पति,पत्नी का मोबाइल पासवर्ड और बैंक पासवर्ड नहीं देख सकता।19 वर्ष का लड़का लिव इन में रह सकता है और भी कई ऐसे दुर्भाग्यपूर्ण निर्णय विभिन्न कोर्ट द्वारा दिया जाना सिद्ध करता है कि न्यायलय, न्याय के लिए नहीं .....भारत की मूल अस्मिता को छिन्न भिन्न करने के लिए ही बैठी हैं।
आखिर कबतक ये समाज ऐसे भयंकर दुष्परिणाम वाले निर्णयों के माध्यम से समाज की अस्मिता को बर्बाद होता देखता रहेगा? आखिर क्यों न्यायपालिका के अनुचित लगने वाले निर्णयों के विरुद्ध आवाज नही उठाई जा सकती? क्या समाज के मूल संस्कारों का ध्यान नहीं रखा जाना चाहिए न्यायपालिका को निर्णय सुनाते समय? क्या इस प्रकार के निर्णय समाज को न्याय दे रहे है या नए अपराधों को जन्म... विचार करना होगा..