अगला लक्ष्य उनका प्राइवेट जेट खरीदना होना चाहिए था। किसी की कुल संपत्ति अगर 18 हजार करोड़ रुपए हो, तो 300 करोड़ के प्राइवेट जेट पर ऑडिटर भी एतराज नहीं करेगा। जब पैसा अनंत हो, तो फिर क्या मुश्किल?
लक्ष्मी जब छप्पर फाड़कर धन बरसाती हैं, तो ऐसे खर्चीले फैसले किसी को भी अजीब नहीं लगते। शायद इसलिए, एक खरबपति के लिए जेट विमान खरीदना वैसा ही है जैसे किसी मैनेजर के लिए मारुति कार।
लेकिन #जोहो_कॉर्पोरेशन के चेयरमैन श्रीधर वेंबू के इरादे अलग थे। उन्होंने प्राइवेट जेट खरीदने का विचार छोड़कर अपनी कंपनी का मुख्यालय कैलिफोर्निया से भारत में चेन्नई लाने का फैसला किया।
श्रीधर ने बोर्ड मीटिंग में कहा, "अगर डेल, सिस्को, एप्पल या माइक्रोसॉफ्ट अपने दफ्तर भारत में स्थापित कर सकते हैं, तो जोहो को स्वदेश लौटने में परहेज क्यों होना चाहिए?"
उनके तर्क सुनकर बोर्ड में सन्नाटा छा गया।
श्रीधर ने आईआईटी मद्रास से इंजीनियरिंग की थी। अपने नए मुख्यालय के लिए तमिलनाडु के एक गांव (जिला टेंकसी) में चार एकड़ जमीन पहले ही खरीद ली थी। अक्टूबर 2019 में उन्होंने #मथलामपराई_गांव_में_जोहो_का_ग्लोबल_हेडक्वार्टर खोला। पिछले वर्ष, कंपनी ने सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट में 3,410 करोड़ का रिकॉर्ड राजस्व भी हासिल किया।
श्रीधर ने स्वदेश लौटने का निर्णय किसी दबाव के तहत नहीं लिया। उनका मकसद सकारात्मक था। उन्होंने पहले से ही तय किया था कि अगर जोहो सफल होती है, तो वे मुनाफे का बड़ा हिस्सा भारत में निवेश करेंगे, खासकर बच्चों की आधुनिक शिक्षा पर।
उन्होंने गांव में बच्चों के लिए निःशुल्क स्कूल खोले और जोहो विश्वविद्यालय की स्थापना कर रहे हैं, जहां भविष्य के सॉफ्टवेयर इंजीनियर तैयार होंगे। श्रीधर का मानना है कि तकनीक को ग्रामीण इलाकों से जोड़ने से पलायन रोका जा सकता है।
श्रीधर सादगी पसंद हैं, अक्सर लुंगी और बुशर्ट में दिखाई देते हैं। वे साइकिल पर गांवों में जाते हैं, और उनकी बातचीत से यह महसूस नहीं होता कि वे एक खरबपति हैं।
अब एक महत्वपूर्ण सवाल यह है कि : क्यों जनता श्रीधर जैसे #असली_नायकों_को नहीं पहचानती?
क्यों हम छद्म नायकों को पूजते हैं?
श्रीधर जैसे लोग अपने देश लौटने का साहस दिखाते हैं, फिर भी उनका त्याग अदृश्य रहता है।
क्या हम ऐसे समय में जी रहे हैं जहां #सच्चे_नायक_अप्रासंगिक हो गए हैं? या फिर हम असली प्रतिभाओं की जगह नालायक ढूंढने लगे हैं?
श्रीधर जैसे लोग देश को आलोकित कर रहे हैं, लेकिन उनके काम की चमक समाज को नहीं दिखती। जो लोग सुर्खियों में हैं, वे केवल अंधकार में ही योगदान दे सकते हैं।
मेरा आग्रह है : अगर बच्चों का भविष्य बदलना है, तो कुछ समय के लिए न्यूज़ चैनल बंद करें और अपने आस-पास श्रीधर जैसे लोगों को खोजें।
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