श्री कृष्ण “चीर-हरण लीला” को कामुकता की द्रष्टि से देखनेवाले विधर्मी तथा वामपंथी समझ ले “आधा ज्ञान सदैव हानि देने वाला है” !
चीर हरण के प्रसंग को लेकर कई प्रकार की शंकाएं की जाती है, जिस पर विचार करना आवश्यक है।
वास्तव में सच्चिदानंद भगवान की दिव्य मधुर लीलाओं का रहस्य जानने का सौभाग्य बहुत थोड़े लोगो को प्राप्त होता है, “हमारी बुद्धि हमारी देह तक सीमित है संसार देह से विदेह तक गमन करता है”। !
*1 . व्रज की गोपियों की अवतार की वास्तविकता जानिए-*
व्रज की गोपियाँ वेदों की श्रुतियाँ, मिथिला, अयोध्या, फ़ालिन्द की गोपिया, वैकुण्ठ की पुण्य आत्माए जिन्होंने अपने तप के बल पर व्रज में जन्म लिया वह सभी तपस्वी ऋषिगण थे।
*2. चीर हरण लीला के समय श्री कृष्ण की आयु -*
श्रीमद्भागवत के दशम स्कंध के सार में बताया गया है व्रज में श्री कृष्ण केवल ११ वर्ष की अवस्था तक ही निवास किया , रासलीला समय वह दस वर्ष के थे यदि तो चीरहरण लीला के समय उनकी आयु आठ या नौ वर्ष की ही रही होगी। भगवान की लीलाओं को मानवीय चरित्र के समकक्ष रखना शास्त्र दृष्टि से एक महान अपराध है, वह बुद्धि स्वयं ही अपना उपहास करती है जो स्मस्त बुद्धियो के प्रेरक तथा बुद्धि से अत्यंत परे रहनेवाले परमात्मा की दिव्य लीला को अपनी कसौटी पर कसती है ।
*3. चीर हरण लीला माहात्म्य-*
व्रज की वह सब गोपियों ने श्री कृष्ण की लीला में सम्मिलित होने वाले ऋषियों ने भगवान कृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने के लिए माँ कात्यायनी देवी का व्रत किया, जो नित्य सूर्य देव से पहले ही यमुना जी में स्नान को जाती हविष्यान्न (व्रत में खाने की पवित्र वस्तु) खाकर नित्य व्रत करती। वह नित्य चंदन धूप आदि से भद्रकाली की पूजा करती और उनसे प्रार्थना करती कि श्यामसुंदर उनके पति हो जो चैतन्य बुद्धि के आधार पर आत्मा से परमात्मा मिलन का सत्य सार है , भगवान कृष्ण की चीर हरण भी अन्य लीलाओं की भाँति उच्चतम् मर्यादा से परिपूर्ण है श्रीकृष्ण आठ-नौ वर्षके थे, उनमें कामोत्तेजना नहीं हो सकती और नग्नस्नानकी कुप्रथाको नष्ट करनेके लिये उन्होंने चीरहरण किया और शास्त्र में 'न नग्नः स्नायात्' जिसका अर्थात् यह है कि नग्नस्नान एक दोष है जो पशुतत्व को बढ़ाने वाला है, और श्री कृष्ण नही चाहते थे गोपिया जो ऋषिगण थे शास्त्र विरुद्ध आचरण करे यह उत्तर सम्भव होनेपर भी मूलमें आये हुए 'काम' और 'रमण' शब्दोंसे कई लोग भड़क उठते हैं। यह केवल शब्दकी पकड़ है, जिसपर महात्मालोग ध्यान नहीं देते। श्रुतियोंमें और गीतामें भी अनेकों बार 'काम' 'रमण' और 'रति' आदि शब्दोंका प्रयोग हुआ है परन्तु वहाँ उनका अश्लील अर्थ नहीं होता। महापुरुषका आत्मरमण, आत्ममिथुन और आत्मरति प्रसिद्ध ही है। ऐसी स्थितिमें केवल कुछ शब्दोंको देखकर भड़कना विचारशील पुरुषोंका काम नहीं है। जो श्रीकृष्णको केवल मनुष्य समझते हैं उन्हें रमण और रति शब्दका अर्थ केवल क्रीड़ा अथवा खिलवाड़ समझना।
*4. वस्त्र हरण लीला का प्रगाढ़ सत्य*
श्री कृष्ण लीला परूषोतम है वह जब भी लीला प्रकट करते तो मर्यादा का उल्लंघन नही करते श्री कृष्ण ऋषिगण गोपियो का सम्पूर्ण समर्पण चाहते थे जिसमें सब गोपियों को श्री कृष्ण के वास्तविक सरूप का ज्ञान था तभी उन्होंने “वेणुगीत,गोपीगीत,युगलगीत” को गाया जो बिना संत साधना के संभव नही और गोपियो की इस दिव्य लीला का जीवन उच्च साधको के लिये आदर्श जीवन है।
5. श्री कृष्ण गोपियों के वस्त्रों के रूप में उनके समस्त संस्कारों का आवरण अपने हाथों में लेकर कदंब के वृक्ष पर जा बैठे गोपिया जल में थी, वह जल में सर्वव्यापक सर्वदर्शी भगवान कृष्ण मानो जल में नही है इसलिए स्वयं को जल में गुप्त रख रही थी जब कि वह ये भी जानती थी कि कृष्ण जल भी है एवं जल स्वरूप भी है , ईश्वर केवल उन्हें अपने समीप बुला रहे थे जिसके संसार के संस्कार एवं माया का पर्दा हटा शून्य हो जाना भक्ति है, जिसने भगवत् प्रेम में उनकी वस्त्रों की सुधि जाती रही एवं लोगो का ध्यान एवं मोह भंग हुआ वह ना स्वयं को देख पाई ना जगत् को उन्हें केवल श्यामसुन्दर के दर्शन हो रहे थे वह जो आठ वर्ष के दिव्य देह धारी नारायण है वह जो उनको वर देते हुए कहते है तुम्हारी मनोकामना पूर्ण होंगी जिसमें कोई कामवासना का दूर दूर तक उल्लेख नही आया है इसके उपरांत गोपियों ने अपने वस्त्र धारण किए जो ईश्वर का प्रसाद स्वरूप हुए, जिसमें कोई अब माया का बंधन नही था वह ज्ञान दर्शन को प्राप्त हो चुकी थी उनका मुक्तिसरूप अब आनंद में बदल चुका था !!