महंत पन्ना नंदी के पास गए और उनके कान में कहा, ‘‘विपत्ति भगवान राम पर भी पड़ी थी। हे नंदी महाराज! मॉं सीता जैसे प्रतीक्षा करना,इस तीर्थ का उद्धार करने कोई अवश्य आएगा।”
“मेरे हिस्से समाधि आयी है,आपके हिस्से प्रतीक्षा है शिव वाहन।’’
यह कहकर पन्ना कुएं में कूद गए।
आताताइयों की फौज आई, अविमुक्तेश्वर क्षेत्र को ध्वस्त कर दिया गया। नंदी जटायु से हत होकर यह देखते रहे।
फिर एक दिन एक रानी आयीं, उसने महादेव को आँचल से उठाया, नंदी ने देखा उनके सिर पर माँ अनुसूइया का वात्सल्य स्पर्श हो रहा था।
पर नंदी की प्रतीक्षा शेष थी। सदियाँ बीतीं, युग बदला, नंदी दिन गिन रहे थे।
एक दिन नंदी ने देखा अविमुक्तेश्वर क्षेत्र का पुनरुद्धार हो रहा है, उन्होंने सुना नए भारत के राजा ने काशी का कायाकल्प करने का आदेश दिया है।
एक दिन नंदी के शरीर को माँ गंगा से आने वाली हवाओं ने छुआ। तीन सौ बावन साल बीत गए माँ गंगा को निहारे।
नंदी का आनंद लौट आया, विश्वनाथ धाम की अलौकिकता लौट आयी, पर नंदी अभी भी ज्ञानवापी तीर्थ की ओर देख रहे थे, महंत पन्ना को देख रहे थे।
नए भारत के राजा के खंडित कार्यों की कीर्ति पर नंदी का तप भारी पड़ा । उसे यह समझ में आया कि महादेव का काम अधूरा है, माँ गंगा से किया हुआ वादा अधूरा है।
उसने आदेश दिया कि ज्ञानवापी तीर्थ को मुक्त किया जाए।
कुंए में समाधिस्थ महंत पन्ना मुस्कराये, नंदी की प्रतीक्षा पूर्ण होने को है।