खरगोन, MP के महान संत सियाराम बाबा ने मोक्षदा एकादशी "गीता जयंती" के दिन सुबह 6 बजे शरीर त्याग दिया। बाबा ने भट्टयान बुजुर्ग आश्रम में अंतिम सांस ली, बाबा के अंतिम दर्शनों के लिए भक्त उनके आश्रम पहुंच रहे हैं। संध्या 4 बजे नर्मदा के तट पर हनुमान जी के भक्त सियाराम बाबा का अंतिम संस्कार होगा। बाबा को उम्र को वैसे तो कोई नहीं जानता लेकिन लोग 110 से 130 साल की उम्र उनकी बताते हैं ।
बाबा हनुमान जी के बड़े भक्त थे, और दिन में कई घंटे वो रामायण का निरंतर पाठ करते थे, 100+ की उम्र में भी वो अपने काम स्वयं करते थे और 1 भक्त से ₹10 से अधिक दान नहीं स्वीकार करते, दान में आए पैसे भी वो धर्म कार्य हेतु दान कर देते। नर्मदा के घाट की मरम्मत के लिए उन्होंने 2 करोड़ 57 लाख रूपये दान किए थे
बाबा को निमोनिया हो गया था, लेकिन उन्होंने अस्पताल में रहने के बजाए आश्रम में रहकर अपने भक्तों से मिलना चाहते थे। जिस कारण से डॉक्टर्स ने उन्हें अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया था। सीएम मोहन यादव के निर्देश के बाद डॉक्टर्स की टीम उनके स्वास्थ्य पर लगातार निगरानी रखे हुए थी। रात को उनकी तबीयत काफी खराब हो रही थी और उन्होंने कुछ खाया भी नहीं।
बताया जा रहा है कि संत सियाराम बाबा की अंत्येष्टी बुधवार शाम को आश्रम के पास नर्मदा के किनारे की जाएगी। अंत्येष्टी के लिए सेवादारों ने चंदन की लकड़ी की व्यवस्था की है। बाबा के देह त्यागने की खबर मिलने के बाद बड़ी संख्या में भक्त उनके अंतिम दर्शन के लिए आश्रम पहुंच रहे हैं। सीएम मोहन यादव भी बाबा के अंतिम दर्शन के लिए पहुंचेंगे।
कौन थे संत सियाराम बाबा
संत सियाराम बाबा मध्य प्रदेश के खरगोन में नर्मदा नदी के किनारे स्थित भट्टयान आश्रम के संत थे और यहीं रहते थे. बाबा की वास्तविक उम्र कोई नहीं जानता. कुछ लोग कहते हैं कि बाबा 130 साल के थे, जबकि कुछ कहते हैं कि वे 110 साल के थे. चमत्कार यह है कि इस उम्र में भी संत सियाराम बाबा बिना चश्मे के रोजाना 17 से 18 घंटे रामायण का पाठ करते थे. कहा जाता है कि इतनी उम्र होने के बावजूद वे अपना सारा काम खुद ही करते थे और अपना खाना भी खुद ही बनाते थे.
हनुमान जी के उपासक थे बाबा
संत सियाराम बाबा हनुमान जी के बहुत बड़े भक्त थे. वे हमेशा रामचरित मानस का पाठ करते रहते थे. चाहे भीषण गर्मी हो, भीषण सर्दी हो या भारी बारिश, बाबा सिर्फ लंगोटी में ही रहते थे. कहा जाता है कि उन्होंने साधना के माध्यम से अपने शरीर को मौसम के अनुकूल बना लिया था. बाबा के शरीर की बनावट को देखकर ही अंदाजा लगाया जा सकता था कि वे दिव्य पुरुष थे.
दान में सिर्फ 10 रुपये
देश-विदेश से भक्त बाबा के दर्शन के लिए आते थे. सबसे खास बात यह है कि यह बाबा अपने भक्तों से दान के रूप में सिर्फ 10 रुपये लेते थे. अगर कोई भक्त 10 रुपये से ज्यादा दान करता तो वे उससे 10 रुपये लेकर बाकी पैसे लौटा देते थे. सबसे खास बात यह है कि वे इन 10 रुपयों को भी समाज कल्याण के लिए खर्च कर देते थे. कहा जाता है कि संत सियाराम बाबा ने नर्मदा नदी के घाट की मरम्मत के लिए करीब 2 करोड़ 57 लाख रुपये दान किए थे.
केवल लंगोट पहना करते थे
कड़ाके की सर्दी हो या बारिश सियाराम बाबा के बारे में कहा जाता है कि वह एक लंगोट में रहते थे। ध्यान के दम पर उन्होंने अपने शरीर को मौसम के अनुकूल बना लिया था। वह अपना सारा काम खुद करते थे। संत सियाराम करीब 12 साल तक मौन व्रत में रहे।