घर पे 38 साल की लड़की कंवारी बैठी है और बाप 77 की उमर मे घर दर छोड़कर सांसदी के लिए बंगाल में जाकर बैठ जाता है! कसूर किसका? औलाद लव जिहाद की शिकार नही हुई है बल्कि माँ बाप उदासीनता के शिकार हुए हैं! यादि लड़की को आप 38 साल की उम्र तक भटकने के लिए छोड़ देते है तो कसूर लड़की का नही माँ बाप का है!
शत्रुघ्न सिन्हा को जो सजा मिली है वह हर हिंदू माता पिता को याद रखनी चाहिए! जीवन में सबकुछ प्राप्त करने के बाद भी अपनी असीमित और अनैतिक राजनैतिक अतिमहत्वकांशाओ की कीमत पर अपने बच्चो की बलि देना फायदे का सौदा नही है! कुल का मान सम्मान गंवाकर एक राजनैतिक महत्वकांशा पूरी कर भी ली तो क्या पाया?
जिस पार्टी मे आपने पूरा जीवन बिताया उसे आपने केवल इसलिए छोड़ दिया क्योंकि आप मार्गदर्शक मंडल में नही जाना चाहते थे, समय ने ये साबित कर दिया है कि मार्गदर्शन करना ही आपका परम कर्तव्य होना चाहिए था! केवल अपनी संतान का ही मार्गदर्शन कर लिया होता तो आपका मान सम्मान यवनो के बिस्तर पर यूँ नही रौंदा जाता!
सबक याद रहे!