अयोध्या में विवादित ढांचा के ध्वस्त होने के पश्चात् केंद्र सरकार की कुंभकर्णी निद्रा खुली। उसने 7 जनवरी 1993 को विवादित क्षेत्र तथा उसके पास की 67 एकड़ भूमि अधिग्रहित कर ली। इसी समय महामहिम राष्ट्रपति डॉक्टर शंकर दयाल शर्मा ने संविधान की धारा 143 (ए) के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय से पूछा कि क्या 1528 से पूर्व वहां कोई हिंदू मंदिर या भवन था ?
प्राय: 20 महीने सुनवाई करने के पश्चात् 24 अक्टूबर 1994 को सर्वोच्च न्यायालय ने यह प्रश्न प्रयाग उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ को सौंप दिया।
केंद्र के अधिग्रहण को इस्माइल फारूकी ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी। इस पर बहस में शासन ने लिखित शपथ पत्र में कहा कि अंतिम निर्णय के बाद उस स्थान पर यदि हिंदू मंदिर या हिन्दू भवन सिद्ध होगा , तो वह उसे हिंदुओं को लौटाने को प्रतिबद्ध है।
तीन न्यायमूर्तियों की पूर्ण पीठ ने 1995 में मामले की सुनवाई शुरू की। महामहिम राष्ट्रपति के विशेष प्रश्न का जवाब देने के लिए उक्त स्थान पर भूगर्भीय रडार सर्वेक्षण का आदेश दिया गया , जिसे कनाडा से आए विशेषज्ञों के साथ तोजो विकास इंटरनेशनल द्वारा किया गया। अपनी रपट में विशेषज्ञों ने ढांचे के नीचे बड़े क्षेत्र तक फैले एक विशाल मंदिर के मौजूद होने का उल्लेख किया।
2003 में उच्च न्यायालय ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को वैज्ञानिक तौर पर इस स्थान की खुदाई करने और जीपीआरएस रपट को सत्यापित करने का आदेश दिया। दो पर्यवेक्षकों की उपस्थिति में खुदाई की गई। संबंधित पक्षों , उनके वकीलों , उनके विशेषज्ञों या प्रतिनिधियों को खुदाई के दौरान वहां बराबर उपस्थित रहने की अनुमति दी गई। निष्पक्षता बनाए रखने के लिए श्रमिकों में 40% मुस्लिमों को रखा गया।
श्री राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण हेतु पुनः जनजागरण के लिए हनुमत शक्ति जागरण समिति के तत्वाधान में तुलसी जयंती 16 अगस्त 2010 से अक्षय नवमी 16 नवंबर 2010 तक देश भर में हनुमान चालीसा पाठ करने की घोषणा की गई।
30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने विवादित ढांचे पर निर्णय सुनाया। न्यायालय ने एकमत से माना कि जहां रामलीला विराजमान हैं , वही श्री राम की जन्मभूमि है। निर्णय में यह भी कहा गया कि विवादित ढांचा एक बड़े भग्नावशेष पर खड़ा था।
न्यायमूर्ति धर्मवीर शर्मा ने कहा - यह 12वीं शताब्दी के राममंदिर को तोड़कर बनाया गया था।
न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने कहा - यह किसी बड़े हिंदू धर्मस्थान को तोड़कर बनाया गया।
न्यायमूर्ति खान ने कहा - वह किसी पुराने ढांचे पर बना था।
पर किसी भी न्यायमूर्ति ने उसे ढांचे को मस्जिद नहीं माना। सभी ने उस स्थान को राम जन्मभूमि ही माना।
न्यायालय ने विवादित स्थल को तीन पक्षों के बीच यानी रामलला विराजमान, सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़े के बीच बांटने का आदेश दिया। इस फैसले से असंतुष्ट सभी पक्ष दिसंबर 2010 में सर्वोच्च न्यायालय पहुंचे।
8 जनवरी 2019 को पांच सदस्यीय पीठ का गठन किया गया और पहली सुनवाई 10 जनवरी 2019 को हुई। लगभग 10 महीने तक इस पर सुनवाई हुई। अंत में लगातार 40 दिन की सुनवाई करने के बाद 9 नवंबर 20 19 को सर्वोच्च न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की पीठ ने एकमत से निर्णय दिया कि विवादित स्थान राम मंदिर ही है। इस निर्णय के आते ही भारत ही नहीं , वरन् पूरे विश्व के हिंदुओं में खुशी की लहर दौड़ गई। (क्रमशः)
।। श्री राम जय राम जय जय राम ।।