मात्र एक Scene देखने से, जिसमें एक वेश्या किसी पुरुष के साथ थी, उसे देखकर एक परम विद्वान, वेद पाठी, नियमी, संयमी ब्राह्मण #अजामिल का ऐसा पतन होता है कि वह पापात्माओं के शीर्ष पर आ गया।
अजामिल जैसे पापात्मा की मिसाल दी जाती है।
सिर्फ देखने मात्र से दुर्गुण प्रवेश हुआ और धीरे धीरे वह उसमें संलिप्त होने लगा और सभी साधना नष्ट कर घोर पतित हो गया।
तो सोचिए !! आज यह सब scene बिल्कुल आम है।
तो हम लोगों के इन्द्रिय, मन, विचार और चित्त के तेज का कितना पतन हो चुका है।
आजकल के नवयुवक कितने तेजहीन, साध्य विहीन हो चुके होंगे।
लेकिन यह सब हमें नहीं पता लगता क्योंकि इन सब की तेजस्विता को मापने वाला balance या तुला या apparatus ही नहीं है अपने पास।
सब शारीरिक सुंदरता और स्वास्थ्य को ही तेजस्विता समझते हैं।
तभी आज किसी का संकल्प तक फलीभूत नहीं हो पाता।
न आंखों में वह तेज, न वाणी में तेज, न विचारों में तेज, न संकल्प शक्ति, सभी का अभाव है।
पहले इसीलिए बोला जाता था कि अगर कोई ब्राह्मण गुस्से में जल को संकल्प लेकर किसी पर छिड़क देता था, तो उसका संकल्प पूरा होता था।क्योंकि वह साधना से इतनी शक्ति अर्जित कर लेता था कि साधना की शक्ति से ही वह अपने संकल्प को फलीभूत कर लेता था।
कोई ब्राह्मण अगर क्रोधित होकर अपना जनेऊ किसी पर निकाल कर फेंक भी देता था तो वह भस्म हो जाता था।यह कोई परियों की कहानी नहीं है, यह सब साधना शक्ति और संकल्प शक्ति का कमाल होता था।
ये ऐसे ही है जैसे हम radio signals या तरंगों को नहीं देख पाते।आज के अगर 200 वर्ष पहले कोई हमें फ़ोन के बारे में बताते तो हम हँसते।
परंतु आज के सनातनी नियम संयम विहीन हो गए हैं। माँस खाना, दारू पीना, कोई नियम संयम नहीं, कोई साधना नहीं, कोई आंतरिक शक्ति नहीं और ऊपर से तुर्रा ये कि वह ब्राह्मण हैं, भले ही ब्राह्मणत्व का कोई एक गुण और लक्षण नहीं।
( सभी नही कुछ मे गुण है)
यह सिर्फ ब्राह्मण की ही बात नहीं , सभी लोगों में से साधना शक्ति, त्याग, संयमित जीवन का अभाव हो गया है। इसीलिए आंतरिक अशांति आज जन जन में व्याप्त है।
तेजस्विता को आप अपनाइये, अपनी संकल्प शक्ति, साधना शक्ति और मनस्विता का विकास करिये, देखिएगा कि आप जैसा समृद्ध कोई नहीं होगा, भले ही आपके पास फूटी कौड़ी भी न हो ।
सभी सनातनियों को चाहिए अपने अंदर तेजस्विता के गुणों का विकास करें ।