🔹हस्त शास्त्र के अनुसार हथेली की मुख्य हस्त रेखाओं का महत्व
🪬सर्वप्रमुख हस्त रेखाएं🪬
हस्त रेखा विज्ञान के मुताबिक जीवन शक्ति का स्फूर्तमय वेग हथेली के माध्यम से ही सम्पन्न होता है। और यह वेग हथेली के माध्यम से रेखाओं और हस्त पर्वतों को एक ही सूत्र में ग्रंथित करता है। हाथ में पाई जाने वाली प्रत्येक रेखा का अपना महत्व होता है और वह रेखा किसी न किसी घटना को स्पष्ट करती ही है। हाथ का अध्ययन करने से पूर्व रेखाओं का सही सही परिचय ज्ञात कर लेता आवश्यक है, साथ ही रेखाओं का वास्तविक उद्गम स्थान भी ज्ञात करना अत्यंत महत्वपूर्ण है । हस्त शास्त्र के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति के हाथ में सात मुख्य रेखाएं होती हैं तथा बारह गौण रेखाएं या सहायक रेखाएं अथवा प्रवहित रेखाएं होती हैं। सात मुख्य रेखाएं निम्नांकित हैं -
मुख्य रेखाएं –
१. जीवन रेखा
२. मस्तिष्क रेक्षा
३. हृदय रेखा
४. सूर्य रेखा
५. भाग्य रेखा
६. स्वास्थ्य रेखा
७. विवाह रेखा
*१. जीवन रेखा :-* इसे अंग्रेजी में 'लाइफ लाइन' कहते हैं हिन्दी में कुछ विद्वान इसे पितृ रेखा या आयु रेखा के नाम से भी सम्बोधित करते हैं पूरी हथेली में इस रेखा का महत्त्व सबसे अधिक है, क्योंकि यदि जीवन है तो सब कुछ है जिस दिन जीवन ही समाप्त हो जायगा उस दिन बाकी रेखाओं का प्रभाव भी व्यर्थ हो जायगा। जीवन रेखा बृहस्पति पर्वत के नीचे हथेली की बगल से उठ कर तर्जनी और अंगूठे के बीच में से प्रारंभ होकर शुक्र पर्वत को घेरती हुई मणिबन्ध पर जाकर विश्राम करती है संसार में जितने भी प्राणी हैं उन सब के हाथों में यह रेखा यहीं पर दिखाई देती हैं इसी रेखा से व्यक्ति की आयु, स्वास्थ्य, बीमारी, स्वास्थ्य आदि की जानकारी प्राप्त होती है।
सभी व्यक्तियों के हाथों में यह रेखा एक-सी दिखाई नहीं देती कुछ लोगों के हाथों में यह रेखा गहरी और लम्बी होती है तो कुछ रेखाएं व्यक्ति के शुक्र पर्वत को बहुत संकीर्ण बना लेती है, किसी-किसी व्यक्ति के हाथ में यह रेखा शुक्र पर्वत के पास में जाकर टूट-सी जाती है ऐसे व्यक्ति निश्चय ही कम आयु के होते हैं तथा उनकी मृत्यु दुर्घटना से होती है।
*२. मस्तिष्क रेखा :-* अंग्रेजी में इस रेखा को 'हेड-लाइन' हिंदी में इसको बुद्धि रेखा शीश रेखा, प्रज्ञा रेखा, अथवा मातृ रेखा के नाम से पुकारते हैं। मस्तिष्क रेखा का प्रारंभ वृहस्पति पर्वत के पास से या वृहस्पति पर्वत के ऊपर से होता है। अधिकांश हाथों में जीवन रेखा और मस्तिष्क रेखा का उद्गम एक ही स्थान पर देखा है। परन्तु कई हाथों में यह उद्गम एक ही न होकर पास-पास होता देखा गया है। यह रेखा हथेली को दो भागों में बांटती हुई राहू और हर्षल क्षेत्रों को अलग-अलग करती हुई बुध क्षेत्र के नीचे तक चली जाती है, इस पूरी रेखा को मस्तिष्क रेखा कहते हैं।
इस रेखा की स्थिति अलग-अलग हाथों में अलग-अलग प्रकार से देखी जाती है। जिन व्यक्तियों का मस्तिष्क पैना, उर्वर, तथा क्रियाशील होता है या जो व्यक्ति मुख्यतः बुद्धिजीवी होते हैं उन व्यक्तियों के हाथों में यह रेखा लम्बी गहरी और स्पष्ट होती है। इसके विपरीत जो शारीरिक श्रम करने वाले होते हैं या जिनका मस्तिष्क कमजोर होता है अथवा जो श्रमजीवी होते हैं उनके हाथों में या तो यह रेखा धूमिल और अस्पष्ट-सी होती है अथवा यह रेखा बीच-बीच में कई स्थान पर टूटी हुई-सी दिखाई देती है। इस रेखा से मानव के मस्तिष्क का भलीभांति अध्ययन किया जा सकता है।
*३. हृदय रेखा :-* इस रेखा को अंग्रेजी में 'हार्ट लाइन' और भारत में इस रेखा को विचार रेखा कहते हैं। यह रेखा बुध पर्वत के नीचे से प्रारंभ होकर बुध तथा प्रजापति के क्षेत्रों को अलग-अलग करती हुई तर्जनी के नीचे या गुरु पर्वत के नीचे तक पहुंच जाती है। सामान्यतः यह रेखा सभी व्यक्तियों के हाथों में दिखाई देती है क्योंकि इस रेखा का सीधा सम्बन्ध हृदय से होता है, परन्तु कुछ डाकुओं एवं हृदयहीन दुष्ट प्रकृति के व्यक्तियों के हाथों में इस रेखा का सर्वथा अभाव ही देखा गया है। जिन व्यक्तियों के हाथों में यह रेखा कमजोर होती है वस्तुतः वे व्यक्ति अमानवीय एवं क्रूर होते हैं।
अलग-अलग हाथों में यह रेखा अलग अलग लंबाई लिए हुई होती है। किसी हाथ में यह रेखा तर्जनी तक किसी हाथ में मध्यमा तक तो किसी हाथ में अनामिका तक ही जाकर समाप्त हो जाती है परन्तु कुछ हाथों में यह रेखा गुरु क्षेत्र को पार कर हथेली के दूसरे छोर तक पहुंचती हुई भी देखी है, परन्तु ऐसी लम्बी रेखा बहुत कम लोगों के हाथों में ही होती है।
*४. सूर्य रेखा :-* अंग्रेजी में इसे 'अपोलो लाइन' या 'सन लाइन' अथवा 'लाइन ऑफ सक्सेस' भी कहते हैं। हिन्दी में इस रेखा को सूर्य रेखा, रवि रेखा अथवा प्रतिमा रेखा कहते हैं। इस रेखा का उद्गम विभिन्न व्यक्तियों के हाथों में विभिन्न स्थानों से देखा गया है, परन्तु एक बात सभी व्यक्तियों के हाथों में समान होती है वह यह कि इस रेखा की समाप्ति सूर्य पर्वत पर जाकर होती है। इस रेखा का प्रारम्भ लगभग तीस स्थानों से होता है। अतः रवि रेखा या सूर्य रेखा उसी रेखा को माननी चाहिए जिसकी समाप्ति सूर्य पर्वत पर होती हो ।
*५. भाग्य रेखा :-* इसे अंग्रेजी में 'फेट लाइन' कहते हैं। हिन्दी में इसे भाग्य रेखा ऊर्ध्व रेखा अथवा प्रारब्ध रेखा भी कहते हैं। यह रेखा सभी व्यक्तियों के हाथों में दिखाई नहीं देती। साथ ही इस रेखा के उद्गम भी कई होते हैं परन्तु एक बात भली प्रकार से समझ लेनी चाहिए कि जिस रेखा की समाप्ति शनि पर्वत पर होती है वही रेखा भाग्य रेखा कहला सकती है। जब तक यह शनि पर्वत पर नहीं पहुंच पाती है तब तक इस रेखा को भाग्य रेखा कहना उचित नहीं।
कई हाथों में यह रेखा बुध पर्वत पर भी पहुंच जाती है परन्तु वास्तव में यह रेखा भाग्य रेखा न होकर कोई अन्य रेखा ही होती है। इस रेखा का विकास हथेली में नीचे से ऊपर की ओर होता है। कुछ हाथों में यह रेखा शुक्र पर्वत से प्रारंभ होटी है तो कुछ हाथों में यह रेखा मणिबन्ध से प्रारंभ होकर ऊपर की ओर उठती हुई दिखलाई देती है। कुछ हाथों में यह रेखा सूर्य पर्वत के पास से भी निकल कर शनि पर्वत पर पहुंच जाती है। अतः पूर्वानुसार रेखा का उद्गम अलग-अलग होता है अतः इसकी समाप्ति के स्थान से इसके उद्गम का पता लगाना चाहिए ।
संसार में आधे से अधिक लोगों के हाथों में यह रेखा नहीं पाई जाती ।
*६. स्वास्थ्य रेखा :-* अंग्रेजी में इस रेखा को 'हेल्थ लाइन' कहते हैं। इस रेखा का सम्बन्ध स्वास्थ्य से होता है परन्तु इस रेखा के उद्गम का कोई निश्चित स्थान नहीं है। यह हथेली में मंगल पर्वत से, जीवन रेखा से, हथेली के बीच में से, या कहीं से भी प्रारम्भ हो सकती है, परन्तु यहां यह बात स्मरण रखनी चाहिए कि इस रेखा की समाप्ति बुध पर्वत पर ही होती है, और जो रेखा बुध पर्वत तक पहुंचती है वास्तव में वही रेखा स्वास्थ्य रेखा कहला सकती है। कुछ हाथों में यह रेखा बहुत मोटी होती है, तो कुछ हाथों में यह रेखा बाल से भी पतली देखी जा सकती है। इस रेखा का अध्ययन अत्यन्त सावधानी के साथ किया जाना चाहिए। इसके माध्यम से स्वास्थ्य, तन्दुरुस्ती, बीमारी आदि का अध्ययन होता है।
*७. विवाह रेखा :-* इसे अंग्रेजी में 'लव लाइन' या 'मैरिज लाइन' कहते हैं। यह बुध पर्वत पर होती है। हथेली के बाहरी भाग से बुध पर्वत की ओर अन्दर की तरफ आती हुई जो रेखा होती है यही विवाह रेखा कहलाती है। कुछ लोगों के हाथों में ऐसी तीन चार रेखाएं होती हैं, परन्तु इससे यह नहीं समझ लेना चाहिए कि इस व्यक्ति का विवाह तीन चार स्त्रियों से होगा, परन्तु इसका अर्थ यह होता है कि उसका सम्बन्ध तीन चार प्राणियों से अवश्य ही रहेगा। इन तीन चार रेखाओं में से जो रेखा गहरी और स्पष्ट होती है वास्तव में वही रेखा विवाह रेखा कहलाती है।
कई बार यह भी देखने में आया है कि व्यक्ति के हाथ में विवाह रेखा होते हुए भी वह आजीवन कुंआरा रहता है। इसका कारण यह है कि जब विवाह रेखा पर किसी प्रकार का कोई क्रॉस बना हुआ हो तो यह समझ लेना चाहिए कि इस व्यक्ति के सम्बन्ध बन कर समाप्त हो जायेंगे। जीवन में विवाह नहीं हो सकेगा। यदि विवाह रेखा के साथ में चलने वाली किसी रेखा पर छोटे-छोटे चिन्ह हों तो उस व्यक्ति के जीवन में अनैतिक सम्बन्ध बने रहते हैं।