आतंकवाद का कोई मजहब नहीं लेकिन आतंकियों को प्रॉपर जुलुश निकलकर ,उनके लिए फातिया पढ़कर फिर दफनाएंगे तो इसे क्या समझा जाए? यदि मजहब नहीं तो मजहबी प्रक्रिया क्यों? यदि आतंकियों की बॉडी को आग लगा देने का काम शुरू किया जाय तो आतंकवाद अपने आप काम होने लगेगा...क्योंकि शरीर जल्द जाएगा तो 72 हूरें कैसे मिलेंगी...
कई बातें ऐसी हैं जो गलत तरह से फैलाई गई हैं, उनमें से एक ये भी हैं की आतंकवाद का कोई मजहब नहीं...
शौर्य फिल्म का एक डायलॉग भी है "हर तारीख पर इनकी मौसमी मजहब की मोहर लगी हुई है..."