जनजातीय समाज के लोगों का कहना है कि धर्मांतरण करने वाले लोग ST का लाभ उठाकर उनके अधिकार को छीन रहे हैं। उनके अनुसार ईसाई बनने वाले ST बीते 75 साल से अनुसूचित जनजाति को मिलने वाले आरक्षण लाभ का 80 फीसदी फायदा उठा रहे हैं। जेएसएम का कहना है कि ईसाइयों अथवा मुस्लिमों का एसटी आरक्षण पर अधिकार नहीं हैं। लेकिन वे जनजातीय समाज के लोगों को मिले संवैधानिक अधिकारों का अतिक्रमण कर रहे हैं।
इन्हीं माँगों के समर्थन में जनजातीय समाज के करीब 5000 लोगों का जुटान क्रिसमस से ठीक पहले 24 दिसंबर 2023 को राँची के मोरहाबादी मैदान में हुआ। उलगुलान आदिवासी डीलिस्टिंग नमक इस महारैली का आयोजन JSM की ओर से किया गया था। झारखंड के अलग-अलग हिस्सों से आए अनुसूचित जनजाति समाज के लोगों ने पारंपरिक पोशाकों और तीर-धनुष जैसे पारंपरिक हथियारों के साथ इस रैली में शिरकत की थी।
रैली की अध्यक्षता पूर्व केंद्रीय मंत्री और लोकसभा के पूर्व उपाध्यक्ष करिया मुंडा ने की। उनके अलावा बीजेपी के लोकसभा सांसद सुदर्शन भगत, राज्यसभा सदस्य समीर ओरांव, जेएसएम के राष्ट्रीय संयोजक गणेश राम भगत भी मौजूद थे। करिया मुंडा ने कहा, “झारखंड में ईसाई धर्म अपनाने वाले आदिवासियों का प्रतिशत लगभग 15-20 percent होगा, लेकिन अगर हम सरकारी नौकरियों और आईएएस सहित प्रथम श्रेणी के अधिकारियों को देखें, तो 80-90 percent वे हैं जो धर्मांतरित हैं।”
जनजातीय समाज के लोगों की डी-लिस्टिंग की डिमांड नई नहीं है। मुंडा ने बताया कि राँची की तरह ही नागपुर, नासिक, मुंबई जैसे कई जगहों पर इन्हीं माँगों को लेकर जनजातीय समाज के लोगों का जुटान हो चुका है। वहीं जेएसएम के राष्ट्रीय सह संयोजक राजकिशोर हांसदा ने कहा कि भारतीय संविधान के निर्माताओं ने देश के 700 से अधिक जनजातीय समूहों के अधिकारों की रक्षा के लिए बेहतरीन कोशिशें की थीं, लेकिन ये फायदा मुट्ठी भर उनलोगों को मिल रहा है जो धर्म बदल चुके हैं। जिन्हें चर्च का समर्थन हासिल है।