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समाज के चारों ओर अंधकार ही अंधकार दिखाई दे रहा है।
कारण— बेटियाँ 30–35 की उम्र तक कुंवारी, बेटे भी 35 पार कर चुके, लेकिन विवाह नहीं। विवाह होता भी है तो देरी से। बच्चे होते हैं तो 1 ही, और फिर तलाक, टूटे हुए परिवार, वृद्ध माता-पिता अकेले और पूरी पीढ़ी खोखली। क्या हम इसे 'शिक्षित समाज' कहें या आत्मघाती समाज…?
⚠️ जनसंख्या घटने की चुपचाप चलती साजिश —
इसे आप एक उदाहरण से समझिए। 👇🏻
आज समाज में 100 लोग हैं = 50 जोड़े। यदि हर जोड़ा सिर्फ एक ही संतान पैदा करता है, तो अगली पीढ़ी में अधिकतम 45-46 संतानें (कुछ निःसंतान जोड़े मान लें।) फिर वे भी 1-1 संतान करें तो अगली पीढ़ी में 20–22। और फिर तीसरी पीढ़ी में समाज 0 (शून्य) के करीब।
यह कोई अनुमान नहीं बल्कि यह गणित है, और यह हो चुका है। आज समाज के गांव उजड़ चुके हैं, शहरों में बड़ी इमारतें हैं, परन्तु परिवार नही।
क्यों नई बहुएं एक ही संतान चाहती हैं…? ताकि ज़िंदगी का आनंद ले सकें, ताकि कैरियर न रुके, ताकि डिलीवरी में शरीर न बिगड़े। और कहीं कोई वांझोटी न कहे, इसलिए बस एक बच्चा वो भी देर से।
> 👉 क्या यही धर्म है…?
> 👉 क्या यही समाज का भविष्य है…?
सच यह है कि संतान अब 'सोशल प्रूफ' बन चुकी है कि मैं नपुंसक नही हूँ— स्नेह नहीं। बच्चे अब प्रेम का परिणाम नहीं, समाज को दिखाने की वस्तु बन चुके हैं। और यह सोच मूल्यहीन है, धर्महीन है तथा भविष्यविहीन है।
सबसे बड़ा दोष लड़की के पिता का है! वही पिता, जिसने खुद 22–25 की उम्र में विवाह कर लिया था। पत्नी के साथ समय बिताया, परिवार बसाया, संतान पाई। और आज वही पिता अपनी बेटी को 30 तक कुंवारी रखता है। कभी कैरियर के नाम पर, कभी बढ़िया लड़का नहीं मिल रहा कहकर, तो कभी दहेज व प्रतिष्ठा का हवाला देकर। बेटी को सिर पर बैठाकर, आप ने उसे रिश्तों से दूर कर दिया। और अब वही बेटी अवसाद में, IVF में, या तलाक में जा रही है।
📉 आज समाज में क्या चल रहा है…?
- विवाह की औसत आयु : लड़के 32 वर्ष तथा लड़की 29 वर्ष।
- औसतन संतान : 1 या 0.5 प्रति दंपत्ति।
- डिवोर्स रेट : भारत में सबसे तेज़ वृद्धि दर कर रहा है पारीक समाज में।
- प्रजनन क्षमता की समस्या : हर 4 में 1 दंपत्ति को संतान होने में समस्या।
- विवाह योग्य युवक/युवतियां कुंवारे— हज़ारों की संख्या में।
🧘♂️ और समाज के अध्यक्ष क्या कर रहे हैं…?
• मौन।
• समाज के मूलभूत संकट पर कोई चर्चा नहीं।
• विवाह, परिवार और संतान को त्याज्य मान लिया गया है।
• लेकिन यह धर्म नहीं बल्कि पलायन है!
विवाह भी एक धार्मिक कर्तव्य है, यह कोई सांसारिक बंधन नहीं बल्कि वंश और धर्म की निरंतरता का माध्यम है।
हमने क्या किया…? — एक आत्म-स्वीकृति!
• विवाह को टालते रहे, और जब किया तो देरी से— जब शरीर साथ नहीं देता।
• जब बच्चे हुए — तो सिर्फ एक।
• और जब रिश्ता बिगड़ा — तो बेटी अकेली, बेटा टूट गया, और घर बिखर गया।
👨👩👧👦 अब क्या करना होगा…?
1. समय पर विवाह को अनिवार्य बनाएँ। 22 वर्ष के बाद पुत्र और 20 वर्ष के बाद पुत्री का विवाह हो जाना चाहिए।
2. एक नहीं, कम से कम तीन संतानें अवश्य पैदा करें क्योंकि यह आवश्यक है। 'बस एक बच्चा' यह मानसिकता समाज को शून्य पर ला रही है।
3. अध्यक्षों और प्रबुद्धजन को सामाजिक विषयों पर बोलना ही होगा। क्योंकि समाज का विनाश धर्म से भी बड़ा प्रश्न है।
4. लड़की के पिता को अब सजग होना होगा। अपेक्षाएँ नहीं, समझदारी लानी होगी। बेटी की ज़िंदगी बचानी है तो समय पर विवाह कराओ।
⚧️ अंतिम चेतावनी :
अब नहीं चेते तो इतिहास में ही रह जाएगा हिन्दू समाज। ना युवक होंगे, ना युवतियाँ… ना संतानें होंगी, ना संस्कार… ना समाज होगा और ना मंदिर।
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✍️ साभार
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