण्यक में कहा गया है कि महाव्याहृति का जप करने से साधक तीनों लोकों से ऊपर उठकर ब्रह्मलोक तक पहुंच सकता है।
🔱 गायत्री मंत्र के साथ संबंध
"ॐ भूर भुवः स्वः" को बोलकर जब हम गायत्री मंत्र (तत्सवितुर्वरेण्यं…) का जाप करते हैं, तब हम इन तीन लोकों से ऊर्जा लेकर उस परम तेज को ध्यान में रखते हैं जो सब कुछ संचालित करता है।
इसका पूर्ण उच्चारण इस प्रकार है:
> ॐ भूर भुवः स्वः
तत्सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्।
🔱 ध्यान और साधना में उपयोग
महाव्याहृति का उच्चारण ध्यान के समय व्यक्ति को:
शांति और एकाग्रता देता है
मन को स्थिर करता है
चेतना को ऊर्ध्वगामी करता है
नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा करता है
शरीर के अंदर कंपन (vibration) पैदा करता है जो ऊर्जावान अनुभव देता है.
🔱 वैज्ञानिक दृष्टिकोण
आधुनिक ध्वनि विज्ञान और न्यूरोसाइंस के अनुसार "ॐ" और महाव्याहृतियाँ ब्रेनवेव्स (brain waves) को शांत करके Alpha और Theta स्तर पर ले जाती हैं, जो:
रचनात्मकता बढ़ाती हैं
चिंता कम करती हैं
एकाग्रता मजबूत करती हैं
शरीर की हीलिंग प्रक्रिया को सक्रिय करती हैं
🔱 निष्कर्ष
"ॐ भूर भुवः स्वः" कोई साधारण वाक्यांश नहीं है, यह एक ऊर्जा तंत्र है। यह केवल तीन शब्द नहीं, बल्कि सृष्टि के तीन मूल आयाम हैं — शरीर, मन और आत्मा।
इन शब्दों का सही उच्चारण और भाव से चिंतन करने से:
जीवन में स्थिरता आती है (भूर)
मानसिक शक्ति और चेतना में जागृति आती है (भुवः)
दिव्य आनंद और शुद्धता का अनुभव होता है (स्वः)
गायत्री मंत्र की यह भूमिका ब्रह्मांडीय चेतना की ओर पहला कदम है — एक ऐसा कदम जो आत्मा को परमात्मा की ओर ले जाता है।