🌻 विभिन्न देवों पर किस तरह का इत्र व पत्र-पत्तियां चढ़ाएँ
🌼 पुष्पांजली
(विविध देव पुष्प-पत्र-इत्र अर्पण संख्या सहित)
सनातन संस्कृति के वेदों में देवताओं को वायुतत्व प्रधान होने के कारण के गंधप्रिय बताया गया है। गंध-तरंगें पृथ्वी लोक से संबंधित हैं। देवी-देवता जब भू लोक पर विचरण करते हैं तो सुगंधगय स्थलों की ओर अधिक आकर्षित होते हैं। कर्मकांड में इसीलिए सुगंधित पदार्थों का प्रावधान किया गया है।
वेदों में भी कहा गया है -
*दैवस्य मस्तकं कुर्यात्कुसुमोपहितं सदा।*
देवता का मस्तक या सिर हमेशा फूलों से सुशोभित रहना चाहिए।
फूलों की सुगन्ध और सौंदर्य से देवी देवता प्रसन्न होते हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान के प्रिय पुष्प अर्पित करने से वे जल्दी प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करते हैं।
*पुष्पैर्देवां प्रसीदन्ति पुष्पै देवाश्च संस्थिता।न रत्नैर्न सुवर्णेन न वित्तेन च भूरिणा तथा प्रसादमायाति यथा पुष्पैर्जनार्दन॥*
देवता रत्न, र्स्वण, द्रव्य, व्रत, तपस्या या अन्य किसी वस्तु से उतने प्रसन्न नहीं होते, जितना पुष्प चढ़ाने से होते हैं।
अधिकाधिक तरंगें आकर्षित करने हेतु आवश्यक पुष्पों की न्यूनतम संख्या, किस देव-शक्ति को कितनी पुष्प-पत्र अर्पित करना हैं, यह गणित भी हमारे ऋषि-मुनियों ने निर्धारित कर रखा है। कुछ विविध देव पुष्प संख्या सहित निम्न है ।
पुष्प – मोगरा (बेला)
देव - देवी दुर्गा
अर्पित पुष्प संख्या - १ अथवा ९
पुष्प - रजनीगंधा तथा धतूरे का पुष्प
देव - भगवान शिव
अर्पित पुष्प संख्या - ९ अथवा १०
पुष्प - कनेर, लाल गुड़हल
देव - देवी महाकाली
अर्पित पुष्प संख्या - ९
पुष्प - तगर
देव - ब्रह्मा जी
अर्पित पुष्प संख्या - ६
पुष्प - स्वस्तिका तथा कनेर
देव - देवी सरस्वती (श्वेत)
अर्पित पुष्प संख्या - ९
(आदिशक्ति के हर रूप को ९ अंक से पूजा जाता है)
पुष्प - गुलदाऊदी या गेंदा या कमल
देव - देवी महालक्ष्मी व लक्ष्मी
अर्पित पुष्प संख्या - ९
पुष्प - रक्तपुष्प कोई भी
देव - श्री गणेश
अर्पित पुष्प संख्या - १, ३,५,७
पुष्प - तुलसी (मंजरी)
देव - श्री विष्णु
अर्पित पुष्प संख्या - १, ३,५,७
पुष्य - जाई (चमेली का एक दूसरा प्रकार)
देव - श्री राम
अर्पित पुष्प संख्या - ४
पुष्प - चमेली
देव - हनुमान जी
अर्पित पुष्प संख्या - ५
पुष्प - जूही
देव - दत्तात्रेय
अर्पित पुष्प संख्या - ७
पुष्प - कृष्णकमल
देव - श्री कृष्ण
अर्पित पुष्प संख्या - ३
पुष्प - लाजवंती (नीला या गहरा रंग का कोई भी पुष्प)
देव - शनि देव
अर्पित पुष्प संख्या - १
पुष्प - कुटज तथा आक का पुष्प
देव - सूर्यदेव
अर्पित पुष्प संख्या - १
पूजा-अर्चना, व्रत- उपवास या विभिन्न पर्वों पर अपने अपने ईष्ट को पुष्प अर्पित करने का विधान है। इसके अलावा प्रत्येक देवी-देवता की गंध-पसंद अलग-अलग होती है, जिसके कारण देव अपनी पसंद की गंध की ओर शीघ्र ही आकृष्ट हो जाते हैं।
नवीन गुंथी का एक प्राचीन काव्यात्मक दोहा है जहां वैदिक अष्टगंध की महत्ता बताई गई है
*“ अगर तगर चंदन युगल, केसर और कपूर गौरोचन और मृगमिड़ा, अष्टगंध भरपूर ”*
अगर : ऊद या अगरवुड, तगर : हल्दी जैसी सुगंधित जड़, चंदन युगल : चंदन का जोड़ा अर्थात् लाल और सफेद चंदन, बाद वाला अधिक सुगंधित होता है, केसर, कपूर, गौरोचन : गाय की तिल्ली, मृगमिडा : कस्तूरी; अष्टगंध भरपुर : अष्टगंध सभी आठ सामग्रियों के माध्यम से पूर्ण हो जाता है।
देवी-देवताओं की गंध-पसंद को ध्यान में रखकर ही देवी-देवता की पूजा करते समय उनकी पसंद के गंधवाले पुष्प इत्र आदि पूजा में प्रयोग किए जाते हैं। कुछ देवों के विविध प्रिय इत्र निम्न प्रकार हैं।
सुगंध इत्र - जाई (एक प्रकार की चमेली)
देव - श्री राम जी
सुगंध इत्र - चमेली
देव - हनुमान जी
सुगंध इत्र - केवड़ा
देव - भगवान शिव
सुगंध इत्र - मोगरा
देव - देवी दुर्गा
सुगंध इत्र - गुलाब
देव - श्री लक्ष्मी
सुगंध इत्र - हिना
देव - श्री गणपति
सुगंध इत्र - खस
देव - दत्तात्रेय
सुगंध इत्र - चंदन
देव - श्री कृष्ण
सुगंध इत्र - हरश्रृंगार
देव - भगवान विष्णु
सुगंध इत्र - कस्तूरी
देव - शनिदेव
पुष्प व इत्र के अतिरिक्त कुछ विशेष पत्र-पत्तियों को भी देवपूजा में शामिल किया जाता है। जैसे विष्णु पर तुलसी के पत्ते, शिव पर बिल्वपत्र (बेल के पत्ते) और गणेश पर दूब अर्पित की जाती है। इसके अलावा देवी-देवता को पाँच पत्ते चढ़ाने चाहिए, जो ब्रह्मांड के पृथ्वी, जल, तप, वायु व आकाश पंचतत्त्वों के द्योतक हैं। पत्ते, पुष्प, फल आदि अपनी प्राणवायु द्वारा ब्रह्मांड की सत्त्व तरंगों व देव तत्त्वों को ग्रहण करके पूजा करनेवाले जीव का कल्याण करते हैं। इस कारण इन्हें, जब ये ताजा व साफ-सुथरे हों, तभी अर्पित करना चाहिए, क्योंकि उस समय तक इनकी अपनो प्राणवायु देवशक्ति प्राप्त रखने की क्षमता रखती है। बासी फल-फूल कागज के फूलों की तरह होते हैं। कमल का फूल व आँवला तीन दिन तक शुद्ध रहने की क्षमता रखते हैं, क्योंकि इन दोनों में प्राणवायु व धनंजयवायु तीन दिन तक रज-तम से लड़ने की क्षमता रखती हैं। इसी प्रकार तुलसी व बेलपत्र सूखने के बाद भी शुद्ध बने रहते हैं। वे वैज्ञानिक तथ्य हैं। तुलसी में ५० प्रतिशत विष्णुतत्त्व और बिल्वपत्र में ७० प्रतिशत शिक्तत्व विद्यमान होता है।
*पत्रं पुष्पं फलं , तोयम , माय भक्त्या प्रयाच्चाती इअदहम भक्त्य्पर्हत्म्श्नामी प्रयात्मनाह*
जो भी मुझे प्रेम से फूल, फल, जल अर्पित करता है मैं उसे स्वीकारता हूँ. और हमारा सुन्दर मन ही सुमन अर्थात पुष्प है, इसी सुन्दर मन को हम बड़े भाव से परमात्मा को अर्पित करे ।