बलरामपुर (यूपी) में एक दलित महिला ने महबूब की दुकान से कपड़ा खरीदा। कपड़ा खराब पाकर वह उसे बदलने गई, लेकिन कर्मचारियों ने उसे महबूब के घर भेज दिया। उसने महबूब के पिता, जमालुद्दीन उर्फ़ छांगुर 'पीर' बाबा, जो पास में ही एक बड़ी दरगाह चलाते हैं, से शिकायत की। उन्होंने अपने समुदाय के एक आदमी से उसकी शादी करवाकर और पैसे देकर, इस मामले को "ठीक" करने की पेशकश की।
छांगुर बाबा ने उससे कहा कि वह इतना शक्तिशाली है कि उसे छुआ नहीं जा सकता और उसके पास उसकी बात मानने के अलावा कोई चारा नहीं है। उसने मना कर दिया और एक पुलिस स्टेशन से दूसरे पुलिस स्टेशन गई, लेकिन उसे कोई मदद नहीं मिली।आखिरकार उसकी शिकायत दूसरे शहर लखनऊ में सुनी गई, जिससे अवैध धर्मांतरण रैकेट का पर्दाफाश हुआ। यूपी एटीएस का दावा है कि छांगुर बाबा खाड़ी देशों से वित्त पोषित ₹100 करोड़ से ज़्यादा के जबरन धर्मांतरण रैकेट का मास्टरमाइंड था।
इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि मुख्यधारा का एक भी दलित नेता उनसे या छांगुर बाबा द्वारा निशाना बनाए गए उनके समुदाय के अन्य पीड़ितों से मिलने नहीं गया। वह गरीब और असहाय थीं और दलित या हिंदू नहीं थीं???