फिल्म का सबसे शानदार सीन कौन सा है?जो आपको अंदर तक हिला देगा। हफ्तों तक आपको याद रहेगा। ये काला पानी के अमानवीय अत्याचार वाला सीन नहीं है। वो तो आपको पता ही है काला पानी में किस हद तक प्रताड़ित किया जाता था। यह वो सीन भी नहीं है जब वर्षों बाद पका हुआ भोजन देखकर सावरकर भावुक हो जाते हैं। या जब वर्षों बाद वो पहली बार पैन पकड़ते हैं।
जब सावरकर (रणदीप हुड्डा) को काला पानी की सज़ा होती है तो वहां सावरकर को काला पानी से नहाने के लिए कहा जाता है सावरकर काला पानी से नहाने के लिए मना करते हैं
इसपर सिपाही सावरकर के सीने में लात मारते हुए कहता है साला गंगाजल से निलाहएंगे । वो सीन आपको सीन आपको अन्दर तक हिला देगा
एक और सीन जहां सावरकर प्यास से व्याकुल नल से टपक रहे बूंद बूंद पानी की तरफ़ जते हैं इसपर सिपाही सावरकर को प्रताड़ित करते हुए कहता है "मूत पिलाएंगे मूत" ये सीन आपको झकझोर देगा
एक वो सीन है जब सावरकर 14 साल की जेल के बाद रत्नागिरी जेल से पहली बार बाहर निकलते हैं।
एक वो सीन आपको अंदर तक तोड़ देता है जब वो जेल से बाहर निकल रहे होते हैं तब पीछे से भीड़, ढोल और सावरकर जिंदाबाद की नारे सुनाई दे रहे होते हैं ऐसा लगता है कि जेल के उस पार सैकडों लोग इस क्रांतिकारी के छूटने का इंतजार कर रहे होंगे।
लेकिन जब जेल का गेट का खुलता है बाहर एक आदमी नहीं होताए क भी नहीं। सिवाय उनके बड़े भाई के
उस सीन को देखकर महसूस होता है 👉 पानीपत में खड़े सदाशिवराव भाऊ भी अकेले थे, 1857 में अंग्रेजों से लड़ते तात्या टोपे भी अकेले थे, और 14 साल की जेल काटकर बाहर निकले सावरकर भी अकेले ही हैं
यह समाज ही ऐसा है, जो अपना सबकुछ इसके लिए दांव पर लगाता है समाज उसे ही अकेला छोड़ देता है
इसलिए संघ सामूहिकता पर चलता है। जो कराना है पूरे समाज को खड़ा करके सारे समाज से कराना है ताकि फिर कोई सावरकर परिवार की तरह सब कुछ लुटाकर भी अकेले, निसाह न रह जाए।
रणदीप भाई ने सावरकर के किरदार में ख़ासी मेहनत की है फ़िल्म में रणदीप अपने किरदार इस तरह डूबे हुए नज़र आते हैं कि आपको सावरकर ही लगते हैं स्वतन्त्र वीर सावरकर फ़िल्म को डायरेक्ट करना प्रड्यूसर का कार्यभार संभालना और वीर सावरकर का किरदार भी निभाना इन तीनों कार्यों में रणदीप भाई ने बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत मेहनत की है और उनकी मेहनत फिल्म वीर सावरकर में साफ़ झलकती है।
दुर्भाग्य ये हैं की ऐसी फिल्में जो समाज को पुनः जगाने के लिए उनकी सोई आत्मा को उठाने के लिए, सच को साफ साफ दिखाने के लिए देखनी जरूरी है वो फिल्में 10 से 15 करोड़ कमाने के लिए तरस जाती है और समाज को गंदा बनाने वाली फिल्में 100 करोड़ तो 2 दिन में कर लेती हैं।
जब समाज खुद हो गंदगी चाहता है तो उसे गंदगी ही मिलेगी